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Showing posts from January, 2020

दूबर बर दू असाढ़ हे

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*#दूबर_बर_दू_असाढ़_हे* कइसे कका काज नइ होत हे हुवाँ-हुवाँ करत हव बस कोलिहा बनके रही जाहव का ? जइसन घोषणा पत्र रहिच वइसन तो गत गरहन हर नइहे बस कागज म काम ल देखाहव का ? का समस्या नइ रहिच अउ काला कम करे हव बस खुदे के भाव ल बढ़ाके जनता के भाव ल गिराय हव इही ल तो कहिथे टाहलू के टाँय-टाँय अउ हम कहिबो त आँय-बाँय लइका उठा भौंरा चला गोंटा ल खेल  गेंड़ी ल चढ़ सोंटा ल खा राउत नाचा ल नाच तहाँ रमन के बाना ल उचा अउ दारू ल बेंच जय होवय तोरे दारू वाले बाबा अपन ल ढ़ाँक दूसर के ल उघार बाहरी बर बहार हे छत्तीसगढ़िया बर बंदूक तइयार हे अउ अतको म कहाँ मानबे छत्तीसगढ़िया-छत्तीसगढ़िया दाऊ जी-दाऊ जी के सोर म दूबर बर दू असाढ़ हे | *#असकरन_दास_जोगी*

तर्जनी

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*#तर्जनी* यह उंगली बीच की उंगली नही है जिसे वर्तमान में अमर्यादित रूप से प्रयोग करते हैं लोग इसे तर्जनी कहते हैं यह उंगली महिला या पुरुष दोनों की हो सकती है जो जब उठे तो आपके अहम और वहम दोनों को चकनाचूर कर सकती है यह उंगली जब भटकते हुए राहगीर के लिये उठती है तो उसे उसकी मंजिल तक सहजता से पहुँचा देती है इसे आप मार्गदर्शक भी कह सकते हैं यह कि जब बोतल से घी न निकले और कोई हमारा काम बिगड़ रहा हो तब हम अपनी बौध्दिकता का परिचय देते हुए इसी उंगली को टेढ़ी करते हैं कोई फटे बाँस की तरह अपना ही हाँक रहा हो और वह ध्वनि प्रदूषण हमारे बस के बाहर हो बड़ी सहजता से इसी उंगली में हॉले से कान भी खुजा लेते हैं लोकतंत्र की शान है यह उंगली कोई साधारण नहीं है इसका उपयोग अनंत है जब इस उंगली को संतों,गुरुओं और महामानवों ने उठाया तब देखते ही देखते विश्व का कल्याण हो गया इस उंगली को होटो पर रखकर बहुतों को चूप करा सकते हैं किन्तु एक ही निवेदन है किसी के अच्छे कार्यों में कभी भी उंगली न करें  | *#असकरन_दास_जोगी*

रमता जोगी (हम तो फ़क़ीर आदमी हैं)

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*#रमता_जोगी* (हम तो फ़क़ीर आदमी हैं) थोड़ा सच थोड़ा झूठ अक्सर बून लेता हूँ सबका मनोरंजन करने के लिये जुमला कह लेता हूँ घाट-घाट का पानी पीकर चलता हूँ यह यात्रा शासन करने के लिये है किन्तु खुद को जन सेवक कहता हूँ सबसे जुड़ना सबका विकास करना बस जुमलों का लक्ष्य है वैसे तो हम सब कुछ बेचकर भी देश बिकने नहीं देंगे हा हा हा हा.... बहुत प्यारा सा स्लोगन है फ़क़ीरी में जीया हूँ सबको फ़कीरी दूँगा ये जो इतना समर्थन करते हो मेरा भला कैसे... जाया जाने दूँगा रमता जोगी बहता पानी अलख निरंजन बस यही कहता हूँ सुनो... सब मोह माया है प्यारे! झोला लेकर अब चलता हूँ | *#असकरन_दास_जोगी*

खालिस्थान

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*#खालिस्थान* वो मेरी.......... है मैं उसका.......हूँ वो चाहे जो भर सकती है मैं चाहूँ जो भर सकता हूँ पता है... ये खालिस्थान होना कितना अच्छा लगता है इस खालिस्थान में चलो भाव भर लेता हूँ उस शासक उस शोषक पुरुषत्व को त्यागकर बीच का हो जाता हूँ बड़े प्यार से... मैं प्रेम के पलों को जीता हूँ पता नहीं कैसे जिन्दा होकर भी मैं उस पर मर जाता हूँ मैं मैं तो रहता हूँ किन्तु कुछ क्षणों में... मैं मैं को छोड़ वह भी हो जाता हूँ कोई क्या समझेगा इस खालिस्थान को कोई क्या भरेगा इस खालिस्थान में नहीं जताना नहीं दिखाना बस कहूँ तो... वह अपने पिताजी के जैसी है मैं अपनी माता जी के जैसा हूँ कुछ है तो वह सम्बन्ध है बन्धन नहीं कहूँ तो वह वह है मैं मैं हूँ फिर भी हम दोनों... अलग नहीं बस हम हैं तब भी यहाँ बहुत सारा खालिस्थान है | *#असकरन_दास_जोगी*

थोड़ा फेक लेना चाहिए

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#थोड़ा_फेक_लेना_चाहिए " फिर विचारों को पर लग जाने दो हम ज़मीन पर ही रहें और सपनों को सच बनकर आसमान में उड़ जाने दो और कहो... हमारा प्रेम तो क्षितिज से है " " मुझे नापसंद वह सुकून है यह बेचैनी नहीं अरे...इस बेचैनी की मैं शुक्रगुज़ार हूँ जो मुझे मेरे महबूब के करीब तो रखता है " " तरकसी तीर से कब तक साधोगी निशाना अरे कुछ तो बोलो... इरादा मार गिराने का है या फिर... सिर्फ घायल करने का ? " " मेरे लिये कुछ भी नहीं और कह दूँ तो सब कुछ है वह ये जो लोग हैं वे क्या जाने सिर्फ उसे पता है... क्या होता है शून्य से संसार होना " असकरन दास जोगी