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Showing posts from February, 2020

तोर बर संसो

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*#तोर_बर_संसो* " मोर अन्तस म रचे बसे हे तोर बर संसो देख धोखा म झन रहिबे उहाँ टूटबे तैं अउ इहाँ उलर जाहूँ मैं " " बाँख म नइ बँधाहँव न नरियर बूच के डोरी म तुनबे तभे तुनाहँव मया के नीछे पातर कल्मी म " " कतको अँधियारी रइही हपटन भटकन नइ देवँव करिया हँव तेमा झन जाबे चंदा ले जादा अंजोर मैं करहँव " " झउहाँ म भरके बोह लेबो दुख के जम्मों कचरा ल फेंकना हे तिहाँ फेंक देबो अउ सच कर लेबो सुख के सपना ल " " आज काल अउ सब ल कोनो खूंटी म टांग देथन का गुन-गुन के जीबे चल आज ल... आज असन जीथन " *#असकरन_दास_जोगी*

हम लड़ते रहेंगे

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*# हम _लड़ते_रहेंगे* हम पीड़ित हैं जातिवाद से हम पीड़ित हैं लिंग भेद से सबसे ज्यादा भ्रष्टाचारी हैं यहाँ बेरोजगारी ही बेरोजगारी है हमारे पास हमारी कमर टूट गई है कमजोर अर्थव्यवस्था से हम मृत्यु सैय्या पर हैं भूखमरी से कोई बताये तो क्यों न आवाज़ उठायें ? हम लड़ते रहेंगे... जब तक अच्छे दिन न आये क्यों किसानों को फसल जलाना पड़ता है ? क्यों उनके काम का उचित दाम नहीं मिलता ? क्यों भू-अधिग्रहित मजदूरों को कारखानों से निकाला जाता है ? क्यों नहीं मिलती मुफ्त और समान शिक्षा ? जब तक नेताओं को मुफ्त में मिलता रहेगा और जनता को मुफ्तखोर कहा जाएगा जब तक गरीबी और अमीरी के बीच में गुजरात की तरह दीवार उठती रहेंगी हम लड़ते रहेंगे... सत्ता के साम,दाम,दण्ड और भेद से हमने झेला है जननांग में रॉड डालना मलद्वार में पेचकश और पेट्रोल घुसेड़ना हमने सम्भाल कर रखा है उन महिलाओं की काली चड्डियों को जिसे पुलिस के द्वारा निकलवाया गया था हमने ढँका है उन कुवारी स्तनों को जिसे पुलिसिया फ़र्ज़ी कार्यवाही में खोलकर निचोड़कर देखा गया कोई बताये हम क्यों न लड़ें ? हम लड़ते रहेंगे

मोर हाल

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*#मोर_हाल* पेट्रोल कस मोर मयारु के भाव घलो बाढ़ते रहिथे बता भला... राहत कहाँ मिलही निराश्रित पेंशन बरोबर मैं वोला जोहत रहिथँव किस्मत घलो घसराय अंगठा होगे बेरा के बायोमेट्रिक म रेखा के छप्पा परबे नइ करय अउ यहू तो कमाल हे गैस के सब्सिडी असन वोकर मिलना जुलना कब आथे कब जाथे पते नइ चलय ए आँखी दुख के कुहरा म कसकत हे प्राइवेटाइजेशन के रस्ता अभी नइहे असन हमरो मया तेजस जइसे छुकछुक-छुकछुक दौंड़तिच जिनगी के पटरी म सरसराके छुटेवँ वो चंदा बर फेर अधरे म लटकगेवँ कोनो का जानही मोर हाल चंद्रयान-2 जइसे हे न तीर म हँव न दूरिहा म गुनत हँव राफेल जइसन अपन आस म लिम्बू मिरचा बाँध दँव तब देखहँव कोन बैरी नज़र लगाही वो अतका निर्मोही अउ निर्दयी नइहे के हमर मया अउ दुनिया के बीच म अहमदाबाद जइसे भिथिया खड़ा कर देही भले मैं कतको फक्कड़ राहँव | *#असकरन_दास_जोगी*

का समझथच ?

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*#का_समझथच ? नख के नोख के बराबर घलो तोला मैं मया नइ करँव का समझथच ? तहींच बस हवच का ए संसार म ? मैं झपाय तको नइ परत हँव तोर ऊपर म तोला देखे बिना रही जाथँव मोला चैन-वैन सब हे चिटिकुन तको तालाबेली नइ लागय चार पहर रात म लात तान के सोथँव अल्थी कल्थी नइ मारँव बता तोर सपना कोन मेर ल देखहँव ? मोला मिले के घलो आस नइहे बता तो भला तोर गाँव गली म हिरक्के काबर जाहँव तोर रस्ता काबर जोहिहँव ? तोर गोठ ल गोठियावँव नही खुद ल मैं भुलियारँव नही कोनो ल बताके मोला का मिलही अइसन संसो तो मोर बबा घलो राखिच नही | *#असकरन_दास_जोगी*

कोरोना वायरस से भी घातक बाबागिरी

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सावधान!!  सावधान!! सावधान!! *#कोरोना_वायरस_से_भी_घातक_बाबागिरी* गौर से देखिए इस युवक को ऐसे लोग आपके आस पास ही मिलेंगे | इस युवक ने सबको चौका देने वाला निर्णय लिया है ऐसे निर्णय आप और हम जैसे साधारण लोग बिल्कुल भी नहीं ले सकते | इससे पहले इसके बारे में ऐसा यह कर सकता है यह कोई भी सोंच नहीं सकता था लेकिन ऐसा हम सोंचते हैं आप स्वतंत्र हैं स्वविवेक से काम लेने के लिये हमारे कहने मात्र से हमारी बातों में न आयें हम कोई तीसमार खाँ नही हैं | अब हम आपका ध्यान मुख्य घटना की ओर केन्द्रित करना चाहते हैं | मामला यह है कि 14 फरवरी तक नौकरी और छोकरी इनमें से कोई भी सेट न होने के कारण फ्रस्ट्रेशन में एक 30 वर्ष के युवक को बाबा गिरी में फायदा नज़र आने लगा है और वह पूर्ण निर्णय कर चुका है कहने मात्र के लिए सन्यास धारण हेतु | अगर पाठकगणों में तनिक मात्र भी बुध्दि हो तो इस विषय पर गम्भीरता से विचार करें आजकल के ऐसे युवाओं का निर्णय समाज के लिए कितना घातक हो सकता है ? हम कैसा समाज निर्माण चाहते हैं और यह सब क्या हो रहा है? ऐसे युवकों के बाबा बनने से समाज में कुछ धार्मिक,अाध्यात्मिक उत्थान होने

मैं छत्तीसगढ़िया अँव

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*#मैं_छत्तीसगढ़िया_अँव* बनभइँसा कस जोम्हियाथँव दिखथँव चंदैनी गोंदा कस रुगबुग ले बन-बन उड़थँव पहाड़ी मैना अउ महानदी कस लहरा लेथँव कोनो पूछथे त मैं छत्तीसगढ़िया अँव कहिथँव फेर फोंकिया देथे डारा ल बुर्चे उल्हवा पाना कस मोर आस कोनो रुख ल गोरर के काटे ठुड़ा नोहय घमघम ल उबजथे धनिया कस जेकर खुशबू ल कहूँ थोकन कोनो पागे त वोकर अन्तस कहर महर जाथे जाँगर पेरइया,पछिना ओगरइया मजूर,किसान,साहब,सिपहिया मैं महतारी के खरतर लइका काम बर कमिया अँव अउ अतके नहीं इहाँ के मैं दाऊ गौटिया अँव सरई कस लाम मोर संसो मोर बाढ़ बड़े हे फेर लोभ कतको धरे हें सांगा म नइ समावय मोर दुख इहाँ परदेशिया मन मोर करेजा ल काटत खड़े हें सुन तो... अपन भाखा बर रोवइया अँव माटी बर मरइया अँव हितवा,मितवा बर जान देवइया छत्तीसगढ़ महतारी के बेटी बेटा मैं छत्तीसगढ़िया अँव *#असकरन_दास_जोगी*

छिन्डा टूरा

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*#छिन्डा_टूरा बर का कहिथैं* हैप्पी खोज दे (मजा अपन हिसाब से लेवव/फरवरी के फ़ीवर नइ चढ़े हे) #दाई:- कोलखया बेंदरा भालू कस दिखत रहिथच रे अनघट अकन ल दाड़ही मेछा ल तो बनाले कर तब तो फभबे.... #ददा:- अरे काहिंच नइ करत हवच त बिहाव ल तो कर ले अपन ऊपर आही तेने दिन समझबे का जियानही तोला अभी बाप के कमई बेटा ल #भौजी:- ए ले भारी हीरो बरोबर सजत धजत हे देख ले देख ले तोर थोथना ल अयना म अतको म कोनों नइ देखँय जेकर आँखी खराब रइही उही हर देखही... हा हा हा   #डोकरी_दाई:- भारी टेस मारत रहिथच तोला कोन पुछही रे जवानी ल रुख कस गोर्रत हवच पुरा छत्तीसगढ़ के छलानी मारले तोला तो मोर असन डोकरी घलो हर नइ छिटकारय...हा हा हा हा #गाँव_गली:- ए टूरा हर बुढ़ा जाही ग कब पींयर भात खवाही पते नइ चलय एकर जहुँरिया मन अउ एकर ले छोटे मन लोग लइका के खरही गाँजत हें अउ एहर... बहेरा कस भूत गाँव गली म बजनी बाजत रहिथे #संगी:- हा हा हा हा..... कुंदरु बरोर झूल गे हे मुड़ म चंदा नाचत हे बीच के हवच का बे.... इहू फरवरी फुर्र होही कोनो फीट नइ होवँय बस अपन हाथ जगन्नाथ हे |

तुम्हें क्या कहते हैं लोग ?

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*#तुम्हें_क्या_कहते_हैं_लोग ?* तुम जब भी आते हो नफ़रत फैलाते हो क्या तुमने कभी प्रेम किया है ? धर्म के झण्डेबरदार हो क्या सिखा है धर्म से कभी एहसास हुआ है धर्म क्या होता है ? तुमने जब भी हथियार उठाया आतंक ही फैलाया अहिंसा और शांति कभी समझ पाये हो ? तुम दो कौड़ी के लोग हो किसी के ईशारे पर नाचने वाली कठपुतली हो तुमने कभी जाना है देशभक्ति क्या होती है ? तुमने कभी भी भगत सिंह की तरह हथियार नही उठाया तुम्हें तो पता ही नहीं है राष्ट्रहित क्या होता है ? जिस तरह से चिखते हो बंदूक लहराते हो दहशत और आतंक फैलाते हो पता है... तुम्हें क्या कहते हैं लोग ? देशद्रोही,दहशतगर्द,आतंकवादी और साथ में चौराहे पर फांसी लटकाने की मांग करते हैं.... तुमने कभी समझा ही नहीं मानवता क्या होती है | *#असकरन_दास_जोगी*

सहयोग

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*#सहयोग* सहयोग सामान्य अर्थ में आवश्यकता और पूर्ति का संगम है जिससे प्राप्तकर्ता या प्रदाता स्वयं को धन्य भाव में भर लेते हैं गाय की तरह दूहना यह सहयोग लेना नहीं है अपनी आवश्यकता से अधिक किसी के सहयोग का दोहन करना अन्ततः फायदा उठाना कहा जाता है सहयोग लेने की कामना में स्वयं को परिस्थिति का मारा दिखाना कहाँ तक सहीं है अगर परिस्थिति आपके वश में है सहयोग मानवता है मधुर सम्बन्ध है मैत्री और अपनत्व है जो हमें संकट से उबारता है लेकिन इसका दुरुपयोग सारी मधुरता और अन्य अवसर खत्म कर रख देता है सहयोग में समय सीमा की बड़ी महत्ता होती है मामला देने का हो या लेने का और इतनी समझ हममें होनी चाहिए कि सहयोग का सदुपयोग करें दुरुपयोग से अपना व्यक्तित्व न बिगाड़ें | *#असकरन_दास_जोगी*

मैं कैसा हूँ?

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*#मैं_कैसा_हूँ ?* आइने को साफ करता हूँ कभी दायें कभी बायें चेहरे को पलटता हूँ और मुस्कुराकर खुद को उसमें देखता हूँ आइना घर का हो या बाइक या फिर शहर की दीवारों पर लगी हो काँच कई पोज़ बनाता हूँ मैं कैसा हूँ यह छोड़कर चेहरे को निहारता हूँ अाइने को पानी,थूक,कपड़ा न जाने किस-किस से चमकाता हूँ किन्तु मैं कैसा हूँ हर बार यही भूल जाता हूँ आइना हम कैसे हैं यही दिखाता है हमने हमेशा अपने चेहरे को देखा कभी खुद की नज़र से नज़र नहीं मिलाया मैं कैसा हूँ यह मुझे जानना चाहिए चेहरे का क्या ? कल बचपन था आज जवानी है कल बुढ़ापा होगा | *#असकरन_दास_जोगी*

ए सुंदरी

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*#ए_सुंदरी* तैं जब रीसाथच भजिया कस गुजिया कस अउ अइरसा कस मुँह ल फुलाथच करील कस केवँची हे तोर करेजा तभे तो जब रीसाथच त खुद बताथच अउ अपन होके रीसाथच अपन मन के मान जाथच सोंचथच,बोलथच गुनिक हच गुनवाथच जागे अउ जगाय के आगी हे तोर भीतर गुँगुर-गुँगुर गुँगवाथच अउ दगदगाथच घलो मोर हीरौंदी,बुंदेला,दौना सुंदरी मोर मयारू मैना आच सुन न.... गुरतुर ले करू कस्सा झन होबे कभू  | *#असकरन_दास_जोगी*

बजाबोच

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*#बजाबोच* हम बजाथन अउ बजाबो कतको बजा नहिते.... कतको के बाजा चुनाव के बेरा हे बढ़िया प्रचार चलत हे कोनो नइ कहत हे कोनो ल नइ देवन सब बर हाँ,हव के हुँकारू हे कहत हें डारबो तोरेच म दिनमान रात हे बिकाल हे लेना देना खूब बड़हर के घर उतरत हे लालच दे बर बंटावत हे पइसा,दारू अउ लुगरा गाड़ी मोटर के गर्राटा अड़बड़ गाँव के गली-गली जेन हिरक के पाँच बछर ल नइ आय रहिच ओहू हर आ के पाँव परत हे अउ कहत हे कका.... एक बार अउ मउका दे देते पंच,सरपंच,जनपद अउ जिला अपन-अपन बाँटत हें फेर अब जनता जागे बरोबर लागत हे खाहीं कतको के... अउ देहीं जेला देना हे जेला सुनना हे सुनव जेला गुनना हे गुनव नइ सुनना हे त कान म ठेठा बोज लव हम तो बजाते आवत हन अउ बजाबोच | *#असकरन_दास_जोगी*

पीढ़वा

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*#पीढ़वा* बइठे बर घर म राख पीढ़वा जेवन जेवना हे त लान पीढ़वा एक पटनी म दूठन खूरा ठोंकबे तब बनथे पीढ़वा तैं कइसनो बइठ तैं कइसनो राह सगा-सइनी बर सम्मान होथे पीढ़वा अउ सुन न... भुँइयाँ म सोय के बेरा मुड़ के टेंका होथे पीढ़वा ननपन म पीढ़वा बर भाई-बहिनी म घलो होथे झगरा अउ गुरु सो ज्ञान लेबे त देथे वोहर... पाठ पीढ़वा कतको के सुन ले अउ कइसनो कर ले पकड़ के अकड़ म कभू झन रहिबे गुरु घासीदास जी हर कहिबे करे हे बैरी घलो ल देहव... ऊँच पीढ़वा | *#असकरन_दास_जोगी*

वसन्त

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*#वसन्त* वसन्त तब आता है जब एक लड़की और एक लड़के का हाथ पीले किये जाते हैं और जिससे सभी... भविष्य के मनोहारी सपने बुनते हैं वसन्त को प्यारी लगती है एक महिला और उसके अंग-अंग में सरसो से भी गहरा पीला रंग लेकर पहुँच जाता है इसकी पहचान है पाँव भारी होना तब सभी इसका स्वागत करते हैं वसन्त लोगों को बहुत बुरा लगता है जब हम मिट्टी होकर मिट्टी में मिलने तैयार रहते हैं और हमारे अंगों में हल्दी में लेप लगाये जाते हैं तब हमारे प्रियजन दु:खी रहते हैं वसन्त षड़यंत्रकारी भी है वसन्त प्रेम और गुस्से में लाल भी दिखता है किन्तु... अपने आने और जाने में न जाने कितने गुल खिलाता है  समझो इस बात को भेद खुल जाने के भय से यह पीला पड़ जाता है | *#असकरन_दास_जोगी*

घोंसला

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*#घोंसला?* हम कब तक उड़ेंगे आशाओं के आसमान में प्रहर-प्रहर पंख फैलाये शाम को घोंसला भी तो चाहिए संघर्ष को सुकून देने के लिये ऐसा घोंसला हम दोनों भी बना सकते हैं अगर तुम हामी भरो जीवन भर के लिये सपनों की सूखी लताओं को चुनेंगे और बुनेंगे तटस्थ तिनकों को सुनों... तब अपने घोंसले में सारी दुनिया होगी अपने घोंसले को सादगी,विश्वास और समझ की साख,झुरमुट या फिर धरा की गोद में निर्मित करेंगे अपना घोंसला घिरा होगा प्रेम के कोंपल पौधों से जो अन्ततः खुशियों की हरियाली बिखेरेगी अपने आँगन में सुनों... क्या सच में बना सकते हैं हम अपना घोंसला ? *#असकरन_दास_जोगी*