धर्म पे लगे विसुका

*धर्म पे लगे विसुका*

देखो यह राज कोई तो खोलो !
धर्म किसने बनाया आज बोलो !!
कौन बना पहले धर्म या दुनिया !
नाप रहा हूँ लेकर ध्यान गुनिया !!
नैतिकता क्यों दबती जा रही है !
मानवता अब मरती जा रही है !!
बड़़े शान से धर्मगुरु कहलाते !
धर्म आड़ में पाप भी कर जाते !!
प्रश्न करो तो कहते धर्म-द्रोही !
कब कैसे बन गया मैं विद्रेही !!
व्याकुल है अंतर उपाय सुझाओ !
जिज्ञासा की लव कोई बुझाओ !!1!!

ईश्वर बना है या मानव पहले !
किसने किसका प्रकार गढ़ा कह-ले !!
भ्रम क्यों फैलाये चमत्कारों का !
विश्व बनाया सड़ते विकारों का !!
शोषक शोषित दो प्रकार बटे हैं !
धर्म भेद में लड़ने को डटे हैं !!
युध्दों से रक्त की नदियाँ बहती !
प्रकृति छाती ठोंक तड़पती रहती !!
कैसी निष्ठुरता ईश्वर कहाँ रे !
मानवता मिटता देखो यहाँ रे !!
लेकर कलम तनकर मैं लिखता हूँ !
उत्तर पाने को प्रश्न करता हूँ  !!2!!

कौन ? हिंदू मुस्लिम सिक्ख इसाई !
बोल कितने और धर्म है भाई !!
धर्म प्रकृति का मूल गुण है जानो !
धर्म-धर्म का भेद तो पहचानो !!
विश्व में दया प्रेम को त्याग रहे !
अहिंसा की गलियों से भाग रहे !!
सत्य क्षमा धारण ही नही करते !
करुणा परहित से दूर,क्यों डरते !!
उत्कृष्ट नि:कृष्ट का खेल चलता !
विश्व में आज क्यों घृणा है पलता !!
सृजित धर्म प्रकृति को खेल खिलाता !
आज मानवता को यह दहलाता !!3!!

व्यक्ति पे लगता है *रासुका* जब !
धर्म पर भी लगे यहाँ *विसुका* अब !!
संयुक्त राष्ट्र संघ अब पहल करे !
मानवता को बचाने ध्यान धरे !!
विश्व विनाश की ओर न बढ़ने दो !
विश्व सुरक्षा कानून लगने दो !!
अर्थ व्यवस्था जर्जर हो रही है !
लोगों के कर्म दिशा खो रही है !!
उन्नति से अवनति के मार्ग चलते !
मानवता को वैहसी बन छलते !!
मेरी उलझन कौन सुलझायेगा !
धर्म का पाप कब मीट पायेगा !!4!!

आग्रह है अमन चैन की पथ चलो !
धर्म के भ्रम से यूँ ना हाथ मलो !!
मानवता का ध्वजा लहराना है !
जड़ता को अब जड़ से मिटाना है !!
नई सुबह की तुम अब खोज करलो !
मन में मानवता का ओज भरलो !!
क्रांत्ति की ज्वाला अब भड़काना है !
भक्तों को तर्क खोल जगाना है !!
कौन चलेगा मेरे साथ बोलो !
अग्निपथ में आज तो शपथ लेलो !!
पाखण्ड पट जाये सतनाम चले!
*धर्म पे लगे विसुका* विनाश टले !! 5!!

*रचनाकार:-असकरन दास जोगी*
मो.नं.: 9340031332

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