मैं प्रकृति से प्रेम क्यों न करूँ ?
#मैं_प्रकृति_से_प्रेम_क्यों_न_करूँ ?
तुम पर मरना
मरने से अलग है
हाँ ये मुहब्बत है
बेबाकी से कह नही पाते
लेकिन आँखों की ज़ुबान
तुम जैसा कोई कहां समझता है
तुम्हारी आँखों की भाषा
प्राकृत की ध्वनि है
अंगों की तरंगें
वीणा की तान
जो खिंचती है अपनी ओर
सुनो...
तुम हरेभरे वृक्ष जैसी हो
ज़िन्दगी में जो दु:ख और समस्याओं के ताप हैं
उनसे राहत देती हो
मेरा सर्वस्व तुम्हारे लिए
कोई बताये
मैं प्रकृति से प्रेम क्यों न करूँ ?
#असकरन_दास_जोगी
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