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Showing posts from May, 2021

बता यह है कौन ?

 #बता_यह_है_कौन_? उनसे मुलाकात नहीं  कोई बात नहीं  फिर भी उनसे मुलाकात हुआ  सुनो... उनके साथ एक महाशय  प्रश्न लिए बैठा था  बता यह है कौन...? कमरा चिखने लगा  सोफे काटने लगे  पंखे के गले में खराश होने लगा  वाणी के वीर जब यह बोले  चांद भी बादल में छिपने लगा वह कहती क्या  हम अनजाने तो नहीं  मेरे लिखे एक-एक शब्द को  पढ़ती और समझाती  बस मित्र हैं... यही कहती बैठा था मैं भी वहीं  मैने भी साथ दिया  उनकी आँखों को और अपने अंदर को  झाँक लिया  यही कहा...  मैं तो सिर्फ लिखता हूँ  कवि हूँ या प्रेमी पता नहीं  लेकिन मित्र जरूर हूँ जिन पन्नों को वह पलट रही थी  वह भी अब ख़त्म हुआ समझाने का वह वक्त विशिष्ट  पता है... मैने दोनों को शुभकामनाएँ दी रात हो चली थी मैने वहाँ से जाने का नाम लिया घबराई थी  उनके बीच में सन्नाटा था  महाशय कीआँखों में  शंका का शूल  कमरे में वे सिर्फ दोनों  क्षण-क्षण जैसे सर्प  वह कहने लगी  जाओ नहीं... कुछ देर में तुम आना  मैं अकेली हूँ साथ निभाना परिस्थिति को भांपते  मैने भी हामी भर दिया  मेरी जरूरत तो है ही यहाँ... अधरों के शब्द  मैने आँखों से बोला जैसे ही बोला  आँख खुल गई  सपनों क

तुम पंख वाली परी हो

 #तुम_पंख_वाली_परी_हो साहूकार की चक्रवृद्धि ब्याज की तरह  बढ़ती जा रही तुमसे दूरी  तुम्हीं बताओ... भला मैं इसे कम कैसे कर पाऊँगा ?  मैने तो पहले ही कहा था  फर्क तुम्हें नहीं दिखता  लेकिन मुझे तो दिखता है  तुम तरुवर हो  और मैं तिनका आप से तुम होना आसान है  किन्तु हम होने के लिए  मुझे भट्ठी में पकते ईंट की तरह  जलना होगा क्या यह भेद मिट पाएगा ? जो हमें हम बना दे ऐसा वक्त शायद ही आये  मुझे रहने दो  धरती पर ही  तुम पंख वाली परी हो  मेरे लिए धरती है... आसमान नहीं बना | #असकरन_दास_जोगी

मैं उस वक्त के इंतज़ार में हूँ

 #मैं_उस_वक्त_के_इंतजार_में_हूँ मुझे जो आकर्षित करती है  वह तुम्हारी सादगी है  सच कहूँ... तुम प्रकृति से अलग नहीं  सेमल के फूल की तरह  तुम लाल भी होती हो  तो सरसों के फूल की तरह पीली भी  तुम्हें निहारते रहना चाहता हूँ  और तुमसे गले लगकर  सारी इच्छाओं का गुल्लक  तोड़ देना चाहता हूँ  मैं चाहता हूँ  गुल्लक से निकले  ख़ुशी,दु:ख और सारे सपनों को  तुम अपने हाथों से सहेजो  सुनो... मैं उस वक्त के इंतजार में हूँ  जहाँ हम मिलें  बिल्कुल बारिश और धरती की तरह  तब हमारी सौंधी-सौंधी महक से  एक किसान की तरह प्रकृति भी आनंदित हो उठे | #असकरन_दास_जोगी

आरम्भ से अंत तक

 #आरम्भ_से_अंत_तक वह एक छोटी सी कविता है  जिसे मैं गुनगुनाता रहता हूँ  एक बाथरूम सिंगर की तरह  जब वह सुनेगी मुझे गुनगुनाते हुए  तब वह बहरी हो सकती है  क्योंकि मैं कौआ से ज्यादा कर्कश हूँ  इस लिए उसे मुझे सुनना नहीं पढ़ना होगा  उस पर मैं  एक महाकाव्य लिखना चाहता हूँ  ठीक उसी तरह  जैसे कालिदास और मलिक मुहम्मद जायसी ने लिखा था सुनो... जयशंकर प्रसाद की तरह  उसकी प्रकृति को  नमन् करना चाहता हूँ  और महादेवी वर्मा की तरह  उसे अपनी वर्षा सुन्दरी लिखना चाहता हूँ मैं कुछ भूलना या छोड़ना नहीं चाहता  आरम्भ से अंत तक  प्रत्येक खण्ड व अध्याय में  प्रेम का ही पल्लवन हो | #असकरन_दास_जोगी

मेरी छोटी सी कविता

 #मेरी_छोटी_सी_कविता रोज यही मैं काम करूँ  गीत लिखूँ और गान करूँ  मेरी छोटी सी कविता जब भी लिखूँ ध्यान धरूँ खुद को मैं कुछ मौन करूँ मेरी छोटी सी कविता अन्तर्मन से निकलती है  शब्दों में वह ढलती है  मेरी छोटी सी कविता लोगों को वह समझाती है  मुझको भी आईना दिखाती है  मेरी छोटी सी कविता अपने चरण और पद में  सशक्त अपने मद में  मेरी छोटी सी कविता अल्हड़,भोली कितनी प्यारी है  सबको भाती सबसे न्यारी है  मेरी छोटी सी कविता जब भी लिखूँ अधूरी सी लगती  गागर में सागर भरी हुई लगती  मेरी छोटी सी कविता | #असकरन_दास_जोगी

ज़िन्दगी समन्दर है

 #ज़िन्दगी_समन्दर_है उसके ख़ाके में  मैं बैठ नहीं पाया जब तक रहे हम साथ  क्या वह परखती रही दिन रात ?  उसके लिए सब कुछ छोड़ा  अपनी तरक्की अपना ख़याल  पता है...? उसे मैं सब कुछ मान बैठा था अपना  साथ रही छोड़ने के लिए  जिसे मैं आगे बढ़ा रहा था  पता ही नहीं चला  उसका भविष्य... कब मेरे साथ असुरक्षित हो गया ? हर सुबह होती थी उसे देखकर  उसकी आँख में कटती थी रात  अब दिल कहता है  देखने को भी न मिले वह  दुनिया के किसी भी मोड़ पर अभी तालाब सूखा है  नदियाँ नहीं  छोड़कर जाने वाले से कह दो  रह लेंगे जी लेंगे  उसे मालूम हो  ज़िन्दगी समन्दर है | #असकरन_दास_जोगी

ताहुकदार

 *#ताहुकदार* जोंगे अउ तियारे ल आथे  फेर अंगरी कटा जही तभो मुतय नहीं गोड़ म  फलल-फलल भाषण देही  बइठे-बइठे खुर्सी टोरही  फेर एक ठन आड़ी के काड़ी ल नइ करय  एला जोंगबे त वोला जोंगही  करतेच हँव कहिके टरक दिही  अउ करही त... परोसीतार मारही  कलेक्टर,मुनिम,मोकड़दम का नइ समझय अपन आप ल  सुनव... अइसनेच मनखे ल  हमर गाँव गँवई डहर कहिथैं  बड़ा आये अपन आप ल  ताहुकदार समझइया | #असकरन_दास_जोगी

फेसबुकिया फ़ेमिनिज़्म

 #फेसबुकिया_फ़ेमिनिज़्म कुछ नारीवादियों से जुड़ा हूँ  उनके विचारों को पढ़ने के लिए मिल जाता है  फेसबुक की मेहरबानी है  उन्हें पढ़ने से लगता है  कल ही क्रांति होगी  और नारी अधिपत्य/मातृसत्ता स्थापित हो जाएगी  उनके विचारों में  पुरुषों के लिए घृणा,गालियों का अम्बार मिलता है  और शब्दों का प्रयोग  वास्तविक लेकिन अश्लीलता से ओतप्रोत  जिन शब्दों को  वे फेसबुक में लिखती हैं  ऐसे मर्यादित शब्दों को  क्या अपने घर-परिवार में  वाक्य प्रयोग कर पाती होंगी ? यह लैंगिक सामाजिक समानता की वैचारिक लड़ाई है  जिसका उद्देश्य  समाज को समृध्द और सुशिक्षित करना होना चाहिए  न कि सशक्तिकरण को ताक में रखकर स्वेच्छाचारिता को बढ़ाना फेसबुकिया फ़ेमिनिज़्म को पढ़ने के बाद  विचार करना पड़ता है  क्या यही असली नारीवाद है ? क्या नारीवाद के लिए सिर्फ महिलाओं ने लड़ाई लड़ी है ? क्या इस लैंगिक समानता की लड़ाई में इन्हें पुरुषों का साथ नहीं चाहिए ?  मैं मानता हूँ  मैं उन नारीवादियों से जुड़ नहीं पाया हूँ  जो मातृसत्ता नहीं सामाजिक समानता चाहती हैं  हम भी चाहते हैं  पितृसत्ता जैसी बात न रहे  सुनो... फेसबुकिया फ़ेमिनिज़्म से

रानी बइठे काज मा

 #रानी_बइठे_काज_मा कुहकू माहुर लाल रे,लच्छा ऐंठी सोह | रुपिया सूता तान के,मारत मन बड़ टोह ||0|| मारत मन बड़ टोहली,चंदा चमकत आज | रानी बइठे काज मा,करे सोलहो साज ||1|| करे सोलहो साज जी,दौना खोंचे कान | सुघ्घर सोभत गोदना,छेंड़त अंतस तान ||2|| छेंड़त अंतस तान हे,सबके मन ला भाय | संस्कृति सँघरे संग मा,छत्तीसगढ़ी ताय ||3|| छत्तीसगढ़ी ताय जी,हमर धरोहर पोठ | भाखा जन जन के बने,बढ़िया होगे गोठ ||4|| बढ़िया होगे गोठ हर,देखत बने सुहात | उज्जर परछी बीच मा,जांता बेंठ घुमात ||5|| जांता बेंठ घुमात जे,पीसत चाँउर डार | मुस्की मारत खूब हे,खोल मुठा के धार ||6|| खोल मुठा के धार ला,पीसत हवय पिसान | लागे जी गजमोतियन,करलव बने धियान ||7|| करलव बने धियान तुम,बनही रोटी रोट | आँटा बाँटा बाँट के,खाहीं बड़का छोट ||8|| =========================== घुरुर घुरुर घूमत हवै,जांता बोलत जाग | बइठे अब झन राह तँय,काम बुता मा भाग || #असकरन_दास_जोगी

तुम दीप्ति हो

 #तुम_दीप्ति_हो तुम्हारी सादगी  तुम्हारे लोक चित्रों की तरह  सहज और भावुक हैं  तुम्हारे प्रभाव से  कोई प्रभावित न हो  ऐसा हो ही नहीं सकता क्योंकि तुम कहती हो... जीवन का हर पल आपका ही है  इसे कैसे जीना है ये आप खुद ही तय करें चटक चमकीली  तितली हो  जिसके ख़्वाहिशों के पंख में  इंद्रधनुष के सातों रंग है  पता है...? तुम सारा आसमान अपनी बाहों में समेट लेना चाहती हो उतनी ही अल्हड़ हो जितना पवन  सरसों और धान के खेत में  बौराई सी चलती है निश्चिंत होकर बच्चों से भी बच्ची और प्यारी लगती हो  जब तुम अपने  ज़िद,मासूमियत और चाह में चहक रही होती हो  किन्तु जब-जब गुस्सा नाक में लेती हो  तब-तब आग उगलने वाले डायनासोर से भी ज्यादा ख़तरनाक लगती हो सम्बन्ध बचाने के लिए मीठा नहीं बोलती  जो बोलती हो कड़वा ही बोलती हो  कभी-कभी तुममें अधिनायकत्व दिखने लगता है  सुनों... तुम बहुत मतलबी हो  परन्तु इतना भी नहीं  कि किसी दूसरे का अहित कर दो तुम्हें समझ पाना  हर किसी के लिए आसान नहीं  तुम हर मसले में बहुत सुलझी हुई हो  लेकिन थोड़ी उलझी हुई हो  मकड़ी की तरह  अपने ही जाल में फंस जाती हो जैसी दिखती हो वैसी हो नहीं  तुम

उनके लिए

 #उनके_लिए हमारा अपनत्व उनके जीवन में  बहुत देखे हैं  हमारा समय  उनके लिए  पूरा जीवन खप गया क्या  हमारी गिनती उनके जीवन में  तुम्हारे जैसे बहुत हैं  हमारी अच्छाई  उनके साथ  औरों से अलग थोड़ी न हो  हमारी उपस्थिति  उनके लिए  कोई बड़ी बात थोड़ी न है  हमारा महत्व  उनके जीवन में  तुम कोई विशेष थोड़ी न हो  हमारा प्रेम  उनके लिए  कई लोग करते हैं | #असकरन_दास_जोगी

जाओगी ?

 #जाओगी...? तुम्हें मेरी परछाई भी  अगर रास नहीं आती  तो कर लो किनारा... वैसे भी हम मज़धार में ही हैं हम डरते नहीं  विपरीत धार से  डूबेगा तो सिर्फ नाव पता है... हमने बचपन में ही  तैरना सीख लिया था तुम्हें आता नहीं  वक्त की नज़ाकत को समझना सुनो...समुन्दर की ख़ामोशी को  खूब भाप लेते हैं  हमें पता होता है... तूफान किस ओर से और किस गति से आना है प्रेम,चाह,सपनें,विश्वास और समर्पण  सब तो दिया तुमको ही  शायद मैं नहीं हूँ  तुम्हारे लिए जाओगी...? तो चुपचाप चली जाना  तुम्हें पता तो है न  यही कि मैं जाने वालों से  सवाल नहीं करता | #असकरन_दास_जोगी

उसके सामने कुछ भी नहीं

 #उसके_सामने_कुछ_भी_नहीं मन इतना तेज़ है कि उसे पता ही नहीं चलता  और उसे देखकर लौट आता है  दिखने में बिल्कुल भैंस जैसी  और आवाज़ कौए की तरह  वह बड़ी प्यारी लगती है  चले तो चींटी न मरे  पर चलती है हथनी जैसी  पता है... औरों से हटकर है  गर्दन सुराहीदार भले ही न हो  और कमर कमरे जैसा है  फिर भी... कितनी अच्छी लगती है नानी और दादी के कहानियों की  सारी राजकुमारियाँ,परियाँ और अप्सरायें  उसके सामने कुछ भी नहीं | #असकरन_दास_जोगी

एकाकी

 #एकाकी  कितना संघर्षशील और साहस से भरा होता है  एकाकी होना  अपने में मस्त होना पड़ता है  स्वयं को  और अपनी क्षमताओं को पहचान देती है  एकाकी होना  एकाकी वही हो सकता है  जिसमें रचनात्मकता,शोध, कुछ नया करने की इच्छा  और जो खुद को चाहता हो एकाकी एक अभ्यास है  मंथन से विकारों की मुक्ति की  तब हम... अपने सार स्वरूप में आते हैं एकाएक हम एकाकी नहीं हो सकते  त्यागना पड़ता है  अपने द्वंद को एकाकी  शंति,सुकून और ज्ञान देकर हमें  औरों से अलग बनाती है  एकाकी ही एकांत है  और एकांत वह संत है  जिसके सानिध्य में  हम देदीप्यमान होते हैं | #असकरन_दास_जोगी

कह तो चुका हूँ

 #कह_तो_चुका_हूँ  गिड़गिड़ाने जैसा लगता है अब  उसे फोन लगाकर कहने में  यही कि... कभी कभार याद तो कर लिया करो कह तो चुका हूँ  कई बार  तुम्हारे बिना अच्छा नहीं लगता  किन्तु समझ ही नहीं आता  मेरा ऐसा कहते ही  क्यों वह मुझसे बात ही नहीं करती ? अकेले था  तब इतना सोचना नहीं पड़ता था  सूनापन ही साथी था  सुनो... आज का सूनापन काटने को दौंड़ता है दूरी कोई भी सह सकता है  लेकिन ख़ामोशी  सबसे ख़तरनाक होती है  पता है... हँसते हुए इंसान को रूला सकती है बड़ी कसकती है  उसकी याद  आँख में पड़े फूले की तरह  सच कहूँ... दिल और आँख दोनों जगह से निकालना मुश्किल है | #असकरन_दास_जोगी

परेतीन

 #परेतीन  परप परे म  परथच पाहो  अइसन तो हिरक्के आवच नहीं  कतको बलालँव कलप-कलप के सुन न... बड़ निर्मोही हवच फेर तोर ल सुघ्घर कोनो नइहे  ए संसार म  झूठ नहीं सच कहिथँव  कभू देख अपन आप ल  मोर आँखी म तोर मया के का कहना  होथँव चेत ल बिचेत  पता हे.... झूमरत रहिथँव  बोइर झूड़ा बीच फेर आज कल तोला का होगे  मिलच नहीं कहूँ  मैं तोर बर रोवत रहिथँव  ओय... अइसन काबर करथच....? निर्दयी परेतीन झन रीसा मोर ले  तोला कइसे मनाना हे  मैं जानथँव  अतकेच तो लेबे न...? चेरिहा भर चना मुर्रा  कारी चूरी  अउ लाली लुगरा के सूँत आय कर जाय कर  कोनो ल झन बताय कर  अंतस म तो समाय हवच  कभू मया घलो जताय कर | #असकरन_दास_जोगी

अच्छा लगता है क्या ?

 #अच्छा_लगता_है_क्या ? क्यों भला लॉकडॉउन लगाकर बैठी हो  मेरे लिए  तुम्हें तड़पाना  अच्छा लगता है क्या? तुम्हारी चाह में  हरारत है  नींद नहीं है  तप रहा हूँ तड़प में  पता है... कुछ लक्षण लगते हैं कोविड के  सांसों से कम मत हो जाना  ऑक्सीजन की तरह  मैं तो निपट ही जाऊंगा पगली  बिल्कुल कोरोना पेसेन्ट की तरह सुना है  तुम्हारे विचारों के  रेमडेसिवीर का कालाबाजारी हो रहा है  मैं तो खरीद भी नहीं सकता  तुम तो जानती हो  गरीब हूँ और ऊपर से बेरोज़गार भी रिएक्शन न हो तो  अपने प्रेम का टीका जरूर लगा देना  ताकि बाद में  मेरे फोटो पर टीका न लगाना पड़े | #असकरन_दास_जोगी

उसको पता हो

 #उसे_पता_हो  उस मिट्टी की तरह कोमल है  उसका हृदय  जिसे फेंटा गया है  घर और आंगन की छबाई के लिए उसके महक के आगे  सारे इत्र बौने हैं  वह मिट्टी के जैसी ही है  और सौंधी-सौंधी महकती है उसे पता हो... उसकी खुशबू मेरी आत्मा में बस गई है  वह बड़ी मनोरम लगती है  धान के उस बाली की तरह  जो अाधी हरी है और आधी स्वर्णिम एक किसान के लिए  जैसे उम्मीदों से भरी  उसकी बातें और विचार  मन को हिलोरती है  ये उतनी ही निर्मल है  जितनी खेत के मेढ़ से निकलने वाला पानी पता है.... उसका स्वभाव  बिल्कुल करंच के दातुन जैसा ही है  लगने के लिए तीखा  लेकिन सेहत के लिए लाभदायक | #असकरन_दास_जोगी

चारा सिरागे त मर बोकरा

 #चारा_सिरागे_त_मर_बोकरा " कोनो नठाही झन  कोनो दुरिहाही झन  जीयत ले कर ले मया संगी  बाद म कोनो पछताही झन " समय बड़ कुलकत रहिच  ठिनठिन धुन पकपक कहिके  अरे हाँथ म तो घन धरे रहिच  मोर मुन्डा मुड़ी हर  एके दांव के परे ल  राई छाई होगे  मुसवा बरोबर कोर्रत हे  करेजा ल  वोकर मया हर  जम्मो सुरता के कोरा ल देख  अउ करियागे हँव  चिहुर पार के रोवँव  के पढ़-पढ़ के  अरे मुक्का होगे हँव  जब ले मयारू  माटी म मिलगे वोकर बिना अंतस रोवत हे  काकर मेरा  अपन दु:ख सुनावँव मोर हाल तो बस अइसने हे  कहिथैं न... चारा के रहत ल चर बोकरा  चारा सिरागे त मर बोकरा | #असकरन_दास_जोगी

उसकी दुनिया

 #उसकी_दुनिया उसकी अपनी एक अलग दुनिया है  उसके लिए धरती,पानी,हवा,अग्नि और आसमान अलग है  पता नहीं वह किन तत्वों से बनी है  सूरज,चांद,सितारे पर्वत,पठार,नदी,झरनें और जंगल अलग है  उसके लिए तो  अलग से रात अलग से दिन होता है  पता नहीं कब जागती है और कब सोती है अपनी दुनिया में वह मस्त रहती है  चिड़िया की तरह चहकती,उड़ती है  पता है.... उसकी दुनिया में कोई भेद नहीं है हमारी दुनिया में वह घूटन महसूस करती है और कैद में रहती है उसके लिए  रिश्ते नाते,मर्यादा,शिक्षा, स्वाभिमान,अधिकार,न्याय  और चरित्र ही अलग है  उसे कोई पूछता ही नहीं  तुम क्या चाहती हो उसकी दुनिया  उसके मन में है  उसके एकांत में है  उनके विचारों में है  उसकी आज़ादी में है  क्योंकि वह एक लड़की है  हम उसे अपनी तरह मनुष्य थोड़ी न समझते हैं | #असकरन_दास_जोगी