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Showing posts from September, 2019

बैसुरहा देवाना-02

*#बैसुरहा_देवाना-02* झन बोमियाबे तैं मोदी कस के टार तोर गोठ ल कहे ल पर जाय अउ अतको धीरलग झन हो रमन जइसे के मोर मन असकटा जाय... मैं पप्पू बन के नइ सुन सकँव सुन मोर गोलईंदा तोला बरजत हँव झन बड़बड़ाबे पात्रा कस... नहिते कछु कर जाहँव आँय के बाँय.... हम नइ जावन वो लबरा टूरा विकास संग बुलेट ट्रेन म वोकर लोहा-लाखड़ के शेर दूबरागे हे अउ जानथच...? भारी मंदी हे रानी... तोला मोला चलना-चलाना हे दिल्ली के मेट्रो या फेर छत्तीसगढ़ के मेमू म.... तोर आस अउ भरोसा ल राखहँव मैं मीठ लबरा नोहँव तोर मान-सम्मान के आर.बी.आई. ल नइ लूट सकँव देख भले मैं बैसुरहा देवाना अँव फेर सेंगर अउ चिन्मयानंद नोहँव... अरे सुन न... बुंदेला तैं अखरा म मार चाहे पखरा म फेर सथरा खाबो एक बटकी..एके संघरा म एक बात कहँव... तोर मया काश्मीर म फूटे आर.डी.एक्स. कस लागथे कब, कहाँ,कतना फूटही गमें नइ चलय....| *#असकरन_दास_जोगी*

बैसुरहा देवाना-01

*#बैसुरहा_देवाना-01* गोटारन कस आँखी तोर दिखथे बटबट ले कइसे भर जाही ए मन बइरी गजब के थोथना छेना कस गोल चाकर निहारँव...आँखी धो-धो के.... वो तमहूँ चूंदी जोंधरी कस जटा जटबट ले हाय रे गोलईंदा! तैं कोंहड़ा कस कटकट ले का हारबे तैं हिरदे... कतको जीथैं तोर मया म मर-मर के.... गहूँ लजाथे देख के तोर रंग झूमरत रहिथच बंझोरी बोइर कस पुरवाई के संग का खेलबे ककरो जिनगी ल... तैं बाहिर-भीतर ले बेल आच बेल.... रास म माढ़े धान जइसे गोंदा,मोखला,चिरईयाँ डराये तोर अन-धन अउ मन थोकिन सुन तो... नरवा के पानी ले फरक नइ परय...तोर बानी.... उदंत हवच वो बछिया कस जेन छूवत म मारथे लटारी सुन न... मान लेते अपन बैसुरहा देवाना के कहना तोर अंतस के बारी म कभू झन कोड़बे घुरवा हमर मया के योजना गंधा जाही ए मोर बुंदेला,करौंदा मोर मोंगरा...| *#असकरन_दास_जोगी*

द्रविड़ नही हो

*#द्रविड़_नही_हो* ये आक्रमणकारी हैं ये मूलनिवासी नहीं ये विदेशी हैं ये तुर्की,शक,हूण,अरब,ईरानी, पुर्तगाली, डच,फ्रांसीसी,यूनानी,मुगल और अंग्रेजों से कोई भिन्न नही हैं लेकिन इनसे भी ख़तरनाक हैं ये ढ़ल गये ढ़ाल लिये हड़प्पा की सभ्यता संस्कृति को नष्ट कर जम्बूद्वीप को अपने अनुकूल आपको पता है क्या ? लोगों को बाँटकर शासन करना इन्हीं लोगों ने अंग्रेजों को सिखाया तभी तो वे प्रयोग कर पाये फूट डालो और शासन करो ये इतिहास बदलने में बड़े माहिर हैं लेकिन ये भूल जाते हैं यह कि... राखीगढ़ी आज भी चीख-चीख कर कह रही है सुनो आर्य.... तुम मूलनिवासी द्रविड़ नही हो | *#असकरन_दास_जोगी*

बेरोजगार लोग सम्पर्क ही न करें

*#बेरोजगार_लोग_सम्पर्क_ही_न_करें* ये बिल्कुल हकदार हैं अपने लिये एक उत्तम वर चयन में क्योंकि ये सरकारी जॉब में जो हैं इन्हें चाहिए अपने से ज्यादा रसूख और बड़े औहदे वाले इन्हें 20 से 30 हजार प्रति माह वेतन जो मिलता है हम यह भी देख ही तो रहे हैं एक सरकारी जॉब वाला लड़का एक सरकारी जॉब वाली लड़की से ही शादी करना चाहता है लेकिन लड़की,लड़की नहीं गाय हो जानते तो हैं ही इन लड़कों के भी बड़े चोचले हैं ये लड़की कल की नहीं आज की है जो प्रज्ञावान तो है और सक्षम भी इन्हें पसंद नहीं है एक लड़का अगर वह नशा करता हो या फिर संविदा जॉब,बिजनेस या टेम्प्ररी कोई काम करता हो लड़का बेरोजगार है मतलब वह बकवास और फ़ालतू है कितना भी वह अच्छे विचार वाला हो,संस्कारी हो इन्हें मतलब नहीं है दूल्हा चाहिए वह भी वेल सेटल पता है...? नोटिस बोर्ड लगा देती हैं बेरोजगार लोग सम्पर्क ही न करें ठीक वैसे ही जैसे मंदिरोंं में लिखा होता है शूद्रों का प्रवेश वर्जित है | *#असकरन_दास_जोगी*

दुराचारी देवता?

*दुराचारी देवता ?* बारामसी अउ तीसाला लेथस बली सब जानथें कर्रा कुकरा चियाँ अउ बोकरा पँड़र्रू अउ ते अउ मनखे तभो ले सब मानथें हूम धूप अउ दारू रकत के बहिथे धार भला अइसने कोनो माँगथें कतको के पुरखा ले चलत हे बोलव कब जागहू कइथन त बात ल तानथें बदथैं अड़बड़ बदना देवै नहीं लेथे देवता मानवता ल काबर बोरथें तैं कइसे दुराचारी देवता ? घट के देवा सदाचारी कोन भला ओला छानथे | असकरन दास जोगी

हे मुख्यमंत्री जी

#हे_मुख्यमंत्री_जी रेड कार्पेट म गोंटा खेलव छत्तीसगढ़ म ग्रंथालय अउ ग्रंथपाल कहाँ हे कुछु तो बोलव रमन लबरा 15 बछर ल झुलाईस लाईब्रेरी साईंस वाले मन ल बेरोजगार बनाईस उत्तर प्रदेश म खुलगे योगी ग्रंथालय मध्य प्रदेश म भरागे ग्रंथपाल महाशय राजस्थान म होवत हे भर्ती छत्तीसगढ़ म शिक्षा के उठत हे अर्थी 5000 ले जादा पद हवै खाली कतको के ऊमर निकलगे अफसर करीन दलाली हे मुख्यमंत्री जी हमर भाग कब जागही छत्तीसगढ़ म ग्रंथपाल भर्ती कोन करै ग्रंथपाल मन के बेरोजगारी कब भागही....! #असकरन_दास_जोगी

कैसी है यह गहराई

*कैसी है यह गहराई* गेहूँ की बालियों सी सुनहरी लग रही हो अवि की तेज से दमकता छवि क्यों न निहारना चाहेगा कोई अनन्त धवल धारण की है पट बलखाती चलती डगर-डगर डगमग-डगमग क्यों न डोले ह्रदय अपनी ही धुन में गाती हो प्रेम गीत हर कोई बनना चाहेगा मन का मीत खेतों में लहराते गेहूँ पवन पागल लगता है छूकर बार-बार तुम्हें इतराये यहाँ दीवानों का दिल घड़ी-घड़ी जलता है प्रेम गली में एक ही चर्चा यह यौवन कहाँ से लाई प्रत्येक नैन डूबे आकर तुझमें कैसी है यह गहराई....! *असकरन दास जोगी*

उम्र का खेल

*उम्र का खेल* कभी बड़े उम्र वालों से हो जाता है प्यार तो कभी छोटे उम्र वालों से अपने उम्र वाले तो समय के साथ निकल गए कैसा है यह इंकार अब तो इज़हार कर नहीं पाते इंकार से डरते हैं उम्र का हथियार लिए वक्त काट रहा अरमानों को हम दिल की नादानियों से बचते हुए फिरते हैं सुनो... किसी से कहना नही मैं प्यार से झेल गया बहुत सा इंकार सच तो यही है बड़ा बेरहम है यह उम्र का खेल...| *असकरन दास जोगी*

आखरी प्रहर

*आखरी प्रहर* पता नही क्यों एक लगाव सा हो गया है हर घड़ी आपकी बातों में खोये रहते हैं फ़ना तो नहीं पर दिल बाग-बाग हो गया है इंतजार लम्हा-लम्हा चैन खोने लगा हर रात की आखरी प्रहर से अब ईश्क होने लगा सुनो इस प्रहर तुम ख़्वाब बनकर आती हो जिसे याद कर-कर के मेरा दिन गुजर जाता है ये प्रहर ये घड़ी सोंचता हूँ थम जाए मेरे मन का मचलता सपना सच हो जाए | *असकरन दास जोगी*

हम-दोनों-01

*हम दोनों-01* मन में जो भाव हैं ह्रदय को अधीर करते परंतु अधर से शब्द निकलने से पहले ही रूक जाते हैं  हम दोनों के एक संकोच सा है कहें या नहीं हम करीब तो हैं पर क्या एक-दूसरे के ह्रदय के करीब हैं संशय बना है हम दोनों में हमारे व्यवहार मित्रवत ही हैं और हम इसे खोना नही चाहते अपनी व्यथा प्रस्तुत कर हमारे बीच परिस्थिति अन्यथा नही करना चाहते क्योंकि हम दोनों संकोच के भँवर में फसे हैं हम दोनों एक-दूसरे से बात किए बिना रह भी नहीं सकते एक-दूसरे का ख़याल भी रखते हैं पर जानना जरूर चाहते हैं हम दोनों एक-दूसरे के लिए क्या महसूस करते हैं यह विषय जानने,मानने या बताने का नहीं यह तो महसूस कर जताने की है जो हमारे बीच है इसे ही प्रेम कहते हैं बस इसे हम दोनों को समझना और स्वीकारना होगा की हम दोनों एक-दूसरे से प्रेम करते हैं ....! *असकरन दास जोगी*

हम-दोनों-02

*हम दोनों-02* हम दोनों प्रत्यक्ष थे कुछ पल के लिए नैन मिले वो मुझे निहार नहीं पाई मैं उसे निहार नही पाया लोग कह रहे थे मोहब्बत का महफ़िल लगा है हम दोनों इजहार तो नहीं पर जताना जरूर चाहते थे वो मुझे नहीं जता पाई मैं उसे जता नहीं पाया कुछ वक्त से साथ ही थे वैसे तो घण्टों बातें हुई उस भींड़ में लेकिन जो दिल चाहता था वह नही हुआ वो मुझसे बातें कर नहीं पाई मैं उससे बातें कर नहीं पाया एक बात अच्छा हुआ वह यह था हम दोनों में झुकाव बढ़ा वो बेचैनी लेकर लौट गई मैं बेक़रारी लेकर लौट आया सुनो... उस मोहब्बत के महफ़िल में भींड़ तो था पर तनहाई चाहते थे हम दोनों...| *असकरन दास जोगी*

चंद लोग

*#चंद_लोग* क्रांति को बिल्कुल भी परिभाषित न करें करेंगे तो आप या तो क्रांति कर नहीं पायेंगे या तो क्रांति के लिए भीड़ जायेंगे पता है क्रांति में भीड़ने वाले चंद लोग ही होते हैं क्रांति में जीने वाले मशाल की तरह जलते हैं और ऐसे लोग या तो शोषितों के सिने में आग लगा देते हैं या तो खुद के जीवन में लेकिन एक बात निश्चित है इस मशाल की आग से शोषक बच नहीं पाते क्रांति तोपों से तलवारों से विचारों के संग कलम के नोकों से हाँ होती है क्रांति हर युग में कभी अहिंसा के गोद में तो कभी हिंसा के भुजाओं से इसकी बीड़ा उठाने वाले चंद लोग ही होते हैं .. ! *#असकरन_दास_जोगी*

वह समझी होगी?

*#वह_समझी_होगी ?* मेरे लफ़्ज़ों में लोग मुझे पढ़ने लगे हैं हाँ मैं खुली किताब हूँ शब्दों के संयोजन और वर्णन का प्रयोजन भली भांति समझते हैं कुछ लोग बोल रहे थे शब्द लिखते हो या चल चित्र ? मैने कहा लिखता नही मैं तो फैलाता हूँ भावनाओं का इत्र और लिखने की बात पे अटके हो तो सच कहूँ प्रेम लिखता हूँ मित्र वे बोले हमें तो पता ही था हम यूँ ही पूछ रहे थे मैं भी सोंच में डूब गया और अंदर से आवाज़ आई लोग समझदार हो गए हैं फिर प्रश्न उठा मन में क्या इस वर्णन का समर्पण जिसे है वह समझी होगी ? *#असकरन_दास_जोगी*

दास सत्ता

*#दास_सत्ता* दास दयनीय हैं इनका दमन हो रहा है इन्हें पीर इतना मिला के दवा,दया और दान सब पर इनका हक है एक समय था तब दास सत्ता में थे दास वंश कौन नहीं जानता दास का अर्थ व्यापक है अवर्ण ही दास हैं सवर्ण भी दास ? दासों के कौंशल से ही जगत् में विकास हुआ फिर भी परिश्रम स्वामी दास त्यागे जाते हैं और दास सत्ता में वे छद्म दास बैठे हैं जिनके साजिशों का महिमामण्डन किया गया है देखो तो किसके नीचे दबा है दास सत्ता ? *#असकरन_दास_जोगी*

ठोंको अपना दावा

*#ठोंको_अपना_दावा* कब दौंड़ेगी धमनियों में धड़धड़-धड़धड़ रक्त जागो उठो दुनिया के शोषित-पीड़ित अब नहीं है वक्त ह्रदय में ज्वाला भरलो धधके आँखें बनकर मशाल काल हो तुम काल शोषकों के काल अब क्रांति हाथों में लेना होगा न कोई चमत्कार होगा न आयेगा कोई अवतार शोषण के चादर को करदो तुम तार-तार तुम मृत नहीं जीवित हो बह जाने दो क्रेटरों से लावा अधिकार सम्मान लेकर वज़ूद कायम करो जल जंगल जमीन पर ठोंको अपना दावा....! *#असकरन_दास_जोगी*

तहीं बता?

*तहीं बता ?* कभू आते वीणा के तार ल टोर के ए गरीब के कुरिया म देख इहाँ अशिक्षा के अंधियार भरे हे इहाँ सोन के कलश नहीं माटी के दीया बरथे कतको होवत तोर भजन फेर दर्शन बर हमर जीव जरथे हमर अँगना म सरोवर नइहे पिछोत म गटर के नाली हे तहीं बता कहाँ उतरही तोर हंस देवी हस त दिव्यता देखा हमर जुग्गी-झोपड़ी ले अशिक्षा भगा कइसन बसंत जेन सब बर आथे तहीं बता हमर जिनगी म शिक्षा काबर नइ आ पात हे...? *असकरन दास जोगी*

यारों के रंग

*#यारों_के_रंग* कोई शादी कर लेता है कोई मँगनी हम सरीख़ हो सकें हमारा सौभाग्य नहीं बताने,जताने और पूछने से कोसो दूर यारों के रंग निराले हैं शायद हम आज उनके दोस्ती के काबिल नहीं...|| *#असकरन_दास_जोगी*

साँप सूँघ जाता है

*साँप सूँघ जाता है* आप प्रेम लिखेंगे तो लोग प्रसन्न होंगे हास्य लिखेंगे तो ठहाके लगायेंगे फेसबुक और वाट्सएप्प पर लाईक और कमेंट ही कमेंट होगा किन्तु जब आप क्रांति लिखेंगे लोग शांत रहेंगे न कोई लाईक होगा और न ही कोई कमेंट क्योंकि क्रांति की बात आते ही लोगों को साँप सूँघ जाता है....? *असकरन दास जोगी*

तुम पागल हो

*#तुम_पागल_हो !* कभी चाँद कहता हूँ कभी स्वर्ण परी तुम्हारे केशों को भुट्टे से निकले लट्ट और लचकती-मटकती चलती चाल को हिरणी से जोड़ देता हूँ तुम्हारे गले को उस मयूरी की मखमली गर्दन की संज्ञा जो तुम बोलती हो उसे कोयल की ध्वनि कहने से कभी बचता नहीं तुम्हारे यौवन को बौराई पवन कह देता हूँ अधर गुलाब की पंखुड़ी क्या नहीं क्या कल्पना करके इस धरती से उस आसमान तक तुम्हें देख लेता हूँ क्या तुम जानती हो मैं चाहता हूँ तुम पीली साड़ी पहनो और मैं उसमें फूल से लदे सरसो की फसल का कल्पना करूँ एक बात मजे की है जो मैं कल्पना करता हूँ प्रत्यक्ष तुमसे कभी कहा नहीं बेशक़ तुम मुझे अज़ीब समझो तुमसे प्रेम जो करता हूँ लोग तो कहते ही हैं तुम भी कह लो तुम पागल हो...| *#असकरन_दास_जोगी*

मैं बंद मुठ्ठी हूँ

*#मैं_बंद_मुठ्ठी_हूँ* आवेदन निवेदन धरना प्रदर्शन और सत्याग्रह में हर आंदोलन के क्षण-क्षण में खुला रहूँ तो कोई भाव नहीं देता इस लिए अपने माँगों को लेकर बंध जाता हूँ कभी इंक़लाब कभी यलगार क्रांति के हर पथ में मैं हूँ तैयार मशालों को पकड़ने फिर खुल जाता हूँ तब लोगों को आवाज़ मिलता है गज जैसे चिंघाड़ों से अधिकार मिलता है सुनो.. एकता का प्रतिक हूँ देखो-देखो... मैं बंद मुठ्ठी हूँ...! *#असकरन_दास_जोगी*

मुद्दे से भटका दिया जायेगा

*#मुद्दे_से_भटका_दिया_जायेगा* जिनको भ्रष्टाचार से फ़ुर्सत नही वे देश सुरक्षा पे ध्यान देंगे ? छोड़ो साहब उन्हें हसना आता है रोना नहीं जो चुनाव जितने के लिए जाति और धर्म की लड़ाई कराते हैं वे जवानों की सुरक्षा पे क्या कदम उठायेंगे देख लेना साहब कुछ नहीं होगा बस आरोप-प्रत्यारोप ही होगा जनता में कुछ दिन आक्रोश रहेगा श्रद्दांजलि अर्पित करेंगे और ये दुमछल्ले मिडिया ब्रेकिंग न्यूज कह-कहकर तालियाँ ठोकेंगे फिर किसी हीरोइन की छिंकने की खबर दौड़ेगी और हम-आपको मुद्दे से भटका दिया जायेगा | *#असकरन_दास_जोगी*

साँठगाँठ तो नहीं

*#साँठगाँठ_तो_नहीं?* क्या फौज पर हमला इतना आसान है इंटेलिजेन्सी कहाँ सोई थी लगता है शहीदी के नाम पर वे बली चढ़ गए आगे चुनाव है किसी न किसी को तो सहानुभूति चाहिए सुनो चुपके से बतलाता हूँ जरा कान तेज कर लेना कुर्सी एक ही है बस बात इतना है एक उठता है और दूसरा बैठता है दोनों में अंतर है क्या ? सब देखें सब सुनें कुछ का कुछ और कुछ भी समझें जरा इधर भी सुनों चिल्ला-चिल्लाकर मैं यह कहता हूँ कहीं पर्दे के पीछे कुर्सी वालों का नक़ाबपोशों से साँठगाँठ तो नहीं...? *#असकरन_दास_जोगी*

मेरा लाल सलाम

*#मेरा_लाल_सलाम* शोषण सहन नहीं होता आवाज़ निकल जाती है बिलखते बच्चों पर दया और स्नेह आता है फांसी पर लटकते किसान कैसे देखूँ बेरोजगारों को तड़पते कैसे छोडूँ बग़ावत का हर चिंगारी मेरे सीने में मशाल बन जाती है तब बंदूकों की भाषा और क्रांति समझ आता है हर लाल झण्डे में हथौड़ा और हासिया दिखता जब-जब मजदूरों का पसीना नही खून बहता यह लड़ाई अधिकार का है यह लड़ाई सम्मान का है यह लड़ाई हर उस भेद-भाव से है जो हमारे बीच प्रेम और समानता नहीं नफ़रत पैदा करती है घोषणा पत्रों में छल कर जाते हैं वे नेता हैं भूख,अशिक्षा,गरीबी और बदहाली परोसते हैं इनकी धमनियों में रक्त नहीं लावा बहता है तब देश और समाज जलकर राख होता है मैं मार डालूँगा मैं लड़ जाऊँगा जेल मुझे क्या बंद करेगी जब मैं हथियार उठाऊँगा मैने जो कहा है पढ़ लेना एक-एक कलाम क्रांति पथ के हर क्रांतिवीर को मेरा लाल सलाम....! *#असकरन_दास_जोगी*

हम-दोनों-03

*#हम दोनों-03* मन कह रहा था फिर लौट कर मिलूँ वही सिलसिला फिर होता हम दोनों में एक दूसरे को देखकर मुस्कुराते आँखें मिलती हाथ मिलाते और ख़ैरियत की बात करते कोसो दूर से मिलने आना बस दो-पल में बिछड़ जाना बड़े बेचैन थे हम दोनों वह जल्दबाजी क्यों थी ? मिलना भी तो उन्हीं से था वो रूकने के लिए बोल रही थी मैं न कहकर आ गया कुछ पल और गुफ़्तगू करना चाहते थे हम दोनों कुछ लोग देख रहे थे न जाने क्या सोंच रहे थे मुझमें संकोच यही था फिर मिलने की आस है जुदा होकर भी मन ही मन में एक दूसरे को याद कर रहे थे हम दोनों...! *#असकरन_दास_जोगी*

वैराग्य का होंड़

*#वैराग्य_का_होंड़* राग धरूँ शून्य का राग से होकर दूर तब हो मन में सानिध्यता का बोध सप्त चक्रों के जागृति में हो अनहद का नाद विश्व कल्याण की कामना रहे तब कड़वा लगे स्वार्थ का स्वाद अतृप्ति से तृप्ति की ओर दीप्ति की आस में बैठ पद्मासन सतयोग करूँ भाग्यवाद को छोड़ देखा-देखी कुछ भी नहीं बनूँ कर्मयोगी तब तो मचे वैराग्य का होंड़ | *#असकरन_दास_जोगी*

यह खेल ख़तरनाक होता है

*#यह_खेल_ख़तरनाक_होता_है* दिल,धड़कन,मन और ज़बान तीनों में अलग-अलग व्यक्ति का होना यह रिश्क विक्स लेकर शर्दी और खाँसी की समस्या दूर करने जितना आसान नहीं है यह खेल आप स्वयं के साथ नहीं सामने वाले के साथ खेलते हैं इसमें जब भी एक्सीडेंट होगा सड़क दुर्घटना से ज्यादा हानि होगी यहाँ हाथ,पैर या सिर नहीं बल्कि मन और दिल टूटता है अगर सावधानी नही बरती गई तो ज़िंदगी बर्बाद हो सकती है खेलना ही है तो कबड्डी,खो-खो गिल्ली-डण्डा,लट्टू हॉकी,फुटबॉल,क्रिकेट या फिर नदी-पहाड़ खेल लो पर किसी के दिल से न खेलो यह खेल ख़तरनाक होता है | *रचनाकार : असकरन दास जोगी*

प्रेम में

*#प्रेम_में* विश्वास,सपने चाँद-तारे डाली में लदे फूल और दिल भी नहीं तोड़ सकता मैं प्रेम में रिश्ते-नाते दोस्त-यार माँ-बाप घर-द्वार और उसे भी नहीं छोड़ सकता मैं प्रेम में सुबह,दोपहर शाम,रात आज-कल और हर घड़ी नहीं डूब सकता मैं प्रेम में सुख-दु:ख जीवन-मरण हार-जीत और राग-द्वेष भी तो है प्रेम में आशाओं के जाल में बाँधा गया हो शर्तों पे साधा हो भावनाओं से खेला गया हो और दिल जब टूटा हो तब भी रो नहीं सकता मैं प्रेम में *#असकरन_दास_जोगी*

आखरी इच्छा

*#आखरी_इच्छा* किडनी और लीवर डैमेज है कैंसर से जूझ रहा हूँ सिकलिंग इतना बढ़ा की रक्त कण बनने से रह गया डायलिसिस हो चूका तीन बॉटल ए पॉजिटिव ब्लड मेरे धमनियों में समाहित कर दिया गया फिर भी राहत नहीं गलती यही है किशोर अवस्था से गुड़ाखू,तम्बाखू और सिगरेट मेरा सौंक रहा माँ-बाप टोकते थे पर मैं रूका नहीं इस लिए आज टूटने के कगार पर हूँ ओ....मेरी धर्मपत्नी ! आपको अभी मेरा साथ छोड़कर जाना था ? आपके और मेरे विवाह से पूर्व ही आपके पिताजी! यह जानते थे मैं नि:शक्त,असहाय,विकलांग नव-चलागत में कहूँ तो एक दिव्यांग हूँ आपने भी तो देखा ही था आज उनकी इच्छा से आपने मेरी बेटी को भी मुझसे दूर कर दिया जो महज पाँच वर्ष की ही है पापा-पापा कहकर वो रोती होगी किस तरह से आप उसे शांत करती होंगी मेरे बिना वह रह नहीं सकती और मैं भी आपके और उसके बिना नही रह सकता यह आप अच्छे से जानती हो जब मेरा साथ छोड़ना ही था तो एक बार बोल देती पर बिना बताए इस हाल में छोड़कर जाना कुछ अच्छा तो नहीं शायद आपको उचित लगा हो वैसे भी मैं दुनिया छोड़ने वाला हूँ क्या शिकवा करूँ ससुराल गया

प्रश्न तो खड़ा होगा-02

*#प्रश्न_तो_खड़ा_होगा-02* कोई आपके नाम के साथ मेरा नाम या मेरे नाम के साथ आपका नाम जोड़ दे तब प्रश्न तो खड़ा होगा किसी भींड़ में कोई पूछ दे आप दोनों का मिलना होता है या नहीं और हम दोनों अपनी-अपनी जगह मौन रहें तब प्रश्न तो खड़ा होगा कहीं तनहाई में कोई आकर यह कहे कैसे आज-कल बात नहीं होता क्या ? फिर बातों-बातों में हम टालनें लगें तब प्रश्न तो खड़ा होगा किसी महफ़िल में हम दोनों आमने-सामने हों और कोई टोक दे आप दोनों के बीच सब ठीक तो है न ? और हम उससे भागने लगें तब प्रश्न तो खड़ा होगा | *#रचनाकार_असकरन_दास_जोगी*

हम-दोनों-04

*#हम_दोनों-04* वह धरा मैं नभ सब रह गया धरा का धरा सम्बन्ध प्रगाढ़ है क्या कहें मन का माया जाल है क्यों यह लगाव बढ़ा समय का पेंसिल नव चित्र गढ़ा कभी-कभी हम दोनों में क्षितिज सी परिस्थिति निर्मित होती है पर यह भी तो मरीचिका का पर्याय है कब पास होते हैं कब दूर सानिध्यता की अनुभूति को हैं मजबूर प्रश्न बार-बार उठता है मन में आखिर क्या समझें इसे हम दोनों ? *रचनाकार:असकरन दास जोगी*

प्रश्न तो खड़ा होगा-01

*#प्रश्न_तो_खड़ा_होगा-1* आर.डी.एक्स किसने लाया और किसके वाहन में आया यह पता न चले और सर्जिकल स्ट्राईक में 300 लोगों को मारने की खबर मीडिया में छा जाए तब प्रश्न तो खड़ा होगा चुनाव सामने हो अचानक फौज पे हमला हो और वो भी सिर्फ बिना बुलेटप्रुफ वाहन पे यहाँ देश में युध्द का माहौल बने तब प्रश्न तो खड़ा होगा कश्मीरी पण्डितों का मुद्दा राष्ट्रीय बन जाए और 20 लाख आदिवासियों की बेदखली पे आवाज़ न उठे मीडिया से ग़ायब हो तब प्रश्न तो खड़ा होगा एस.सी.,एस.टी. और ओ.बी.सी. का अधिकार लूटा जाए और 13 पॉइंट रोस्टर लागू हो तब प्रश्न तो खड़ा होगा लालकिला को डालमिया और एयरपोर्टों को अडानी ले जाए तब प्रश्न तो खड़ा होगा जिसकी जितनी जनसंख्या उसकी उतनी हिस्सेदारी न हो और देश में आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत सवर्ण आरक्षण लागू हो तब प्रश्न तो खड़ा होगा माल्या,नीरव,मेहुल,ललित बैंक ले भागें और एक किसान फांसी पर लटक जाए तब प्रश्न तो खड़ा होगा मीडिया अपनी नौटंकी दिखाए और देश के सारे मुद्दे गायब हो तब प्रश्न तो खड़ा होगा | *#रचनाकार_असकरन_दास_जोगी*