दिव्य दर्शन : गिरौदपुरी धाम(छत्तीसगढ़)

*दिव्य दर्शन : गिरौदपुरी धाम(छत्तीसगढ़) *

इस वर्ष गिरौदपुरी धाम मेला का शुभ आरम्भ 3 मार्च 2017 से 5 मार्च 2017 तक होने वाला है ! गिरौदपुरी धाम मेला का आयोजन प्रत्येक वर्ष फाल्गुन शुक्ल पंचमी से सप्तमी को किया जाता है ! गिरौदपुरी धाम रायपुर से 135 कि.मी. की दूरी पर बलौदबाजार जिले में स्थित है एवं कसडोल से गिरौदपुरी धाम की दूरी लगभग 20 कि.मी. तथा बिलासपुर से शिवरीनारायण होते हुए दूरी 80 कि.मी. है ! वायुमार्ग में रायपुर निकटतम हवाई अड्डा है जो मुम्बई,दिल्ली, नागपुर, हैदराबाद, बेंगलुरु, कोलकाता, विशाखापटनम एवं चेन्नई से जुड़ा हुआ है ! रेल मार्ग में हावड़ा मुम्बई मुख्य रेल मार्ग पर रायपुर और बिलासपुर निकटतम रेल्वे जक्शन है ! अत: दर्शनार्थी अपनी सुविधा के अनुसार दर्शन हेतु उपस्थित होते हैं ! गिरौदपुरीधाम सिर्फ सतनाम धर्म को मानने वाले लोगों की धार्मिक स्थल न होकर विश्व समता और शांत्ति का प्रतिक है जिसमें देश के साथ विदेशों से भी लोग पर्यटन हेतु आते हैं ! वर्तमान लगने वाले मेलों में लगभग 15 लाख लोगों से भी अधिक दर्शनार्थियों की उपस्थिति होती है वास्तव में छत्तीसगढ़ में होने वाले समस्त मेलों से इस सतनाम मेला के जनसंख्या का अनुपात कई गुना अधिक है तथा *गिरौदपुरी छत्तीसगढ़ की आत्मा है जिसमें छत्तीसगढ़ का संस्कार,अध्यात्म, विज्ञान, संस्कृति,कला,शोध,शिक्षा,साधना,मानवता,समता,प्रत्येक प्राणी के प्रति प्रेम, सत्य, अहिंसा, क्षमा, दया, करुणा इत्यादि का वास है* जहां गुरुगद्दी में मत्था टेकने सर्वमानव समाज आस्था के साथ आते हैं !
देखा जाये तो भारत देश में ऐसे कई धार्मिक स्थल है , जहाँ पर आस्थावान लोगों की अपार भींड़ देखने को मिलता है ! परंतु छत्तीसगढ़ राज्य में "गिरौदपुरी धाम" एक ऐसा "दिव्य धाम" है जिसका कोई अन्य पर्याय विश्व में उपस्थित नही है ! पर्वतों के गोद में बसे होने के कारण इस ग्राम का नाम गिरौदपुरी पड़ा ! जिसमें गुरु घासीदास जी के सत्य, अहिंसा, क्षमा, दया, करुणा, परहित, प्रेम रुपी साधना के रंग चढ़ते ही एक साधारण सा गांव आज विश्वविख्यात धाम के रुप में स्थापित हो गया ! विश्व के "घनघोर गुरु" गुरु घासीदास जी का जन्म गिरौदपुरी (बलौदाबाजार-छत्तीसगढ़) के पावन धरा में 18 दिसम्बर सन् 1756 को माना जाता है ! गिरौदपुरी धाम की सुंदरता अत्यंत ही अविस्मरणीय है प्रकृति की चमत्कारों से परिपूर्ण आस्था का केन्द्र दर्शनार्थियों को एक ही पल में भा जाता है ! गुरु घासीदास जी के साधना के प्रताप समस्त वातावरण में मादक सुगंध की तरह फैली हुई है जो हजारों-लाखों दर्शनार्थियों के अध्यात्मिक, व्यवहारिक क्षुधा को शांत करता है ! गिरौदपुरी का सुरम्य जंगल :  पर्वत,पठार, खाई,  नदी, वृक्ष, लताएँ , पशु-पक्षि, कृषि उपज भूमि, दर्शनीय स्थल उस मानवता के  महामानव की गाथा अपने रोम-रोम से ध्वनि उत्पन्न कर मधुरता से सुनाती है !  गिरौदपुरी धाम में ऊंचे-ऊंचे पर्वत, खाइयाँ , बड़ी-बड़ी विशाल चट्टाने, दूर-दूर फैली हुई लताएँ, ऊंचे-लम्बे वृक्ष और उनकी जटाओं की भांति फैली शाखाएँ वास्तव में सतपुड़ा के घने जंगल ऊंघते अनमनाते जंगल की बरबस स्मरण कराती है ! किन्तु गिरौदपुरी धाम सोनाखान के जंगलों के कण-कण से सतनाम और उसकी मानवता के संदेश की ह्रदयस्पर्षि मादक खुशबू तन-मन को अहलादित कर देती है !

*गिरौदपुरी मेला का स्थापना* : 

सन् 1935 ई.में गुरु वंशज जगतगुरु अगमदास जी के मार्गदर्शन में हुआ यह माना जाता है !  प्रमाण के रुप में उनके द्वारा प्रकाशित करवाकर बंटवाया गया पॉम्प्लेट आज भी कई लोगों के पास उपस्थित है ! एक जानकारी बाल कवि बिसौहा प्रसाद चतुर्वेदी जी जो गिरौदधाम के समिपस्थ ग्राम अमेरा,तहसील-पलारी से हैं उनसे चर्चा के दौरान प्राप्त हुए विशिष्ट अंश यहाँ रखना चाहुँगा ! " गिरौदपुरी मेला का प्रारंभ मुख्य रुप से प्रारंभ में गुरु घासीदास जी के जयंती के रुप में आयोजित किया गया था ! जिसका आयोजन माघि पुन्नी के अवसर पर हुआ था ! परंतु माघि पुन्नी में गिरौदपुरी धाम के नजदीक ही शिवरीनारायण में विशाल भव्य मेला का आयोजन पहले से होता आ रहा था ! और शिवरीनारायण मुख्य मार्ग के करीब था लेकिन गिरौदपुरी मुख्य मार्ग से हटकर आउटर के जंगल में स्थित था ! जिससे अधिक दर्शनार्थी गिरौदपुरी दर्शन करने के पश्चात् शिवरीनारायण चले जाते और तो और व्यापारी लोग गिरौदपुरी आने से कतराते थे ! फिर भी गुरु जी के प्रति आस्था रखने वालों ने धिरे-धिरे कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने लगे परंतु मेला को वह उपलब्धि या विशालता प्राप्त नही हो पाया जो वर्तमान में है ! तब आस-पास के हिंदू समाज एवं गुरु वंशज अगमदास जी और सतनामीयों की बैठ आहुत किया गया , जिसमें शिवरीनारायण और गिरौदपुरी के मेले की एक ही तिथि होने से जो समस्याएँ उत्पन्न हो रही थी उन समस्याओं को चिन्हांकित कर गहन चिंतन व चर्चा किया गया ! जिसके पश्चात समस्त लोगों के परिचर्चा के परिणाम स्वरुप गिरौदपुरी धाम मेला का आयोजन माघी पुन्नी से हटाकर फाल्गुन के पंचमी से सप्तमी तीन दिवसीय आयोजित किए ! परंतु इस बार मेला का मुख्य उध्देश्य परिवर्तित हुआ , प्रारंभ में मेला का आयोजन गुरु घासीदास जी के जयंती के रुप में था पर अब मेला का आयोजन गुरु घासीदास जी के *ज्ञान प्राप्ति दिवस* ज्ञान प्राप्त कर गृह वापसी के रुप में था ! और समयान्तर्राल के साथ आज गिरौदपुरीधाम मेला विश्वविख्यात हो चूका है !

*गिरौदपुरी धाम के दर्शनीय स्थल* :-

 अगर आपमें अकुलाहट,आस्था,दर्शन,पर्यटन,शोध कला,सतसंग इत्यादि तत्वों की जिज्ञासा जग रही हो तो आपके मन और ह्रदय की इस क्षुधा को शांत करने के लिए गिरौदपुरी धाम के अलावा अन्य कोई स्थान नही हो सकता ! प्रकृति की लावण्यता ऐसी तृप्ति प्रदान करती है की आपको *सतलोक* की अनुभूति प्राप्त होंगे, अगर आप वास्तव में पर्टन और आस्था का रस चखना चाहते हैं तो एक बार अवश्य गिरौदपुरी धाम पधारें ! अलौकिकता, दिव्यता के साथ पावन लौकिकता आपको अभिभूत कर देंगे और आपके अंतर्मन में कहीं न कहीं यह इच्छा जन्म ले लेगा कि क्यूं न मैं यहीं निवास बनाकर वास करुँ ! गुरु घासीदास जी के प्रतापों और प्रकृति के चमत्कारों का अनुठा संगम यह धाम सतनाम धर्म के सिध्दांतो के साथ विश्वशांति और समता का जिवंत संदेश प्रदान कर रहा है , यहां दर्शनार्थियों का तांता लगा रहता है पुरा मेला लगभग 20-30 कि.मी. की दूरी तक विशालता लिए हुए फैला है ! तो आईए दर्शन करें छत्तीसगढ़ में सतनाम धर्म के प्रवर्तक सतगुरु बाबा घासीदास जी के जन्मभूमि, कर्मभूमि, महिमाभूमि और तपोभूमि परम पावन गिरौदपुरी धाम  !

१. *सतगुरु बाबा घासीदास जी का मुख्य गुरुगद्दी* :- 

यह गिरौदपुरी गाँव से दो कि.मी. की दूरी पर पहाड़ी में स्थित है ! इसी स्थान पर औंरा,धौंरा और तेंदू वृक्ष के नीचे बाबा जी को छ: माह के कठोर तपस्या पश्चात "सतनाम" आत्मज्ञान की प्राप्ति हुई थी ! इसलिए इसे तपोभूमि की संज्ञा दी जाती है ! श्रध्दालुगण यहाँ बाबा जी से अपनी मनोकामना की पूर्ति तथा कष्ट निवारण के लिए प्रार्थना लेकर आते हैं ! 

२.*चरण कुण्ड* :-

 मुख्य गुरुगद्दी तपोभूमि से दक्षिण दिशा में थोड़ी दूरी पर पहाड़ी के निचे एक कुण्ड है जिसे *चरणकुण्ड* कहा जाता है ! तपस्या के बाद जब बाबा जी को "सतनाम" ज्ञान प्राप्त हुआ, तो उन्होंने यहीं अपने चरण धोए थे ! इस कुण्ड के पवित्र जल को पीने से हर प्रकार के कष्ट,व्याधि, रोग और संकट से मुक्ति प्राप्त होती है ! 

३. *अमृत कुण्ड* :- 

चरण कुण्ड से 100 मीटर आगे *अमृतकुण्ड* है ! बाबा जी ने जीव जंतुओं और जंगली-जानवरों एवं मानवता के संकट निवारण हेतु अपने साधना के प्रतापों के दिव्यअंश यहां पर स्थापित कुण्ड में विलय किये थे ! जिस कुण्ड को श्रध्दालुगण अमृतकुण्ड के नाम से जानते हैं ! चरण कुण्ड और अमृतकुण्ड की पवित्रा गुरु घासीदास जी के प्रतापों पर टिकी हुई है इन कुण्डों के जल को आप बरसों तक स्थाई रुप से रख सकते हैं ये कभी खराब नही होता और पिने से कष्ट निवारण होते हैं ! 

४. *विश्व का सबसे ऊँचा जैतखाम* :- 

छत्तीसगढ़ शासन द्वारा निर्मित 54 करोड़ की लागत से बना सफेद रंग का विशाल जैतखाम लोगों व विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षण का मुख्य केन्द्र है ! इसकी ऊँचाई 77 मीटर अर्थात् 243 फीट है जो कुतुबमीनार से सात मीटर ऊँचा है ! 

५. *चरण चिन्ह स्थल* :- 

सतगुरु घासीदास जी के दोनो पैरों का चिन्ह एक चट्टान पर ऐसे बना है, जैसे कि किसी के पैर का छाप गीली मिट्टी पर बना हो !

६. *बाघ पंजा स्थल* :- 

एक चट्टान पर बाघ के पाँव का चिन्ह बना है ! मान्यता यह है कि बाबा जी का परिक्षा लेने हेतु सतपुरस साहेब बाघ के रुप में आये थे, उसी का चिन्ह पत्थर पर बना है ! 

७. *पंचकुण्डी* :-

 तपोभूमि से 6 कि.मी. आगे जाने पर *पंचकुण्डी* है ! यहाँ पर अलग-अलग पाँच कुण्ड बना हुआ है ! जिसका जल श्रध्दालुगण पान करते हैं !

८. *छातापहाड़* :- 

तपोभूमि से 7 कि.मी. दूर जंगल के बीच एक बहुँत बड़ी शिला है, जिसे छातापहाड़ कहते हैं ! यहाँ पर सतगुरु घासीदास जी द्वारा तप, ध्यान और साधना किया गया था ! 

९.*जन्मभूमि* :- 

गिरौदपुरी बस्ती में स्थित जन्मभूमि न केवल सतगुरु बाबा घासीदास जी की जन्मभूमि है, बल्कि उनके चारों पुत्रों गुरु अमरदास जी, गुरु बालकदास जी, गुरु आगरदास जी, गुरु अड़गढ़िया दास जी और पुत्री सहोत्रा की भी जन्मभूमि है ! जन्म स्थल के द्वार पर बहुँत पुराना जैतखाम स्थापित है ! 

१०.*माता सफुरा मठ एवं तालाब :- 

जन्मस्थल से करीब 200 गज की दूरी पर पूर्व दिशा में एक छोटा तालाब है, जिसके किनारे माता सफुरा का मठ है, बाबा जी जब ज्ञान प्राप्त के बाद वापस घर आये, तब उनकी पत्नी सफुरा की *ध्यानावस्थ* हो चुकी थीं ! जिसे बाबा जी ने सतनाम के अध्यात्म शक्ति द्वारा जागृत किये थे ! उस घटना की स्मृति में यह मठ बना है !
 
११.*बछिया जीवनदान स्थल* :-

 गिरौदपुरी बस्ती से लगा हुआ बछिया जीवनदान स्मारक बना हुआ है ! लोगों के कहने पर सफुरा के जागृत करने से पहले गुरु जी ने यहाँ पर मृत बछिया को जीवित किये थे !

१२. *बहेरा डोली* :-

 गिरौदपुरी गाँव पहुँचने से 1 कि.मी. पहले नहरपार से पश्चिम दिशा की ओर 1 ,कि.मी. पर बहेरा डोली खेत है ! यहीं पर गुरु जी ने गरियार बैल से अधर में हल चलाये थे तथा इसी खेत में 5 काठा धान की बुवाँई कर फसल लिये थे ! खेत की "चटिया मटिया" जैसी असाध्य बीमारी को अपने प्रभाव से दूर किये थे , इस लिए इसे "मटिया" डोली भी कहा जाता है !

१३.*जोगनदी* :






जोग नदी की कलकल बहती धारा का दर्शन का लाभ तपो भूमि से पूर्व-पशिचिम दिशा में लगभग 6-7 कि.मी. की दूरी पर मिल सकता है जहां हजारो श्रध्दालु स्नानध्यान व भोजन पकाकर वही सहभोज करते मिलेंगे ! वास्तव में इस नदी का नाम जोक नदी है परंतु श्रालुगण गुरु जी के साधना को आधार मान कर श्रध्दावस इस नदी को *जोग नदी* की संज्ञा प्रदान किए हैं !

परम पावन गिरौदपुरी धाम सतगुरु घासीदास जी के दिव्य गाथा के साथ-साथ प्रकृति की अलौकिकता से परिपूर्ण स्थल है ! इस बार गिरौदपुरी धाम मेला 3 मार्च 2017 से 5 मार्च 2017 के दिन तीन दिवसीय आयोजित है दर्शन का लाभ अवश्य लें ! ...... 

*!! चलो चलें सतनाम नगर...सतगुरु मिलेंगे जिस डगर !!*

संदर्भ : १.आदरणीय डॉ.जे.आर.सोनी जी द्वारा लिखित लेख : जनआस्था का केन्द्र गिरौदपुरी धाम !
२. आदरणीय अश्वनी कुमार रात्रे जी द्वारा लिखित लेख : गिरौदपुरी धाम जो पर्यन मंडल के ब्रौसर में प्रकाशित है !
३. आदरणीय मधुराज सिंह घृतलहरे जी द्वारा लिखित लेख : गिरौदपुरी धाम मेला विशेष !
*लेखक : असकरन दास जोगी*
*ग्राम : डोंड़की,बिल्हा*

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