स्वराज के कड़िहार
*स्वराज के कड़िहार* फेर भटाँगर बनके फूटत हे,अंतस के क्रांत्ति ! धधकत हे बमलत हे मशाल,नइहे मन मा शांत्ति !! होगे अठरा बछर,छत्तीसगढ़ मा स्वराज कहाँ ! परदेशिया मन खावत बोटी,बनके बाज इहाँ !! अमरबेल कस छछले,इहाँ उहाँ ले केत कतका ! धरके फरसा काट डारव,दम देखावव अतका !! रोत किसान धरे माथा,खेती तो काल बनगे ! शोषण होवत देखव,अब कहानी कतका तनगे !! बादर कस गरजहूँ,तभे सुनहव का मोर संगी ! परदेशिया खेल खेलावत,आज रंग बिरंगी !! राजधानी अँजोर हवै,परे हमर घर अँधियार ! विकास के लोभ देखाके,लूटत हें होंशियार !! परखव जानव मानव,तब लड़ पाहव अधिकार बर ! नइते मर जाहव भाई,शोषक बर हथियार धर !! पुरखा के सपना सच करव,झन बनव रे बनिहार ! स्वराज बर जान गवाँदव,सत्य के बनव कड़िहार !! गरीब लंगटा रहिगेन,बाहरी मनखे बड़हर ! जवाब जब माँगथन ता,सरकार करथे ओड़हर !! छत्तीसगढ़िया संस्कृति ला,डसत हें साँप मन ! भाषा ला बढ़न नइ देवत हें,झोला छाप मन !! लोटा धरके आईन,अब राज करत हें गोखी ! धरती पानी पवन खनिज बर,लगाये हें ओखी !! बैपारी बनके लूट डरिन,हमर झोली खाली ! ग्राहक बनके भोंदात हन,बइरी ठोंकैं ताली !! बेटी के ...