वैराग्य का होंड़

*#वैराग्य_का_होंड़*

राग धरूँ शून्य का
राग से होकर दूर
तब हो मन में
सानिध्यता का बोध
सप्त चक्रों के
जागृति में
हो अनहद का नाद
विश्व कल्याण की कामना रहे
तब कड़वा लगे
स्वार्थ का स्वाद
अतृप्ति से
तृप्ति की ओर
दीप्ति की आस में
बैठ पद्मासन
सतयोग करूँ
भाग्यवाद को छोड़
देखा-देखी
कुछ भी नहीं
बनूँ कर्मयोगी
तब तो मचे
वैराग्य का होंड़ |

*#असकरन_दास_जोगी*

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