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Showing posts from July, 2018

बोलते दर्पण

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*बोलते दर्पण* आज ही दर्पण सुधार खाने में दिन के आखरी पलों में दो दर्पण छोड़े जाते हैं समय था नहीं कल के काम के लिए दुकानदार दुकान में उन्हें व्यवस्थित रख दुकान बंद कर चले जाते हैं कुछ घण्टों बाद दो दर्पण एक दूसरे को आमने-सामने पाते हैं चकित हैं एक-दूसरे को देखकर परिचर्चा करना चाहते हैं एक-दूसरे से लेकिन शुरूआत कौन करे कैसे हो ? यह तो सुधार घर है कितने दर्पण अपने स्वाँसों को समर्पण कर चूके हैं और बहुतों में नव प्राण ऊर्जा का संचार हुआ है एक दर्पण दूसरे दर्पण के आकर्षण, चमक,रूतबा देखकर झिझक पाले बैठा है और यह झिझक बोलने कैसे देगा दूसरा दर्पण पहले दर्पण के फक्कड़ से हालत पे सोंचता है लेकिन अपने रूतबे के मैं में बोले कैसे ? अचानक एक चूहे नें दौंड़ लगाया हिलने-डुलने की आवाज ने भय लाया एक दर्पण इस भय में भयभीत होकर चीख उठा दूसरा दर्पण फिर बोल पड़ा डरते क्यों हो भाई हमें भी डराओगे इस अँधेले में जान लुटाओगे पहला दर्पण फिर बोलता डर,चिंता और दु:ख यही तो मेरा जीवन है इनसे विलग मेरा कोई क्षण नही है दूसरा दर्पण फिर हँसते हुए कहता बड़े अ

बोलते दर्पण

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*बोलते दर्पण* आज ही दर्पण सुधार खाने में दिन के आखरी पलों में दो दर्पण छोड़े जाते हैं समय था नहीं कल के काम के लिए दुकानदार दुकान में उन्हें व्यवस्थित रख दुकान बंद कर चले जाते हैं कुछ घण्टों बाद दो दर्पण एक दूसरे को आमने-सामने पाते हैं चकित हैं एक-दूसरे को देखकर परिचर्चा करना चाहते हैं एक-दूसरे से लेकिन शुरूआत कौन करे कैसे हो ? यह तो सुधार घर है कितने दर्पण अपने स्वाँसों को समर्पण कर चूके हैं और बहुतों में नव प्राण ऊर्जा का संचार हुआ है एक दर्पण दूसरे दर्पण के आकर्षण, चमक,रूतबा देखकर झिझक पाले बैठा है और यह झिझक बोलने कैसे देगा दूसरा दर्पण पहले दर्पण के फक्कड़ से हालत पे सोंचता है लेकिन अपने रूतबे के मैं में बोले कैसे ? अचानक एक चूहे नें दौंड़ लगाया हिलने-डुलने की आवाज ने भय लाया एक दर्पण इस भय में भयभीत होकर चीख उठा दूसरा दर्पण फिर बोल पड़ा डरते क्यों हो भाई हमें भी डराओगे इस अँधेले में जान लुटाओगे पहला दर्पण फिर बोलता डर,चिंता और दु:ख यही तो मेरा जीवन है इनसे विलग मेरा कोई क्षण नही है दूसरा दर्पण फिर हँसते हुए कहता बड़े अ

धन्यवाद ल छत्तीसगढ़ी मँ का कइथें ?

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*धन्यवाद ल छत्तीसगढ़ी मँ का कइथें ?* *अमरू-* बाईक ल फर्राटा स्पीड मँ चलावत गेंट ले अँगना भीतरी घुसरीच | थथर-थईया करत धरा-रपटी बाईक खड़ा करके अँगना मँ बइठे अपन बबा कोती दौंड़ीच | *जुगुल दास-* ओकर बबा हर ओकर हालत ल देख के अपन पढ़त किताब ल बंद करके कइथे, अरे धीर लगा के गाड़ी चलाय कर अराम से आव | तोला आज का होगे हे ? *अमरू-* तीर म आके कहत हे,का बतावँ बबा आज तो जउँहर फंसगेवँ | *जुगुल दास-* हो का गे तेला तो बता ? *अमरू-* आज हमर बी.ए. सेकेण्ड ईयर क्लास के पहिला दिन रहिस, हमर कॉलेज मँ हिंदी पढ़ाय बर दिल्ली ले नवा मैडम आय हे | *जुगुल दास-* त का होगे?  *अमरू-* पुरा बात ल तो सुन बबा | *जुगुल दास-* ले न बता न ग | *अमरू-* का हे न कक्षा मँ आईस सबसो परिचय पुछिस अउ परिचय बताईस तहाँ पढ़ाय ल चालू करिस | पढ़ात-पढ़ात का कथिच का मथिच छत्तीसगढ़ी के बारे मँ पुछे ल धरलीस | *जुगुल दास-* त बता दे रइते न | *अमरू-* जतका पुछिस सब बतायेवँ कक्षा के अउ संगी मन घलो बताईन | फेर...? *जुगुल दास-* फेर का  ? *अमरू-* बबा मैडम ह पुछिस *धन्यवाद ल छत्तीसगढ़ी मँ का कइथें ?* जतका झन कक्षा मँ रहेन सब के बोलती बंद ह