Posts

अन्तस होता मौन जब

 #अन्तस_होता_मौन_जब अन्तस होता मौन जब मुखर होता बनकर कविता  तब होते सब शान्त  पढ़ते मन की मौलिकता मन की मौलिकता आव्रजनी है  ठहरता कहाँ एक ठाँव  तितली की तरह हाथों में रंग छोड़कर  फिरता,करता मंगलगान मंगल सबका हो  साहित्य चाहे सबका हित  संघर्ष चलता रहता है  जीवन महके पुष्प बनकर नित-नित विचारों के पर्वत से  बहती कविता की धार  संघर्ष और जीवन के बीच  करती प्रेम में नृत्य और नाद अन्तस का मौन ही तो  कारण है  मन की एकाग्रता का  बोलो क्या कर पाते हैं  मन के स्पन्दन में ? #असकरन_दास_जोगी

हौसला देखो

 #हौसला_देखो वह हमारे सामने  गुलाब लिए खड़ा है  और बार-बार पूछता है  किसे चाहिए....? जिन्हें चाहिए वे हाथ बढ़ाकर  खूब उछल रहे हैं  कह रहे हैं हमें दो, हमें दो  और हम वहीं किनारे में  आज भी शांत बैठे हैं एक सिध्दांत है  जो किस्मत में नहीं होता है  उसके लिए खूब मेहनत करो  और उसे प्राप्त करके दिखाओ  क्योंकि जो मुमकिन नहीं होता  वह नामुमकिन भी नहीं होता लेकिन दूसरा सिध्दांत कहता है  जिसे हम चाहते हैं  जिसे हम सहेज नहीं सकते  जिनसे हमारी प्रकृति भिन्न है  हमसे जुड़कर उनका अहित हो सकता है  तो प्राप्त करने से अच्छा है  भावनाओं का तर्पण और समर्पण किसी को भूलना  आसान नहीं होता  किन्तु समय  उसका महत्व खत्म कर देता है  और तब किसी के लिए किसी को  कोई फर्क नहीं पड़ता गुलाब पौधे में ही अच्छे लगते हैं  गुलदस्ते में आप उसे  सिर्फ शाम तक सजा सकते हैं  सुबह होते ही कूड़ेदान में  इससे अच्छा... देना ही है तो गुलाब का पौधा दो  हौसला देखो.... देने और लेने वाले का | #असकरन_दास_जोगी

अगर हम इंसान हैं तो

 #अगर_हम_इंसान_हैं_तो जब हम पत्थरों के बीच होते हैं  तब हम एक इंसान होते हैं  और जब हम इंसानों के साथ होते हैं  तब हम एक पत्थर होते हैं  और ऐसा होना मनुष्य के लिए  कोई बड़ी बात नहीं है हमारे अन्दर पत्थर है  पत्थर की तरह हम भी टूटते हैं  स्वयं को आकार दे पाये  तो सँवर गए  अन्यथा टूटकर बिखरना  साधारण सी बात है जब हम जंगल में होते हैं  तब हम जंगल से प्रेम करते हैं  किन्तु जब हम अपने घर में होते हैं  तब आवश्यकता के लिए  आवश्यकता से अधिक पेड़ काट देते हैं और एक भी पेड़ हम लगा नहीं पाते हम कैसे प्रेमी हैं...? जंगल का जंगलराज  प्रकृति का नियम और सौन्दर्य है  यह हमें आकर्षित करता है  किन्तु जिस समाज में हम रहते हैं  वहां जंगलराज नहीं चला सकते  यह जंगलराज असामाजिक है  और मानव सभ्यता के लिए घातक हमें अपने अन्दर के  पत्थर,प्रेम,जंगल और जंगलराज को पहचाना चाहिए  इनका उपयोग कब,कहाँ और कैसे करें  यह भी अच्छे से आना चाहिए  अगर हम इंसान हैं तो | #असकरन_दास_जोगी

जन गण मन

 #जन_गण_मन..... जन गण मन  मर रहे हैं  अधिनायक भी तो मरे  फिर साथ ही साथ  भारत भाग्यविधाता भी मरे  जब जन गण मन ही नहीं रहेंगे  तो ये जीकर क्या करेंगे ? कोरोना मार रही है  भूख मार रही है  चिकित्सा की अव्यवस्था मार रही है  सिस्टम की ख़राबी मार रही है  हमें तो मरना ही है  क्योंकि जन गण मन के लिए  सिर्फ मन की बातें होती है  काम की नहीं कमरा बंद,आँगन बंद  गली-मुहल्ले बंद  गाँव बंद,शहर बंद  शहर का बाज़ार बंद  राज्य बंद,देश बंद  और ऐसा जिन्होंने किया  उनकी बुध्दि भी बंद खुलने के लिए समय चाहिए  तब तक बढ़ने दो  जमाख़ोरी,महंगाई बेरोज़गारी,सिर्फ साक्षरता  मानसिक तनाव और उजड़ने दो देश  जब बंद बुध्दि खुलेगी तब हम पूंजीवाद के गुलाम होंगे सुनो सुधार हो... जन गण मन के विचारों में  अधिनायक के नीयत में  भारत भाग्यविधाता के कार्यों में  ख़राब सिस्टम में  तब हम आत्मनिर्भर हो पायेंगे  और गायेंगे.... जन गण मन अधिनायक जय हे  भारत भाग्यविधाता जय हे....  #असकरन_दास_जोगी

जब जड़ता ख़त्म होती है

 #जब_जड़ता_ख़त्म_होती_है मैने धरती को धरती  और आसमान को आसमान  कहना सीखा है  तुम्हारे संगत में  कुछ रंगों से चिढ़ होने लगा था  क्योंकि आजकल  विचारधारा का परिचय रंग देने लगे हैं  किन्तु अब हर रंग में रंगने लगा हूँ  तुम्हारे रंगत में रंगत और संगत के कारण  तुमसे ज़रा सी बात करके  मैं अनंत आनंद में डूब जाता हूँ  तुमसे मिली आत्मीयता कहती है  हम मन और आत्मा से जुड़े हैं आत्मा से जुड़ना  अर्थात् नि:स्वार्थ होना  और जुड़ना...  जुड़ना हमारे अन्दर की जड़ता को ख़त्म करती है  जब जड़ता ख़त्म होती है  तब हम एक अच्छा इंसान बन पाते हैं | #असकरन_दास_जोगी

कब तक रहेगा बस्तर लाल?

 #कब_तक_रहेगा_बस्तर_लाल ? आँखें लाल  सपनें लाल  बन्दूक और बारूद से बहे  रक्त लाल  भय और सन्नाटे की आगोश में  कब तक रहेगा बस्तर लाल ? नदियाँ,जंगल,पर्वत,पठार और आदिवासी  शांत नहीं हैं पता है...? बस्तर के बिस्तरों में नींद नहीं है  वे उलगुलान करने के लिए  जाग रहे हैं पर्वत,पठार,नदियाँ और जंगल सरकार ने सौप दिया है  उद्योगपतियों को  एक प्राचीन सभ्यता संस्कृति को मिटाकर  औद्यौगिक विकास करने के लिए तुम्हारे औद्योगिक विकास के नाम पर  कब तक मारे जायेंगे...? नदियाँ,जंगल,पर्वत,पठार और आदिवासी  तुम्हीं बताओ  इस दोहन और शोषण को  कब तक सहेंगे...? आदिवासी मुखरित हो रहे हैं  नक्सली बतलाकर मारने के विरुद्ध में  घर से बेघर होने के विरुद्ध में  जंगल को काटने के विरुद्ध में  ज़मीनों को अधिग्रहण कर उद्योगपतियों को सौपने के विरुद्ध में  कोई बताये.... भला क्यों न लड़ें वे  अपने अधिकारों के लिए ? #असकरन_दास_जोगी

अति का अन्त होता ही है

 #अति_का_अन्त_होता_ही_है शक्ति और आजादी  स्वेच्छाचारिता ला ही देती है  और हम मनमानी करने लगते हैं  देश को आजादी मिली  नेता और नौकरशाहों को शक्ति  आज देश इनके इशारों में चल रहा है  संविधान से नहीं शक्ति सुरक्षा के लिए होती है  चाहे वह अपना हो या अपनों की  आजादी स्वर्णिम जीवन के लिए होती है  नैतिक मूल्यों एवं कर्तव्यों की साख काटने के लिए नहीं इस देश में नौकरशाह और नेता  नैतिकता से बाहर हो चुके हैं  नेता किसानों के राह में कील लगवाते हैं  और नौकरशाह आम नागरिकों के पैर में  सच कहें... ये नेता और नौकरशाह  अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठे हैं हे महान राष्ट्र के राष्ट्रवादियों  देश को संविधान से चलने दो  अपने इशारों में चलाकर  तानाशाह न बनो  याद तो होगा ही  क्योंकि अति का अन्त होता ही है | #असकरन_दास_जोगी