हम-दोनों-01
*हम दोनों-01*
मन में जो भाव हैं
ह्रदय को अधीर करते
परंतु
अधर से शब्द
निकलने से पहले ही
रूक जाते हैं
हम दोनों के
एक संकोच सा है
कहें या नहीं
हम करीब तो हैं
पर क्या एक-दूसरे
के ह्रदय के करीब हैं
संशय बना है
हम दोनों में
हमारे व्यवहार मित्रवत ही हैं
और हम इसे खोना नही चाहते
अपनी व्यथा प्रस्तुत कर
हमारे बीच परिस्थिति
अन्यथा नही करना चाहते
क्योंकि हम दोनों
संकोच के भँवर में फसे हैं
हम दोनों
एक-दूसरे से
बात किए बिना
रह भी नहीं सकते
एक-दूसरे का
ख़याल भी रखते हैं
पर जानना जरूर चाहते हैं
हम दोनों एक-दूसरे के लिए
क्या महसूस करते हैं
यह विषय
जानने,मानने या बताने का नहीं
यह तो महसूस कर जताने की है
जो हमारे बीच है
इसे ही प्रेम कहते हैं
बस इसे हम दोनों को
समझना और स्वीकारना होगा की
हम दोनों
एक-दूसरे से
प्रेम करते हैं ....!
*असकरन दास जोगी*
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