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Showing posts from June, 2021

अन्तस होता मौन जब

 #अन्तस_होता_मौन_जब अन्तस होता मौन जब मुखर होता बनकर कविता  तब होते सब शान्त  पढ़ते मन की मौलिकता मन की मौलिकता आव्रजनी है  ठहरता कहाँ एक ठाँव  तितली की तरह हाथों में रंग छोड़कर  फिरता,करता मंगलगान मंगल सबका हो  साहित्य चाहे सबका हित  संघर्ष चलता रहता है  जीवन महके पुष्प बनकर नित-नित विचारों के पर्वत से  बहती कविता की धार  संघर्ष और जीवन के बीच  करती प्रेम में नृत्य और नाद अन्तस का मौन ही तो  कारण है  मन की एकाग्रता का  बोलो क्या कर पाते हैं  मन के स्पन्दन में ? #असकरन_दास_जोगी

हौसला देखो

 #हौसला_देखो वह हमारे सामने  गुलाब लिए खड़ा है  और बार-बार पूछता है  किसे चाहिए....? जिन्हें चाहिए वे हाथ बढ़ाकर  खूब उछल रहे हैं  कह रहे हैं हमें दो, हमें दो  और हम वहीं किनारे में  आज भी शांत बैठे हैं एक सिध्दांत है  जो किस्मत में नहीं होता है  उसके लिए खूब मेहनत करो  और उसे प्राप्त करके दिखाओ  क्योंकि जो मुमकिन नहीं होता  वह नामुमकिन भी नहीं होता लेकिन दूसरा सिध्दांत कहता है  जिसे हम चाहते हैं  जिसे हम सहेज नहीं सकते  जिनसे हमारी प्रकृति भिन्न है  हमसे जुड़कर उनका अहित हो सकता है  तो प्राप्त करने से अच्छा है  भावनाओं का तर्पण और समर्पण किसी को भूलना  आसान नहीं होता  किन्तु समय  उसका महत्व खत्म कर देता है  और तब किसी के लिए किसी को  कोई फर्क नहीं पड़ता गुलाब पौधे में ही अच्छे लगते हैं  गुलदस्ते में आप उसे  सिर्फ शाम तक सजा सकते हैं  सुबह होते ही कूड़ेदान में  इससे अच्छा... देना ही है तो गुलाब का पौधा दो  हौसला देखो.... देने और लेने वाले का | #असकरन_दास_जोगी

अगर हम इंसान हैं तो

 #अगर_हम_इंसान_हैं_तो जब हम पत्थरों के बीच होते हैं  तब हम एक इंसान होते हैं  और जब हम इंसानों के साथ होते हैं  तब हम एक पत्थर होते हैं  और ऐसा होना मनुष्य के लिए  कोई बड़ी बात नहीं है हमारे अन्दर पत्थर है  पत्थर की तरह हम भी टूटते हैं  स्वयं को आकार दे पाये  तो सँवर गए  अन्यथा टूटकर बिखरना  साधारण सी बात है जब हम जंगल में होते हैं  तब हम जंगल से प्रेम करते हैं  किन्तु जब हम अपने घर में होते हैं  तब आवश्यकता के लिए  आवश्यकता से अधिक पेड़ काट देते हैं और एक भी पेड़ हम लगा नहीं पाते हम कैसे प्रेमी हैं...? जंगल का जंगलराज  प्रकृति का नियम और सौन्दर्य है  यह हमें आकर्षित करता है  किन्तु जिस समाज में हम रहते हैं  वहां जंगलराज नहीं चला सकते  यह जंगलराज असामाजिक है  और मानव सभ्यता के लिए घातक हमें अपने अन्दर के  पत्थर,प्रेम,जंगल और जंगलराज को पहचाना चाहिए  इनका उपयोग कब,कहाँ और कैसे करें  यह भी अच्छे से आना चाहिए  अगर हम इंसान हैं तो | #असकरन_दास_जोगी

जन गण मन

 #जन_गण_मन..... जन गण मन  मर रहे हैं  अधिनायक भी तो मरे  फिर साथ ही साथ  भारत भाग्यविधाता भी मरे  जब जन गण मन ही नहीं रहेंगे  तो ये जीकर क्या करेंगे ? कोरोना मार रही है  भूख मार रही है  चिकित्सा की अव्यवस्था मार रही है  सिस्टम की ख़राबी मार रही है  हमें तो मरना ही है  क्योंकि जन गण मन के लिए  सिर्फ मन की बातें होती है  काम की नहीं कमरा बंद,आँगन बंद  गली-मुहल्ले बंद  गाँव बंद,शहर बंद  शहर का बाज़ार बंद  राज्य बंद,देश बंद  और ऐसा जिन्होंने किया  उनकी बुध्दि भी बंद खुलने के लिए समय चाहिए  तब तक बढ़ने दो  जमाख़ोरी,महंगाई बेरोज़गारी,सिर्फ साक्षरता  मानसिक तनाव और उजड़ने दो देश  जब बंद बुध्दि खुलेगी तब हम पूंजीवाद के गुलाम होंगे सुनो सुधार हो... जन गण मन के विचारों में  अधिनायक के नीयत में  भारत भाग्यविधाता के कार्यों में  ख़राब सिस्टम में  तब हम आत्मनिर्भर हो पायेंगे  और गायेंगे.... जन गण मन अधिनायक जय हे  भारत भाग्यविधाता जय हे....  #असकरन_दास_जोगी

जब जड़ता ख़त्म होती है

 #जब_जड़ता_ख़त्म_होती_है मैने धरती को धरती  और आसमान को आसमान  कहना सीखा है  तुम्हारे संगत में  कुछ रंगों से चिढ़ होने लगा था  क्योंकि आजकल  विचारधारा का परिचय रंग देने लगे हैं  किन्तु अब हर रंग में रंगने लगा हूँ  तुम्हारे रंगत में रंगत और संगत के कारण  तुमसे ज़रा सी बात करके  मैं अनंत आनंद में डूब जाता हूँ  तुमसे मिली आत्मीयता कहती है  हम मन और आत्मा से जुड़े हैं आत्मा से जुड़ना  अर्थात् नि:स्वार्थ होना  और जुड़ना...  जुड़ना हमारे अन्दर की जड़ता को ख़त्म करती है  जब जड़ता ख़त्म होती है  तब हम एक अच्छा इंसान बन पाते हैं | #असकरन_दास_जोगी

कब तक रहेगा बस्तर लाल?

 #कब_तक_रहेगा_बस्तर_लाल ? आँखें लाल  सपनें लाल  बन्दूक और बारूद से बहे  रक्त लाल  भय और सन्नाटे की आगोश में  कब तक रहेगा बस्तर लाल ? नदियाँ,जंगल,पर्वत,पठार और आदिवासी  शांत नहीं हैं पता है...? बस्तर के बिस्तरों में नींद नहीं है  वे उलगुलान करने के लिए  जाग रहे हैं पर्वत,पठार,नदियाँ और जंगल सरकार ने सौप दिया है  उद्योगपतियों को  एक प्राचीन सभ्यता संस्कृति को मिटाकर  औद्यौगिक विकास करने के लिए तुम्हारे औद्योगिक विकास के नाम पर  कब तक मारे जायेंगे...? नदियाँ,जंगल,पर्वत,पठार और आदिवासी  तुम्हीं बताओ  इस दोहन और शोषण को  कब तक सहेंगे...? आदिवासी मुखरित हो रहे हैं  नक्सली बतलाकर मारने के विरुद्ध में  घर से बेघर होने के विरुद्ध में  जंगल को काटने के विरुद्ध में  ज़मीनों को अधिग्रहण कर उद्योगपतियों को सौपने के विरुद्ध में  कोई बताये.... भला क्यों न लड़ें वे  अपने अधिकारों के लिए ? #असकरन_दास_जोगी

अति का अन्त होता ही है

 #अति_का_अन्त_होता_ही_है शक्ति और आजादी  स्वेच्छाचारिता ला ही देती है  और हम मनमानी करने लगते हैं  देश को आजादी मिली  नेता और नौकरशाहों को शक्ति  आज देश इनके इशारों में चल रहा है  संविधान से नहीं शक्ति सुरक्षा के लिए होती है  चाहे वह अपना हो या अपनों की  आजादी स्वर्णिम जीवन के लिए होती है  नैतिक मूल्यों एवं कर्तव्यों की साख काटने के लिए नहीं इस देश में नौकरशाह और नेता  नैतिकता से बाहर हो चुके हैं  नेता किसानों के राह में कील लगवाते हैं  और नौकरशाह आम नागरिकों के पैर में  सच कहें... ये नेता और नौकरशाह  अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठे हैं हे महान राष्ट्र के राष्ट्रवादियों  देश को संविधान से चलने दो  अपने इशारों में चलाकर  तानाशाह न बनो  याद तो होगा ही  क्योंकि अति का अन्त होता ही है | #असकरन_दास_जोगी

सुरेश मूँछ जरूर रखेगा

 #सुरेश_मूँछ_जरूर_रखेगा इनकी ऐठती मूँछों में  एक रौब है  स्वाभिमान है  क्रांति और पूर्खों की विरासत है  इनके मूँछों की नोक  तुम्हारे जातिवादी गुब्बारों को  चूभकर धड़ाम से फोड़ देती है  और तुम आपे से बाहर हो जाते हो  हे जातिवादियों... तुम क्यों चाहते हो  कि तुम्हारे सामने  सुरेश झुककर चले  तुम्हें सलाम करे  वह मूँछ न रखे ?  यही न... कि वह तुम्हारे तथाकथित धर्म में  छोटी जाति से है  और तुम लोगों के हिसाब से  छोटी जाति के लोग  रौबदार जीवन नहीं जी सकते  तुम लोगों ने इसी कारण से  सुरेश पर हमला किया  तो सुन लो  देश संविधान से चलता है  तुम्हारे धर्म के अनैतिक और अमानवीय नियमों से नहीं  और हाँ.... तुम 11 क्या 11 करोड़ भी आ जाओ  हमला करने के लिए  तब भी... #सूरेश_मूँछ_जरूर_रखेगा और उसमें ताव भी देगा | #असकरन_दास_जोगी

सुप्त ज्वालामुखी

 #सुप्त_ज्वालामुखी नमक तो आप जानते ही हैं  लोग जिसका उपयोग  स्वादानुसार एवं आवश्यकतानुसार करते हैं बस हमें वही समझ लो तुमसे मैने सीखा है  अपनी उसूलों को न बदलना  किसी भी व्यक्ति को अपने लिए विशेष न मानना  और सबसे बड़ी बात  अपनी ज़िन्दगी अपने हिसाब से जीना  मुझे प्रयास करना होगा  इस रास्ते में चलने के लिए मैने तुमसे कभी कहा नहीं  यह कि तुम मुझसे प्रेम जताओ  प्रेम तो महसूस करने वाली बात है  किन्तु अब मैं महसूस करता हूँ कि  तुम्हारे जीवन में  मेरा कोई महत्व नहीं सुनो...  तुम मुझे नहीं समझती  मैं तुम्हें नहीं समझता  बस हम दोनों... ऐसा ही समझते हैं  लेकिन समझने के लिए  साथी का साथ भी तो हो और हाँ...  क्या हुआ अगर  तुम सिर्फ मेरे लिए बुरी हो  कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए  क्योंकि दुनिया की नज़र में  तुम अच्छी हो और तुम्हारी नज़र में मैं मूर्ख कपास जैसा जलना था मुझे  अंधेरे के लिए ऊजाला बनकर  मेरा दर्द कोई क्या जाने  खुद की ही आग में जल रहा हूँ मैं  एक सुप्त ज्वालामुखी जैसा | #असकरन_दास_जोगी

अपनी करनी पार उतरनी

 कुछ कहावतों के साथ प्रयोग  #अपनी_करनी_पार_उतरनी तुम बाज की बच्ची हो  मुंडेर पर कहाँ उड़ सकती हो  गौरैया जानती हो...? मैं वही हूँ... मेरा घरौंदा घर में बनता है अभी दिल्ली दूर है  तुमसे नफ़रत की राह में  मैं खुद ही पत्थर रखूँगा  अपने सीने पर  तब तुम्हें सिर्फ वही लोग याद करेंगे  जो मतलबी हैं  एक तुम्हारे चले जाने से  कोई पहाड़ टूट नहीं जाएगा मुझ पर  और मेरी ज़िन्दगी में  कोई तूफान नहीं आ जाएगा  मैं शांत हूँ समन्दर की तरह  इसका मतलब यह नहीं  कि मुझमें ज्वार भाटा नहीं है सच कहूँ... तुमसे मिलकर ही जान पाया  यही कि  किस तरह  दूर के ढोल सुहाने होते हैं खैर...  तुम चिकने घड़े की तरह हो  जिसमें पानी नहीं ठहरता  मुझे भी याद होना चाहिए  यही कि... अपनी करनी पार उतरनी | #असकरन_दास_जोगी

दगा देवइया के नइ मिलय चिन्हारी

 #दगा_देवइया_के_नइ_मिलय_चिन्हारी इहाँ मया करइया कतको हें  दगा देवइया के नइ मिलय चिन्हारी  जीव म जीव डार देथें  हिरदे ल धड़का देथें  इहां खेल खेलइया कतको हें  दगा देवइया के नइ मिलय चिन्हारी... इहां मया करइया कतको हें.....(लड़का)  आँखी म आँखी मिला लेथें  झूठ ल सच बता देथें  इहां भरोसा म बंधइया कतको हें  दगा देवइया के नइ मिलय चिन्हारी...(लड़की) मयारू बर खुद ल भुला देथन  वोकर आगू पाछू दिन रात पहा देथन इहां मीठ मीठ गोठियइया कतको हें  मीठलबरी के नइ मिलय चिन्हारी  इहां मया करइया कतको हें....(लड़का) अंतस म कोनो ल बसा लेथन  सुख चैन अपन गवाँ देथन  इहां दवा देवइया कतको हें  दरद देवइया के नइ मिलय चिन्हारी इहां मया करइया कतको हें...(लड़की) ककरो आशा म रहिके,अंधमंधा जाबे | कलपत रइही जीवरा,फेर संसो म तैं सूखा जाबे | इहां संग देवइइया कतको हें... संग छोड़इया के नइ मिलय चिन्हारी...(लड़का) तन मन कोनो ल सँउप के,दुनिया अपन बना लेबे | लेके वादा संग जीये के,मन के मयारू बना लेबे | इहां वादा करइया कतको हें...  वादा टोरइया के नइ मिलय चिन्हारी...  इहां मया करइया कतको हें...(लड़की)  #असकरन_दास_जोगी

दो पाटन के बीच

 #दो_पाटन_के_बीच लथपथ है हमारी सुबह  लथपथ है हमारी शाम खून के कतरे कतरे में  भय में जीवन क्या होता है  कोई पूछे हमसे  सत्ता चैन से सोती और बस्तर है बेहाल हमें स्कूल,उचित स्वास्थ्य व्यवस्था,रोजगार,सड़क,पानी,बिजली सब चाहिए  पर मिलता नहीं है  यहां लगने वाली कम्पनियां और सरकार  सिर्फ आश्वासन देते हैं जल,जंगल,जमीन आदिवासियों का अधिकार है  पहले हमें काट लो  फिर जंगल काटना  हमारे सीने से दिल निकाल लो  फिर पहाड़ों से खनिज निकालना और उसे लगाना... अपने शहरों और उद्योगपतियों के विकास में पुलिस की मुखबिरी के नाम पर  हमें नक्सली मारते हैं  और नक्सलियों के सहयोग के नाम पर  पुलिस मारते हैं  हम पीसे जा रहे हैं  गेहूँ में घून की तरह  दो पाटन के बीच राजभवन चुप है  मुख्यमंत्री निवास चुप है  विधानसभा चुप है  मिडिया चुप है  किन्तु हम कैसे चुप रह सकते हैं  अपने नरसंहार पर | #असकरन_दास_जोगी

सुनती कहाँ है दिल की

 #सुनती_कहाँ_है_दिल_की जब वह पूछती है  कैसे हो ? कैसे कहूँ यही कि  तुम बिन कितना बिखरा हुआ हूँ  किन्तु बस यही कहता हूँ  मैं मस्त हूँ...तुम कैसी हो ? मेरा जताना या बताना  उसे अच्छा न लगे  ख़याल रखता हूँ  हर बार चहकना या मुस्कुराना है  मुझे उसके सामने कहती है  हर बात कह सकते हो  पर सुनती कहाँ है  दिल की वह भावनाओं में नहीं बहती  यही तो कहा था उसने मुझसे  तभी तो अपनी भावनाओं को  उससे व्यक्त करने में झिझकता हूँ  क्या पता कद्र होगी या नहीं ? अब झूठ कहने की  लत लगने लगी है  अच्छा हूँ ,ठीक हूँ ,बढ़िया हूँ  और मस्त हूँ  क्या ख़ाक अच्छा हूँ,ठीक हूँ,बढ़िया हूँ और मस्त हूँ | #असकरन_दास_जोगी

वे कहते हैं

 #वे_कहते_हैं वेल सेटल लड़का चाहिए  किन्तु दहेज का विरोध करेंगे  पता है.... हमने किसी गरीब को कभी नहीं देखा  दहेज की मांग करते हुए वे कहते हैं  लड़के बिक जाते हैं  दहेज लेकर  फिर सरकारी नौकरी,बड़ा व्यवसाय,ज़मीन,जायदाद और पैसा देखकर  रिश्ते कैसे तय होते हैं  ? लड़की दहेज प्रताड़ना में  मर जाती है  लड़के झूठे केस पर सड़ते हैं जेल में  कोई बताये यह होता क्यों है  क्या एक हाथ से ताली बजती है ?? पैसे वाले लोग  आज भी... वैवाहिक परिसर,होटल और बड़े-बड़े गार्डनों को  बुक करके शादी व्याह कर रहे हैं  किन्तु एक गरीब आदमी  कभी अपने घर में  तो कभी किसी सामाजिक मंच में  आदर्श विवाह कर रहे हैं दहेज अपने इतिहास में  एक स्नेह प्रथा रही है  परन्तु... आपको पहचानना चाहिए  वर्तमान में दहेज  एक कुप्रथा,सामाजिक बुराई  और एक समस्या  किनके बीच है | #असकरन_दास_जोगी

अहमियत

 #अहमियत  भर कहाँ सकती है  उसकी कमी को  किसी और की मौज़ूदगी  पता तो उसे भी है  कितनी अहमियत है  हमारे दिल में उनके लिए  मन और आत्मा की ख़ूबसूरती  के सामने  बाहरी आवरण मायने नहीं रखते  दाग चाँद में हो या उसके चेहरे में  मुझे दोनों स्वीकार है पता है.... हम उनके विचारों पर मरते हैं  वरना खूबसूरत तो  यहाँ हर लड़की है किसी व्यक्ति की अहमियत  तब बढ़ती है  जब उसकी निष्ठा,समर्पण,विश्वास और ईमानदारी  प्रतिबद्ध होती है और अहमियत  उनकी इस लिए है  क्योंकि उनकी नज़रों में  हमारे लिए सच्चा प्रेम और सम्मान है  दिखावे के लिए तो  दुनियाँ पलकों में बिठा सकती है | #असकरन_दास_जोगी

लोग भी हमें पढ़ें

 #लोग_भी_हमें_पढ़ें मेरे सिराहने में  किताबें बिखरी रहती है  उन्हें अचानक ही पढ़ पाता हूँ  ठीक उसी तरह  जैसे कभी-कभी ही तो तुमसे  मिल पाता हूँ किताबें खोलने पर  पन्ने पलटने पड़ते हैं  और दोबारा अपनी भावनाओं से जुड़ पाता हूँ  जैसे तुमसे मिलते ही  तुमसे पहली बार मिलना,तुम्हारी बातें और तुमसे जुड़े प्यारे-प्यारे खुशनुमा पल ताज़ा हो उठते हैं वे किताब और तुम  मेरे लिए प्रिय हो  मेरा सौभाग्य है कि  मैं तुम दोनों से  ज़िन्दगी के लिए  बहुत कुछ सीख पाता हूँ मेरी इच्छा है कि  हम भी एक दिन  किताब बन जायें  हमारा एक दूसरे को पढ़ना काफी नहीं है  लोग भी हमें पढ़ें | #असकरन_दास_जोगी

पिता परमपूज्य होते हैं

 #पिता_परमपूज्य_होते_हैं पिता पथ प्रदर्शक हैं  पृथ्वी में प्रत्येक पथ पर  तभी तो... पावन प्रेम लिए  हमारे पास रहते हैं  प्रलय के पल पल तक  पिता पढ़ लेते हैं  हमारी पुतलियों की भाषा  जिन्हें पलकें छिपाना चाहती है  पागलपन में पिता हैं  तो कुछ भी पर्याप्त नहीं  अनंत इच्छाओं के  पन्ने पलटते रहते हैं हम  जीवन की पुस्तक में पिता हमें  पल्लवित करते रहते हैं  अपने पुरुषार्थ से  एक पौधे की तरह  जिनमें उनके परवरिश से  उनके सद्प्रकृति का पुष्प खिल सके पालनहार होते हैं पिता  संतान उनकी अनमोल पूंजी होती है  प्राण से प्रिय... पिता परमपूज्य होते हैं | #असकरन_दास_जोगी

मैं तुमसे बहुत नफ़रत करता हूँ

 #मैं_तुमसे_बहुत_नफ़रत_करता_हूँ उसकी नाराज़गी  और उसका प्यार  झलकता है... साफ-साफ चेहरे पर  जो वह ज़ुबाँ से  नहीं कह पाती  कह देती है... अपनी आँखों से  मैं बहुत ज्यादा समझदार तो नहीं  किन्तु थोड़ा बहुत  समझ लेता हूँ  उसके ईशारों की भाषा  जब उसके चेहरे में  नाराज़गी और प्रेम  दोनों दिखता है... तब वह इस दुनिया में  सबसे खूबसूरत लगती है फिर जब उसे कहता हूँ  मैं तुमसे बहुत नफ़रत करता हूँ  तब वह खुद को रोक नहीं पाती और ठहाके लगाकर... हंसने लगती है | #असकरन_दास_जोगी

मुमकिन न सहीं

 #मुमकिन_न_सहीं दुर्दिन काल होते ही हैं  आने के लिए  क्योंकि... हम अपनी परीक्षा स्वयं नहीं लेते  इसलिए समय आ धमकता है  विफलताएँ हमें  बोझिल बना देती है  ज़िन्दगी के लिए... तब हम मायूस रहने लगते हैं  और हम टूटते रहते हैं  अंदर से  पतझड़ में झड़ते पत्तों की तरह  पता है... खुद को आना भी चाहिए  खुद को समेटना  जब चारो तरफ अंधेरा हो  एक उम्मीद तो रहती ही है  नई सुबह की... बस इसे ही बचाकर रखना होता है  अपने बार-बार की  असफलताओं के बीच में  मुट्ठी भर सफलता निकालना  मुमकिन न सहीं... किन्तु नामुमकिन भी तो नहीं होता | #असकरन_दास_जोगी

डरती है प्रेम में

 #डरती_है_प्रेम_में बड़ी कड़वी बोलती है  क्योंकि उसे सच कहना आता है  झूठ नहीं  उसे चने के पेड़ पर  चढ़ाना नहीं आता  खड़ूस जो ठहरी  गुस्सा नाक पर रखती है  उसकी नाक देखते ही  पता चल जाता है  यही कि कितने गुस्से वाली है आप जिसे मर्यादा कहते हैं  उसे भी लाँघ सकती है  कारण आपका एक गलत व्यवहार  आपके लिए उसे बदतमीज़ बना सकती है बेधड़क है  किन्तु डरती है प्रेम में  भावाभिव्यक्ति से  क्योंकि यह समय  किसी का नहीं होता | #असकरन_दास_जोगी

दिवलिया होगे हँव

 #दिवलिया_होगे_हँव भोको के चक्कर म  भोगे ल होगे  वो तो हेरउठिन घलो हे  अरे पूछबे नइ करय हिरक्के  इही के तैं कइसे हवच ? हरागे हिरदे  कहाँ मेर पाहँव चैन ? चारो मुड़ा अंधियारी हे  अरे अंतरगे अंतस के आस लुटागे लैन के लैना  अब तो भटके ल परही  भूलन खुंदे बरोबर करदे मुनादी कोटवार  पटवारी ल पता हे  गाँव वाले मन का जानहीं  दिवलिया होगे हँव दिल लगाके | #असकरन_दास_जोगी

मेरी प्यारी समस्या

 #मेरी_प्यारी_समस्या तुम्ही तो हो मेरे जीवन में  एक मात्र समस्या  कसम खाता हूँ समस्या  तुम्हारे अलावा और कोई नहीं है  अाँख बंद करूँ  तब समस्या  आँख खोलूँ  तब समस्या  सच कहता हूँ  मेरे जीवन के पल-पल में  समस्या है मुझे लगता है तुम जो न मिलती  तो इतने गहरे अनुभव  मुझे न मिल पाता  और ज़िन्दगी से प्यार न होता तुम नहीं रहोगी  तो बताओ भला  मैं कैसे कहूँगा लोगों से यही कि...मेरे श्वास-श्वास में समस्या है यह बेचैनी  यह पागलपन  भला किसके लिए है ? कारण तुम हो  मेरी प्यारी समस्या...!  #असकरन_दास_जोगी