मुमकिन न सहीं

 #मुमकिन_न_सहीं


दुर्दिन काल होते ही हैं 

आने के लिए 

क्योंकि...

हम अपनी परीक्षा स्वयं नहीं लेते 

इसलिए समय आ धमकता है 


विफलताएँ हमें 

बोझिल बना देती है 

ज़िन्दगी के लिए...

तब हम मायूस रहने लगते हैं 


और हम टूटते रहते हैं 

अंदर से 

पतझड़ में झड़ते पत्तों की तरह 

पता है...

खुद को आना भी चाहिए 

खुद को समेटना 


जब चारो तरफ अंधेरा हो 

एक उम्मीद तो रहती ही है 

नई सुबह की...

बस इसे ही बचाकर रखना होता है 


अपने बार-बार की 

असफलताओं के बीच में 

मुट्ठी भर सफलता निकालना 

मुमकिन न सहीं...

किन्तु नामुमकिन भी तो नहीं होता |


#असकरन_दास_जोगी

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