आखिर मैं माँ हूँ
आखिर मैं माँ हूँ
पेट काटकर
जब मैं अपने संतानों का
पेट भरती थी
तब मैं माँ थी
आज संतानों का
पेट भरा हुआ है
और मेरा
पेट खाली है
अब मैं
बुढ़ी औरत हूँ
माँ नहीं
जब धूप सह नही पाते
तब मेरी आँचल थी
आज उनके पास
महल है
पर मेरा जीवन
खण्डहर है
वह दिन
विस्मृत है उन्हें
चमकते-दमकते
कपड़े पहनाती थी मैं
आज वे
सामने से गुजरकर भी
नहीं पुछते
माँ तुम कैसी हो
और मैं भी
किसी से
यह नहीं कहती की
वे मेरे संतान हैं
डरती हूँ
उनका अपमान
न हो जाए
आखिर मैं माँ हूँ...!
असकरन दास जोगी
Comments
Post a Comment