वहशी तो मैं भी हूँ

*#वहशी_तो_मैं_भी_हूँ*

हसने वालों हस लेना
कुछ लिख रहा हूँ
सच की कलम से
यह बात सिर्फ मेरी नहीं है
हर हाथों से होता
यह कमाल है

इसकी वसीयत
कई सम्भालेंगे
हमने भी सम्भाला है
परदे डालने की बात नहीं
सब में...
इसका रंग निराला है

दिल में ही
मर जाती
कामना मन की
अगर इन हाथों ने
वक्त पर...
जिम्मेदारी न सम्भाला होता

रातें,तनहाई
और कमरा गवाह है
कोई कह दे
वह आकर
मेरा बिस्तर तो देखे
यहाँ सपने मेरी श्याह है

वहशी तो मैं भी हूँ
पर जुदा हूँ जमाने से
वह मिलती नहीं
खुद को ही नोच लेता हूँ
इस उम्र के ज़ुनून में |

*#असकरन_दास_जोगी*

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