हम-दोनों-06

*#हम_दोनों-06*

तुम्हारे एक इशारे पर
मैं
सन्यास से
सन्यास ले लिया
अब हम-दोनों
अनुरागी हैं
तुम मेरे रंगो वाली हो
तभी तो
तुम्हारे रंगों में मैं
रंग गया
बस खयाल इतना रखना
कहीं वियोगी न बनूँ
परिवर्तन थोड़ा नहीं
बहुत हुआ
यह जीवन समुद्र है
नही है कुआँ
और परिवर्तन ही तो
ज़िन्दगी है
स्थिर क्यों रहें
कभी ज्वार कभी भाटा
बनकर बहें
हम-दोनों |

*#रचनाकार_असकरन_दास_जोगी*

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