हम-दोनों-04

*#हम_दोनों-04*

वह धरा मैं नभ
सब रह गया
धरा का धरा
सम्बन्ध प्रगाढ़ है
क्या कहें
मन का माया जाल है
क्यों यह लगाव
बढ़ा
समय का पेंसिल
नव चित्र गढ़ा
कभी-कभी
हम दोनों में
क्षितिज सी
परिस्थिति निर्मित
होती है
पर यह भी तो
मरीचिका का पर्याय है
कब पास होते हैं
कब दूर
सानिध्यता की
अनुभूति को
हैं मजबूर
प्रश्न बार-बार
उठता है मन में
आखिर क्या समझें इसे
हम दोनों ?

*रचनाकार:असकरन दास जोगी*

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