मया के फूल फूलन दे

*#मया_के_फूल_फूलन_दे*

वो बेल कस
पिंयर-पिंयर
ऊपर ले ठक-ठक...
भीतर ले गुदगुद

ठाँय-ठाँय ओकर बोली
नइ समझे
त पखरा म परत
छिनी हथौड़ी कस लागही
अउ समझगेच
तब तो...
नरियर भेला कस गुरतुर

मेकरा ये
गजब के जाला पुरथे
गुनबे झन उबर जाहूँ
बतरकिरी कस...
फटफटावत रहि जाबे

तितली जइसे दिखथे
फेर तितली नोहँय
छू के देख ले
वो लरघियावय नहीं
तोला हदरत रहे बर
तोर हाथ म...
अपन रंग छोड़ देही

बाँचना हे त बाँच
जीव देना हे त दे
अरे जोजवा कुछ तो सोंच....
कलपत अंतस म
मया के फूल फूलन दे |

*#असकरन_दास_जोगी*

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