क्रांति

*#क्रांति*

शोषण की कोख में पनपती है
रूदन से चित्कारती है
धड़कनों में धड़कती है
क्रोध में धधकती है
आँख से छलकती है
हर व्यक्ति के
जीवन से जुड़ा है
रक्त धमनियों में
दौंड़ती है
हथियार से लड़ सकते हो
अहिंसा से माँग सकते हो
जब विचारों में
हो ज्वालामुखी तो
कलम से कालजयी
कर सकते हो
सुनो-सुनो
वोटों से छिन सकते हो
पत्रों में छप जाएगा
आवाज़ों में गुंजेगी
चलचित्रों में दिख जाएगा
सभाएँ होंगी
मशालें जलेंगी
धीरज धरासाई होगा
जब तुम जानोगे
जब तुम जागोगे
जब तुम ठानोगे
शोषण की कोख से निकलकर
समय के राफेल पर चढ़कर
पुरे देश में
होगी एक दिन
जरूर होगी
क्रांति...|

*#असकरन_दास_जोगी*

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