अन्तस होता मौन जब

 #अन्तस_होता_मौन_जब


अन्तस होता मौन जब

मुखर होता बनकर कविता 

तब होते सब शान्त 

पढ़ते मन की मौलिकता


मन की मौलिकता आव्रजनी है 

ठहरता कहाँ एक ठाँव 

तितली की तरह हाथों में रंग छोड़कर 

फिरता,करता मंगलगान


मंगल सबका हो 

साहित्य चाहे सबका हित 

संघर्ष चलता रहता है 

जीवन महके पुष्प बनकर नित-नित


विचारों के पर्वत से 

बहती कविता की धार 

संघर्ष और जीवन के बीच 

करती प्रेम में नृत्य और नाद


अन्तस का मौन ही तो 

कारण है 

मन की एकाग्रता का 

बोलो क्या कर पाते हैं 

मन के स्पन्दन में ?


#असकरन_दास_जोगी

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