एक युध्द ऐसा भी

*#एक_युध्द_ऐसा_भी*

कितनी ऐतिहासिक भवें हैं...उनकी
पोरस कालिन धनुष लगते हैं

पलकें इस धनुष में लगी प्रत्यंचा,
पुतलियों से बनी नज़रों के तीर
जब वो तरकस में चढ़ती हैं

सच कहें...

अचूक निशाना
लक्ष्य में भेद जाती है

उस तीर के वार से
कोई वीर बच जाये
इतना सामर्थ्य नहीं

उनसे नज़रें मिलाना
अर्थात् ...
झेलम और चिनाव के तट पर
पोरस से लोहा लेना |

*#असकरन_दास_जोगी*

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