चंद लोग
*#चंद_लोग*
क्रांति को
बिल्कुल भी
परिभाषित न करें
करेंगे तो
आप
या तो क्रांति
कर नहीं पायेंगे
या तो
क्रांति के लिए
भीड़ जायेंगे
पता है
क्रांति में
भीड़ने वाले
चंद लोग ही होते हैं
क्रांति में
जीने वाले
मशाल की तरह
जलते हैं
और ऐसे लोग
या तो शोषितों के
सिने में
आग लगा देते हैं
या तो
खुद के जीवन में
लेकिन
एक बात निश्चित है
इस मशाल की आग से
शोषक बच नहीं पाते
क्रांति तोपों से
तलवारों से
विचारों के संग
कलम के नोकों से
हाँ होती है क्रांति
हर युग में
कभी अहिंसा के गोद में
तो कभी हिंसा के भुजाओं से
इसकी बीड़ा
उठाने वाले
चंद लोग ही होते हैं .. !
*#असकरन_दास_जोगी*
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