तनहाई
तनहाई
कोई अब साथ नहीं
किससे राज़ बेपर्दा करूँ
हसरतें हजार है
पर वसन्त की बहार भी तो नहीं
मेरी वेदनाओं को
मेरे शब्दों को
समझने कोई तैयार कहाँ
आँखें सूखी हैं
ह्रदय रो रहा है
यहाँ चारो तरफ शांति पसरा है
खुरखुराहट आसानी से
कानों तक पहुँचती है
कम ही लोग यहाँ आते हैं
मैं मरघट में
उन यादों की जमघट लगाया हूँ
जो मेरे पास है
वह आश
और मेरी तनहाई है !
असकरन दास जोगी
Comments
Post a Comment