तिनका हूँ
*#तिनका_हूँ*
तिनका हूँ तनहा हूँ
जब पँख वाली
चुनकर ले जायेगी
पता है...?
तब घरौंदा बन जाऊँगा
कभी ओस पड़ते हैं
कभी धूल पड़ते हैं
देखते ही देखते
उड़ा ले जाती है
हवा मुझे अपने साथ
मैं वह हूँ
जो दिनकर के ताप से भी
नहीं टूटता
अहम् और वहम्
मुझमें...
तनिक भी नहीं
किन्तु लोग जानते हैं
समय आने पर
मैने अच्छे-अच्छों का
अहम् और वहम्
दोनों दूर कर दिया है
मैं लोगों के ज़ुबान पर
कुछ इस तरह से चढ़ा हूँ
कि वे मुझमें भी
स्वयं के लिए सहारा ढूँढते हैं
और बड़े अदब से कहते हैं
डूबते को तिनके का सहारा
सुनों...
वहीं मिलूँगा
जहाँ मिलता हूँ
मुझे तो तुम जानते ही हो
घाँस की सूखी पत्ती
और टूटी डाली हूँ
तनहा हूँ तिनका हूँ... |
*#असकरन_दास_जोगी*
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