उल्टे पैर लौटना होगा
उल्टे पैर लौटना होगा जब से जुड़ा हूँ एक लगाव था अब कुछ दिनों में उनके आकर्षण से अभिभूत हूँ आकर्षित हूँ उनके नैन में जो गहराई है शायद समुद्र में न हो केशों की कालिमा मेघों को शर्मिंदा कर दे मुख की चंद्रमा सा दिव्य प्रकाश मेरे नेत्र में शीतलता फैलाता है परंतु ह्रदय में प्रेम की लौकिक आस रूपी अग्नि भड़क रहा है और मैं उसके मासूमियत सी लपटों में जलना चाह रहा हूँ होंठों की मुस्कान किसी बिजली की कड़कड़ाहट से कम नहीं जहाँ पर भी गिरती है उमंगों की नई कली उग अाती है नेत्र की गहराई से उठा ज्वार भाटा धरती पर पड़ने से पहले मुझे बहाकर ले जाती है उसकी वाणी की मधुरता रति के आह्वानों से कम नहीं है और यही मुझे डूबने से बचाती है ऐसा अद्भुत यौवन की स्वामिनी भला इस खिचाव से मैं कैसे बचता लेकिन मुझे उल्टे पैर लौटना होगा जिस चन्द्रमा से मैं सम्मोहित हूँ शायद उसका चकोर कोई और है और मैं उसकी कल्पनाओं में शामिल भी नहीं आगे बढ़कर उसे अपना बनाने का कोई जिद नही है या द्वेष में आकर तेज़ाब डालने जैसा कुकृत्य मैं नहीं कर सकता उस चकोर को भी मैं हानि नही पहूँचा सकता मेरा प्रेम एकतर