अपनी-अपनी समझ

*#अपनी_अपनी_समझ*

हम किसी पाश्चात्य संस्कृति को
बढ़ा नहीं रहे थे
हम युगल युवान
एक युवान बरगद के संरक्षण में
भारतीय संस्कृति में निहित
प्रेम को पल्लवित कर रहे थे

उस आलिंगन के दायरे में
हमारी धड़कनें
एक हो रहीं थी
और हम टूट रहे थे
एक दूसरे के लिये

हमारे अधरों का मिलना
हमें जोड़ रहे थे
श्वांसों से श्वांसो में
और
उतार रहे थे
हम दोनों को
हमारे अंतर तक

उन क्षणों में
हमारी आँखें बंद रही
मिला नहीं पा रहे थे
एक दूसरे से
और हमने
आर्यभट्ट के
शून्य को महसूस किया

वह बरगद और बरगद की छाँव
आसमान में घुमड़ते काले बादल
अमिट हो गये हैं
जीवनपर्यंत भूल नहीं सकते
जब हम एक हो जायेंगे
जरूर वहीं फिर जाकर
घण्टों बैठेंगे
एक दूसरे को फिर से
समझने के लिये

प्रेम को वासना
और वासना को प्रेम समझना
अपनी-अपनी समझ होती है
यहाँ लोग तो
कुछ भी कह देते हैं  |

*#असकरन_दास_जोगी*

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