डायरीनुमा क्षणिकायें

" मेरे शेर पर
अगर कोई ढ़ेर हो जाती
अब तक यह बेचारा रहता कहाँ
सुनो साहब....
इस ज़िंदगी में
कुछ तो हेर-फेर कर ही लेता "

" इस उम्र की कलियाँ बाग में नहीं
गलियाँ सूनी पड़ी हैं
सुनों इल्ज़ाम लगाने वालों
ज़रा सोंच तो लो...
हम छेड़खानियाँ किससे करेंगे ?"

" इन दरख़्तों में
उल्लू बैठते हैं
कोयल....
कोयल तो बस कल्पना है
कोई कह दे ज़माने से
वह ताने न दे..
हमारी ज़िंदगी खामखां
तनहा होकर भी रुसवा है "

" कोई मनचली
मेरी तनहाई में आकर
मुझसे बातें न करे
डरता हूँ...
कहीं तनहाई नाराज़गी में
मुझ पर बेवफ़ा होने का
इल्ज़ाम न लगा दे "

*#असकरन_दास_जोगी*

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