फेसबुकिया फ़ेमिनिज़्म

 #फेसबुकिया_फ़ेमिनिज़्म


कुछ नारीवादियों से जुड़ा हूँ 

उनके विचारों को पढ़ने के लिए मिल जाता है 

फेसबुक की मेहरबानी है 


उन्हें पढ़ने से लगता है 

कल ही क्रांति होगी 

और नारी अधिपत्य/मातृसत्ता स्थापित हो जाएगी 


उनके विचारों में 

पुरुषों के लिए घृणा,गालियों का अम्बार मिलता है 

और शब्दों का प्रयोग 

वास्तविक लेकिन अश्लीलता से ओतप्रोत 


जिन शब्दों को 

वे फेसबुक में लिखती हैं 

ऐसे मर्यादित शब्दों को 

क्या अपने घर-परिवार में 

वाक्य प्रयोग कर पाती होंगी ?


यह लैंगिक सामाजिक समानता की वैचारिक लड़ाई है 

जिसका उद्देश्य 

समाज को समृध्द और सुशिक्षित करना होना चाहिए 

न कि सशक्तिकरण को ताक में रखकर स्वेच्छाचारिता को बढ़ाना


फेसबुकिया फ़ेमिनिज़्म को पढ़ने के बाद 

विचार करना पड़ता है 

क्या यही असली नारीवाद है ?

क्या नारीवाद के लिए सिर्फ महिलाओं ने लड़ाई लड़ी है ?

क्या इस लैंगिक समानता की लड़ाई में इन्हें पुरुषों का साथ नहीं चाहिए ? 


मैं मानता हूँ 

मैं उन नारीवादियों से जुड़ नहीं पाया हूँ 

जो मातृसत्ता नहीं सामाजिक समानता चाहती हैं 

हम भी चाहते हैं 

पितृसत्ता जैसी बात न रहे 


सुनो...

फेसबुकिया फ़ेमिनिज़्म से ध्यान हटाने के लिए 

लोगों को गूगल में नारीवाद पढ़ना चाहिए 

क्योंकि वास्तविक नारीवाद का अर्थ,परिभाषा,उध्देश्य और महत्व आप तभी समझ पायेंगे |


#असकरन_दास_जोगी

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