सपना ही सपना है
*#सपना_ही_सपना_है*
बेमौसम
बारिश की जैसी आई
और
मेरा रोम-रोम
भीगायी
सुनो...
मैं महक उठा
मिट्टी की तरह
सौंधी-सौंधी
स्वाति की बूँदों जैसी
चमक रही थी
अलबेली
प्यास बढ़ाने आई थी
मुस्कुराकर देखा हमने
खुशमिजाज़ होना
उनका तो...
तासीर में है
उन्हें देखकर
सौ अरमान
और बढ़ गए
नहीं जानते तो जान लो
आँखें हमसे पूछती है
रात में...
क्या सोना छोड़ दें ?
असमंजस में फंसा था
वो राहत दे गई
या बेचैनी ?
तभी धड़कनें लब खोले
अब से पहले हम ठीक थे
सुनो...
जरा लगाम खींचना साहब
हम बेकाबू से हैं
उनका मिलना भी
क्षितिज जैसा है
घड़ी दो घड़ी के लिए आई थी
शेष सब...
सपना ही सपना है |
*#असकरन_दास_जोगी*
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