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Showing posts from January, 2021

क्या करोगे ठहर कर ?

 #क्या_करोगे_ठहर_कर...? पारदर्शी हो  आपका व्यक्तित्व  हर कोई निहार सके  आपकी सादगी को  प्रेम की शीतलता  बांटते रहो  यही तो सद्भावना लाएगी  सींच दो  अपने सुंदर विचारों के जल से  जन-जन के मन को  तब जाकर निर्मलता फैलेगी दुनिया के इस छोर से  उस छोर तक बहना  जहाँ तक प्रेम की आवश्यकता है  क्या करोगे ठहर कर ? चलो बहते चलें  पानी की तरह  मन से निर्मल होकर | #असकरन_दास_जोगी

जग फिरें क्या ?

 #जग_फिरें_क्या ?  रह जाता हूँ  सुनकर अपने दिल की  ख़्वाहिशों में... बंदिशें ज़रूरी है मुस्कराने की आदत हमने डाल ली  क्योंकि... लोग कह रहे थे  तसल्ली ही तो एक दवा है  हजारों दर्द का  मन का  कभी होता है  मन का  कभी होता नहीं  सुनो... मनका फेरते-फेरते  जग फिरें क्या ? #असकरन_दास_जोगी

जाड़ कब जाही

 #जाड़_कब_जाही ? मांघ लग गे  पूस भाग गे  हाथ गोड़ अभी ले ठिठुरत हे  बता दाई... जाड़ कब जाही ? जुन्ना लुगरा लुहंगी कपड़ा  खोज-खोज निकालत हे जाड़ ल डरहवाय बर  हमर दाई गदरी बनावत हे  कपड़ा के रोम-रोम ल छेद-छेद सुजी बुलकावय  मया के धागा म  गजब गदरी सिलावय  रोठ-मोठ ले  धीरे-धीरे दुबरावत हे  देखव-देखव... गुढ़वा माढ़े गुटेरत हे  जाही कब जाड़  जब मैं पूछत हँव  सुनव संगी... दाई मोला बतावत हे  राह फागुन ल अगोर  मांघ ल भागन दे  जाड़ जाही जीव जुड़ाही | #असकरन_दास_जोगी

माटीच ह महान हे

 #माटीच_ह_महान_हे अपने आगी म अपने जरबे  नइ जरना हे त  ईर्ष्या द्वेष अउ क्रोध ल छोड़  अंग के आगी ल  बमलन झन दे  नहीं त... लुलवाबे अंगना-अंगना  आगी जब लगथे  त एक जगा रूकय नही  आज दूसर बर बारबे  त काल तोरो बर बरही  राख होवइया मन  माटी होवइया ल झन उकसावव  जानत हव न...  माटीच ह महान हे | #असकरन_दास_जोगी

मैं कातिब तो बन जाऊँ

 #मैं_कातिब_तो_बन_जाऊँ निहारना है रोज  नूर-ए-दीदा को इंतज़ार नही... मिलना ज़रूरी है टेढ़ न चल  इस राह में  अज़ाब सह लूँगा  मैं कातिब तो बन जाऊँ  तेरे इख्लास का  अदम हूँ  अत्फ़ दे  जो चले अज़ल तक  सुनो... अब्र से हो बारिश  ख़जालत की निकाल मुझे गिर्दाब से  चूम लूँ जबीं तेरा  तेरे जज़्ब में झोलीदा है  टेढ़ मेरी न कर नासबूर  इस निगार को देख ही  अब्तर होते हैं  मेरे जुदाई-ए-ज़ार | #असकरन_दास_जोगी

अपने विचारों के पथ पर

 #अपने_विचारों_के_पथ_पर किताब पढ़ना आसान है  लेकिन... उसमें लिखी गई अच्छी बातों को  आत्मसात करना  कठिन होता है  शब्द संयोजन  अच्छे हो सकते हैं  किन्तु... उनमें परहित और मानवता होनी चाहिए कवि,शायर,साहित्यकार,लेखक और कलमकार  स्वयं को कहते फिरते हैं  सार्थक तो तब हो  जब आप दरबारी न हों प्रेम,ख़ुशी,बंधुत्व,सद्भावना,समानता और निरपेक्षता पर  चाहे जितना भी लिख लो  अच्छी से अच्छी बातें  क्या होगा इनका...? जब आपमें छल,कपट,भेदभाव कूट-कूट कर भरा है विचारक को  अपने विचारों के पथ पर  चलना चाहिए  यह नहीं कि... कथनी और करनी में अंतर हो... | #असकरन_दास_जोगी

वे पुराने सपने हैं

 #वे_पुराने_सपने_हैं रात का रोज आना जाना लगा है  बस आराम नही है  भाग दौड़ बहुत है  कोई कहे तो... आ बैठ जरा  चलने दो ज़िन्दगी को  अपनी मिठास  समय के साथ जा रही है  अब सब कुछ  कड़वा ही लगता है  नींद क्या होती है  कभी-कभी भूल जाता हूँ  जो कुछ याद है  वे पुराने सपने हैं  सुबह का इंतजार है  कब होगा पता नहीं  उम्मीदों की किरणें  रोज आँखों में दिखती हैं | #असकरन_दास_जोगी

सच कहूँ

 #सच_कहूँ... उन्हें सच बोलना चाहिए  जिन्हें झूठ सुनना पसंद नही  मैं सच बोलने का... प्रयास करता हूँ  कुछ लोग  बड़े जोर शोर से कहते हैं  सच्चे का बोलबाला झूठे का मुँह काला क्या वे सच में सच बोल पाते हैं ? सच कड़वा होता है  और कड़वा निगलना कठिन  सच कहूँ... सच सार्थक और सराहनीय होता है हम यह भी कहते हैं  सच पर आँच कहाँ किन्तु सच्चे के साथ ही  लोग तीन पाँच करते हैं सच की राह में  आह निकलना ही है  किन्तु आपको पता होना चाहिए  सच्चे का ही सम्मान होता है | #असकरन_दास_जोगी

मैं प्रकृति से प्रेम क्यों न करूँ ?

 #मैं_प्रकृति_से_प्रेम_क्यों_न_करूँ ? तुम पर मरना  मरने से अलग है  हाँ ये मुहब्बत है  बेबाकी से कह नही पाते  लेकिन आँखों की ज़ुबान तुम जैसा कोई कहां समझता है  तुम्हारी आँखों की भाषा प्राकृत की ध्वनि है  अंगों की तरंगें  वीणा की तान  जो खिंचती है अपनी ओर सुनो... तुम हरेभरे वृक्ष जैसी हो  ज़िन्दगी में जो दु:ख और समस्याओं के ताप हैं  उनसे राहत देती हो मेरा सर्वस्व तुम्हारे लिए  कोई बताये  मैं प्रकृति से प्रेम क्यों न करूँ ? #असकरन_दास_जोगी

हमारी आत्मा की तरंगें

 #हमारी_आत्मा_की_तरंगें मेरा मन  मेरी आत्मा  प्रेम के गीत गाते हैं  तबले की थाप  और वीणा की तान में  मेरे प्रत्येक शब्द में  हमारे सम्बन्ध की  सुगन्ध है  जो महकते हैं मिट्टी की तरह  तुम्हें सुनते-सुनते  तुम्हें सुनने की आदत सी हो गई है  सुनो... तुमसे मुहब्बत हो गई है  है बहुत कुछ कहने को  पर कह नही पाता  तुम समझ लिया करो  मैं समझ से परे तो नही हूँ ? होगा ख़त्म एक दिन  यह ख़ामोशी और यह दूरी   तब... हमारी आत्मा की तरंगें  गूँजेंगी ब्रम्हाण्ड में | #असकरन_दास_जोगी

जीवन में संघर्ष करना

 #जीवन_में_संघर्ष_करना  अपने वजूद की तलाश करना  अर्थात्...  जीवन में संघर्ष करना  हमारा व्यक्तित्व और ज्ञान  अहम् से दूर हों  सफलता और सम्मान  तभी मिलता है  आप तर्क करें कुतर्क नहीं  क्योंकि प्रत्येक विषय में ज्ञान रखने वाले  अपने आप को सर्वज्ञाता और सम्पूर्ण नहीं समझते पता है...  गुरु घासीदास जी ने भी कहा था  मुझे किसी से छोटा या बड़ा न बतलाना  सीखना,जानना एक सतत प्रक्रिया है और आपको ज्ञान आपके अनुभव से मिलते हैं  जितना आप पढ़ते हैं  वह सब आधार सामग्री है जो आधार सामग्री को समझते हैं  वे ज्ञान तक जरूर पहुंचते हैं  और जो ज्ञान को समझ कर धारण कर लिए  उन्हें उनका वजूद मिल ही जाता है | #असकरन_दास_जोगी

वह मोदी से भी क्रूर है

 #वह_मोदी_से_भी_क्रूर_है वह अपने में मस्त है  मैं अपने में मस्त हूँ  हम लड़ नहीं पाते  परिस्थिति... अपने आप ही पस्त है  कभी बड़बड़ाती थी कान में  वह भी मधुर लगता था  किसी संगीत के राग की तरह  मैं तड़प रहा हूँ  सरकार से छले हुए  किसान की तरह  और वह मोदी से भी क्रूर है  समझती ही नहीं.... मेरे सत्याग्रह को  बातें वह जुमले की तरह करती है  मैं उम्मीदों में रहता हूँ  मैं दिल की बात सुनना चाहता हूँ  और वह मन की बात करती है  राष्ट्रपति का कहाँ चलता है  मैने ज्ञापन बहुत दिया  बस आश्वासन ही तो हाथ लगता है  सुनो.... क्या मेरे भी अच्छे दिन आयेंगे ? #असकरन_दास_जोगी

यायावर

 #यायावर ठहर नही रही है ज़िन्दगी  बस दौंड़भाग लगा है  हर तरफ शोरगुल मचा है  और मैं यायावर  दुनिया जंगल है यहां संकरे रास्ते  पठार,पर्वत,खाई  और धूप छाँव है  एक राहगीर  डेरा तो डाल सकता है  लेकिन घरौंदा कैसे बनाये तूफान मन में हो  या वन में हो  पथिक असुरक्षित ही होता है  उसे चाहिए... शीतल हवाएँ  जो मन और वन  दोनों को सुकून दे सके रास्ते में ठोकर लगते हैं  ठोकर से चोट  और चोट से घाव  सुनो... घाव मिटाने के लिए  मुहब्बत का मरहम जरूरी है मैं यायावर  पृथ्वी,हवा,पानी,बादल, समय और ज़िन्दगी भी यायावर कोई कहे तो... चलो साथ हो लेते हैं | #असकरन_दास_जोगी

मैं जानता हूँ

 #मैं_जानता_हूँ उनके हाथों से  फिसला हुआ रेत हूँ  पता है...? मैं आगे बढ़ा हुआ समय हूँ कह दो उन्हें  मेरा ख़्वाब न बुना करे उन टूटे हुए धागों से जुड़कर  उड़ती हुई पतंग हूँ आसमान मैने देखा है  और आसमान का रंग भी  मुझे क्या समझाओगे...? मै जानता हूँ  गिरगिट का रंग बदलना क्या होता है बदलना मुझे नही आता  लोग बदलते हैं  हम तो वही हैं  बस लोग आते जाते हैं मैने आने वालों का स्वागत किया  जाने वालों को सकुशल विदा वे सब जुदा हो गए  जो नज़र से उतर गए | #असकरन_दास_जोगी

हम उन्हें मानवता सीखाते हैं

 #हम_उन्हें_मानवता_सीखाते_हैं उनके सीने में  जैतखाम गाड़ते हैं  उनकी जाति उनका धर्म  सदियों से पशुवत है  हम उन्हें मानवता सीखाते हैं  उन्हें  सत्य,अहिंसा,शांति,दया,करुणा,प्रेम, परहित,अधिकार, न्याय और नारी सम्मान  रास नही आता  वे पत्थर पूजते पत्थर हो गए हैं वे युगों-युगों से रणछोर कायर हैं  साम,दाम,दण्ड,भेद,छल और कपट अपनाते हैं  पता है...? ये नकली योध्दा स्वयं को इतिहास में  गुरिल्ला और छापामार युध्द के वीर बताते हैं साम्प्रदायिक दंगे कराना  लोगों को उकसाना  छुआछूत,भेदभाव और जातिवाद को बढ़ाना  इनके नस-नस में है  सुनो... इन्हें धर्म निरपेक्षता और समानता का परवरिश दिया ही नहीं जाता इनके मूल में शूल है  जो सिर्फ चुभना जानते हैं  कभी ये पुष्प की तरह खिले ही नही  जानते हो...? ये आतंकवादी धर्म को क्या जानेंगे | #असकरन_दास_जोगी

मैं संयम साथ रखा हूँ

 #मैं_संयम_साथ_रखा_हूँ कभी तो किनारा मिले  मैं हमेशा बीच में ही रह जाता हूँ  पतवार चापते... उम्मीद है  लहरें मेरे विपरीत न हो  चलने लगेंगी हवा भी  जरूर एक दिन मेरे समर्थन में  नाव छोटी है  लेकिन इरादें नही  सुनो... समय और समस्या से लड़ना  विपरीत धारा ने ही सिखाया है  जल की तरह ही  अथाह है आत्मविश्वास  तभी तो.. अब तक थका और टूटा नहीं हूँ इस बीच से  उस किनारे तक जाना ही है  पता है... मैं संयम साथ रखा हूँ | #असकरन_दास_जोगी

क्योंकि मैं मज़दूर हूँ

 #क्योंकि_मैं_मज़दूर_हूँ मैं मज़दूर हूँ  कोई मुझसे प्रेम क्यों करे  भला तंगहाली में रहना  किसे पसंद होगा ? महलों में या झोपड़ों में  रहने वाली लड़कियों के  सुहाने सपनों में  गलती से भी मैं नहीं आता  अगर आता हूँ... तो कोई बताये जरा ? मैं भी प्रेम करता हूँ  मेरे सीने में भी दिल है  किन्तु कह नहीं पाता  क्योंकि मैं मज़दूर हूँ सबको पता है  गुलशन और गुलशन की बहार  श्वेत घोड़े पर सवार होने वाले  राज कुमारों के लिए होते हैं  मज़दूरों के लिए नहीं छोड़ो ख़यालों की दुनिया  हम सृजनहार हैं  हमें तो प्रेम करने का अधिकार  सिर्फ अपने श्रम और काम से है | #असकरन_दास_जोगी

फिर आगे कदम बढ़ाना

 #फिर_आगे_कदम_बढ़ाना  कालीन पर पैर रखकर  उड़ना नहीं  आप उड़ो... अपने हौसले की उड़ान भरकर  किसी को सीढ़ी बनाकर  उस पर चढ़ना नहीं  आपको तो... अपने मेहनत के दम पर  बुलंदी को छूना चाहिए  उन काँधों पर बन्दूक रखकर  बिल्कुल नहीं चलाना  जो आपको... कायर और छलिया बना दे अगर सांप मारना है  तो स्वयं को ही निकलना होगा  क्योंकि बुजुर्गों ने कह रखा है... पड़ोसी से सांप नहीं मरते आपको तो... पहचानना है  खुद की लगन,क्षमता,आत्मविश्वास दृष्टिकोण,दशा और दिशा को  फिर आगे कदम बढ़ाना... अपने लक्ष्य की ओर | #असकरन_दास_जोगी