आरम्भ से अंत तक

 #आरम्भ_से_अंत_तक


वह एक छोटी सी कविता है 

जिसे मैं गुनगुनाता रहता हूँ 

एक बाथरूम सिंगर की तरह 


जब वह सुनेगी मुझे गुनगुनाते हुए 

तब वह बहरी हो सकती है 

क्योंकि मैं कौआ से ज्यादा कर्कश हूँ 

इस लिए उसे मुझे सुनना नहीं पढ़ना होगा 


उस पर मैं 

एक महाकाव्य लिखना चाहता हूँ 

ठीक उसी तरह 

जैसे कालिदास और मलिक मुहम्मद जायसी ने लिखा था


सुनो...

जयशंकर प्रसाद की तरह 

उसकी प्रकृति को 

नमन् करना चाहता हूँ 

और महादेवी वर्मा की तरह 

उसे अपनी वर्षा सुन्दरी लिखना चाहता हूँ


मैं कुछ भूलना या छोड़ना नहीं चाहता 

आरम्भ से अंत तक 

प्रत्येक खण्ड व अध्याय में 

प्रेम का ही पल्लवन हो |


#असकरन_दास_जोगी

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