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Showing posts from July, 2018

बोलते दर्पण

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*बोलते दर्पण* आज ही दर्पण सुधार खाने में दिन के आखरी पलों में दो दर्पण छोड़े जाते हैं समय था नहीं कल के काम के लिए दुकानदार दुकान में उन्हें व्यवस्थित रख दुकान बंद कर चले जात...

बोलते दर्पण

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*बोलते दर्पण* आज ही दर्पण सुधार खाने में दिन के आखरी पलों में दो दर्पण छोड़े जाते हैं समय था नहीं कल के काम के लिए दुकानदार दुकान में उन्हें व्यवस्थित रख दुकान बंद कर चले जात...

धन्यवाद ल छत्तीसगढ़ी मँ का कइथें ?

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*धन्यवाद ल छत्तीसगढ़ी मँ का कइथें ?* *अमरू-* बाईक ल फर्राटा स्पीड मँ चलावत गेंट ले अँगना भीतरी घुसरीच | थथर-थईया करत धरा-रपटी बाईक खड़ा करके अँगना मँ बइठे अपन बबा कोती दौंड़ीच | *जु...