तुम पागल हो

*#तुम_पागल_हो !*

कभी चाँद कहता हूँ
कभी स्वर्ण परी
तुम्हारे केशों को
भुट्टे से निकले लट्ट
और
लचकती-मटकती
चलती चाल को
हिरणी से जोड़ देता हूँ
तुम्हारे गले को
उस मयूरी की
मखमली गर्दन की संज्ञा
जो तुम बोलती हो
उसे कोयल की ध्वनि
कहने से कभी बचता नहीं
तुम्हारे यौवन को
बौराई पवन कह देता हूँ
अधर गुलाब की पंखुड़ी
क्या नहीं क्या कल्पना करके
इस धरती से
उस आसमान तक
तुम्हें देख लेता हूँ
क्या तुम जानती हो
मैं चाहता हूँ
तुम पीली साड़ी
पहनो और मैं उसमें
फूल से लदे सरसो
की फसल का कल्पना करूँ
एक बात मजे की है
जो मैं कल्पना करता हूँ
प्रत्यक्ष तुमसे
कभी कहा नहीं
बेशक़ तुम मुझे
अज़ीब समझो
तुमसे प्रेम जो करता हूँ
लोग तो कहते ही हैं
तुम भी कह लो
तुम पागल हो...|

*#असकरन_दास_जोगी*

Comments

Popular posts from this blog

दिव्य दर्शन : गिरौदपुरी धाम(छत्तीसगढ़)

पंथी विश्व का सबसे तेज नृत्य( एक विराट दर्शन )

खंजर