आखरी प्रहर
*आखरी प्रहर*
पता नही
क्यों
एक लगाव सा
हो गया है
हर घड़ी
आपकी बातों में
खोये रहते हैं
फ़ना तो नहीं
पर
दिल बाग-बाग
हो गया है
इंतजार
लम्हा-लम्हा
चैन खोने लगा
हर रात की
आखरी प्रहर से
अब ईश्क
होने लगा
सुनो
इस प्रहर
तुम ख़्वाब
बनकर आती हो
जिसे
याद कर-कर के
मेरा दिन
गुजर जाता है
ये प्रहर ये घड़ी
सोंचता हूँ
थम जाए
मेरे मन का
मचलता सपना
सच हो जाए |
*असकरन दास जोगी*
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