अंतस के डोर
*#अंतस_के_डोर*
न कोनो आस नहीं
न तैं मोर पास नहीं
कइसे जुड़गे ?
अंतस के डोर
चिन्ह पहिचान के मन पुछिन
का बात हे ?
सच कहँव मैं टाल देवँ
संगी-संगवारी देइन ताना
कहिन कइसे ?
मैं कहेवँ कोनो बात नइहे
फेर भौजी ल भा गए
कहिस देरानी कइसे रइही ?
मुँह ले निकलिस
अइसन सोंचे नइहँव
का करे तेला तहीं जान
दाई ल काबर अच्छा लागेच ?
अब तो सबला हर बात खटके
अउ मोर मन तोर सुरता म अटके
नहीं-नहीं कहत-कहत
कब होगे तोर लंग मया ?
अउ तैं....
जान के अनजान बन गये |
*#असकरन_दास_जोगी*
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