ज़िन्दगी समन्दर है

 #ज़िन्दगी_समन्दर_है


उसके ख़ाके में 

मैं बैठ नहीं पाया

जब तक रहे हम साथ 

क्या वह परखती रही दिन रात ? 


उसके लिए सब कुछ छोड़ा 

अपनी तरक्की अपना ख़याल 

पता है...?

उसे मैं सब कुछ मान बैठा था

अपना 


साथ रही छोड़ने के लिए 

जिसे मैं आगे बढ़ा रहा था 

पता ही नहीं चला 

उसका भविष्य...

कब मेरे साथ असुरक्षित हो गया ?


हर सुबह होती थी उसे देखकर 

उसकी आँख में कटती थी रात 

अब दिल कहता है 

देखने को भी न मिले वह 

दुनिया के किसी भी मोड़ पर


अभी तालाब सूखा है 

नदियाँ नहीं 

छोड़कर जाने वाले से कह दो 

रह लेंगे जी लेंगे 

उसे मालूम हो 

ज़िन्दगी समन्दर है |


#असकरन_दास_जोगी

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