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Showing posts from August, 2017

पंथी विश्व का सबसे तेज नृत्य( एक विराट दर्शन )

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पंथी :विश्व का सबसे तेज नृत्य ( एक विराट दर्शन ) भूमिका -  पंथी छत्तीसगढ़ में सतनामी समाज द्वारा किया जाने वाला पारम्परिक लोक प्रिय नृत्य है ! सतनाम धर्म का प्रतिक चिन्ह " जैतखाम " की स्थापना या गुरू घासीदास जी की जयंती पर्व पर परम्परागत रूप से पंथी गायन के साथ नृत्य भी किया जाता है ! पंथी नृत्य की शुरूवात गुरू वंदना से होती है जिसे " सुमरनी या आहवान " भी कहा जाता है ! पंथी गीत के प्रमुख विषय गुरू घासीदास बाबा जी के चरित्र व सतनाम दर्शन पर आधारित होती है ! पंथी नृत्य पथ निर्धारित कर पंक्तिबध्द होकर व्यवस्थित रूप में किया जाता है इस कारण इसे पंथी नृत्य कहते हैं व सतनाम धर्म सतनाम पंथ जो कि एक पथ के रूप मे भी जाना जाता है  !  जिसके समाजिक व सांस्कृतिक नृत्य होने की वजह से इस नृत्य को पंथी नृत्य की संज्ञा दी गई है ! पंथी नृत्य को विश्वपटल में सतलोकी देवदास बंजारे जी एवं साथियों द्वारा सुंदर संस्कृति के रूप में उकेरा गया है जिसकी आभा आज भी लोगों को रोमांचित और आकर्षित करती है ! आदरणीय सतलोकी देवदास बंजारे जी ने पंथी को विश्व के 64 देशों में प्रस्तुत कर भारत के म

दहेज और सतनामी समाज

!! दहेज और सतनामी समाज !! वर्तमान समय चक्र ऐसा विषैला हो चुका है की इसके कारगर उपाय भी निश्क्रिय शाबित होते नजर आते हैं ! प्रत्येक समाज की नीव को कुछ उनके ही परम्परायें हिला रही है , दहेज की प्रथा आज के प्रत्येक समाज के लिए एक विष का कार्य कर रही है , जिससे निजाद पाना अत्यंत आवश्यक है ! आज स्थिति ऐसी है कि अमीर के घर हो विवाह तो करोड़ों का दहेज , मध्यम वर्ग के घर हो विवाह तो लाखों का दहेज तथा सबसे चिन्तनीय विषय किसी गरीब के घर भी अगर विवाह होता है तो लाख रूपये व अन्य समानों की दहेज देने की प्रथा का प्रचलन होना वास्तव में दहेज प्रथा सर्व समाज के लिए एक अभिषाप है ! दहेज क्या है ? :- दहेज वास्तव में कोई बुराई नही था , अपने प्रारंभिक चरण में यह बहूंत ही शुभ व प्रेम तथा स्नेह का प्रतिक माना जाता था ! जब कोई माता-पिता अपने पुत्रि का विवाह करते तो उनके उज्जवल भविष्य की कामनाओं के साथ उन्हें कुछ घरेलु उपयोगी वस्तुएं व गहनें स्नेह भेंट किया करते थे ! अपनी संतानों की खुशियों के लिए भेंट दिया जाना एक परम्परा के रूप में स्थापित हुआ व यह परम्परा आज वर्तमान दौर में " दहेज एक अभिषाप " के

श्री पुरानिक लाल चेलक जी

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संस्कृति और साहित्य के साधक : पुरानिक लाल चेलक जी विलक्षण व्यक्तित्व का समाज में कमी नही पर कुछ ऐसे विलक्षण व्यक्तित्व हैं जिन्हे सतनामी समाज के पन्नों से हटा दिया जाये तो  समाजिकता, संस्कृति, साहित्य, सदाचार , बंधुत्व, संघर्ष, सतनाम प्रचार इत्यादि के प्रेरणा स्त्रोतों व प्रेरक अंशों की कमी का भरपाई समाज नही कर सकता ! सतनामी समाज में उच्च कोटी के साहित्य का अभाव सदैव ही दृष्टव्य होता रहा है ! और इन अभावों को भरने के लिए संस्कृति    व साहित्य अनेक साधकों ने यथासम्भव प्रयास किए हैं ! इसी कड़ी में सांस्कृतिक, साहित्य ,नृत्य व गायन के अभाव रूपी गहरी खाई को समतल मैदान में निर्मित करने हेतु अपने प्रयासों के मृदा को गीत,नृत्य व साहित्य के रूप में उड़ेलते रहे और उस खाई के उर्वरा भूमि में निर्मित करने हेतु आज भी प्रयत्नरत हैं ऐसे विलक्षण प्रतिभा के धनी आदरणीय पुरानिक लाल चेलक जी का नाम सतनामी समाज में बड़े ही सम्मान के साथ लिया जाता है !                      आपका जन्म 3 जुलाई 1943 को ग्राम आलबरस तहसील व जिला दुर्ग में हुआ ! आपके पिता का नाम श्री शिवचरण चेलक एवं माता का नाम श्रीमती मलेछिन

दिव्य दर्शन : गिरौदपुरी धाम(छत्तीसगढ़)

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*दिव्य दर्शन : गिरौदपुरी धाम(छत्तीसगढ़) * इस वर्ष गिरौदपुरी धाम मेला का शुभ आरम्भ 3 मार्च 2017 से 5 मार्च 2017 तक होने वाला है ! गिरौदपुरी धाम मेला का आयोजन प्रत्येक वर्ष फाल्गुन शुक्ल पंचमी से सप्तमी को किया जाता है ! गिरौदपुरी धाम रायपुर से 135 कि.मी. की दूरी पर बलौदबाजार जिले में स्थित है एवं कसडोल से गिरौदपुरी धाम की दूरी लगभग 20 कि.मी. तथा बिलासपुर से शिवरीनारायण होते हुए दूरी 80 कि.मी. है ! वायुमार्ग में रायपुर निकटतम हवाई अड्डा है जो मुम्बई,दिल्ली, नागपुर, हैदराबाद, बेंगलुरु, कोलकाता, विशाखापटनम एवं चेन्नई से जुड़ा हुआ है ! रेल मार्ग में हावड़ा मुम्बई मुख्य रेल मार्ग पर रायपुर और बिलासपुर निकटतम रेल्वे जक्शन है ! अत: दर्शनार्थी अपनी सुविधा के अनुसार दर्शन हेतु उपस्थित होते हैं ! गिरौदपुरीधाम सिर्फ सतनाम धर्म को मानने वाले लोगों की धार्मिक स्थल न होकर विश्व समता और शांत्ति का प्रतिक है जिसमें देश के साथ विदेशों से भी लोग पर्यटन हेतु आते हैं ! वर्तमान लगने वाले मेलों में लगभग 15 लाख लोगों से भी अधिक दर्शनार्थियों की उपस्थिति होती है वास्तव में छत्तीसगढ़ में होने वाले समस्त म

सतगुरु घासीदास सात सिध्दाँत

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*सतगुरु घासीदास सात सिध्दाँत* * सतनाम ही सार है जो कि प्रत्येक प्राणी व घट-घट में समाया हुआ है, अत: सतनाम को ही मानो ! * सत ही मानव का आभूषण है ! अत: सत को मन,वचन,कर्म,व्यवहार और आचरण में उतारकर सतज्ञानी,सतपंथी,सतकर्मी,सतगुणी और सतधर्मी बनो ! * मानव-मानव एक समान अर्थात् धरती पर सभी मानव बराबर और सम्मान के अधिकारी हैं ! * मुर्तिपूजा,अंधविश्वास,रुढ़िवाद,बाह्य-आडम्बर,छुआछूत,ऊँच-निच,जातिगत भेदभाव,बलिप्रथा,मांसभक्षण,नशापान, व्यभिचार,चोरी,जुआ आदि अनैतिक और पाप कर्मों का त्याग करें हक और न्याय का अधिकार सभी को है ! * काम,क्रोध,मोह,लोभ,अहंकार,घृणा जैसे षडविकारों को त्याग कर सत्य,अहिंसा,क्षमा,दया,करुणा,प्रेम,परहित जैसे मानवीय सतधर्म सतगुणों को अपनाकर सत के मार्ग पर चलो ! * स्री और पुरुष समान हैं , नारी को सम्मान दो, पर नारी को माता मानो ! * सभी प्राणियों पर पर दया करो ! गाय,भैंस को हल में मत जोंतो तथा दोपहर में हल मत चलाओ, अपने मेहनत और ईमान की कमाई खाओ ! संदर्भ:-  सतनाम कैलेण्डर  *साहेब-सतनाम*

सतनामी कही देबे

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🌏सतनामी कही देबे🌏 ➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖ हमला गर्व हे की हम ह सतनामी कुल म जनम ले हवन , हमर पुरखा मन के लड़े लड़ाई ह आज हमन ल मुड़ी ऊठाके अऊ छाती तान के रेंगे के रसता देखाथे ! शिक्षा, सनमान, धन , धरम , बराबरी , रोजगार , जमीन सब म हमर हक हे ! जेकर बर हमर पुरखा मन अपन सब कुछ लुटाईन अऊ हमन ल सतनामी कहाय के गौरव दीन ! चंदा ह अंजोर करथे , मन म सांति भरथे , सुरूज ह दुनिया ल अंधियारी ले निकालथे अऊ मन म नवा जोस , उमंग भरथे ! ओईसने हमर पुरखा मन चंदा सुरूज आयं जिंकर बल म आज सतनामी मन के ठाठ-बाठ हे अऊ सतनाम के डंका बजत हे ! जब-जब पुरखा मन के सुरता आथे सतनाम अऊ सतनामियत के नवा रद्दा खुलथे , जेमा रेंगई हमर बस म हे के नही हमला तय करे ल परही ! फेर एक बात हे हमर पुरखा मन के चलाये संस्कृति ह आज हमर मन के पहिचान बना दिस !                   आज मैं उही संस्कृति मके एकाकठन ल सब झन ल परोसना चाहत हवं , हमर सभ्यता अऊ संस्कृति दुनिया म सबले निराला हे ! दाई-ददा, बड़े भाई , बड़े बहिनी, बबा, ककादाई, नाना, नानी, कका , बड़ा, फुफा-फुफी अऊ गुरू जेकर भी पावं परबे हंस के कईथैं " सतनाम ग , साहेब सतनाम ग , जय सतनाम ग , आनं