हम-दोनों-02
*हम दोनों-02*
हम दोनों 
प्रत्यक्ष थे 
कुछ पल के लिए 
नैन मिले 
वो मुझे 
निहार नहीं पाई 
मैं उसे 
निहार नही पाया 
लोग कह रहे थे 
मोहब्बत का 
महफ़िल लगा है 
हम दोनों 
इजहार तो नहीं 
पर जताना 
जरूर चाहते थे 
वो मुझे 
नहीं जता पाई 
मैं उसे 
जता नहीं पाया
कुछ वक्त से 
साथ ही थे 
वैसे तो 
घण्टों बातें हुई 
उस भींड़ में 
लेकिन 
जो दिल चाहता था 
वह नही हुआ 
वो मुझसे 
बातें कर नहीं पाई 
मैं उससे 
बातें कर नहीं पाया
एक बात अच्छा हुआ 
वह यह था 
हम दोनों में 
झुकाव बढ़ा 
वो बेचैनी 
लेकर लौट गई 
मैं बेक़रारी 
लेकर लौट आया 
सुनो...
उस मोहब्बत के 
महफ़िल में 
भींड़ तो था 
पर तनहाई 
चाहते थे 
हम दोनों...|
*असकरन दास जोगी*
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