Melody Queen सुरुज बाई खाण्डे

Melody Queen 

*अन्तर्राष्ट्रीय भरथरी गायिका सुरुज बाई खाण्डे*


भरथरी गायन की एक विराट विधा को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर में पहचान दिलाने वाली सूर्य जैसा तेज रखने वाली सुरुज बाई का जन्म 12 जून 1949 में हुआ | आपकी माता का नाम श्रीमती रेवती बाई एवं पिता जी का नाम श्री घसिया घृतलहरे था |

आपका जन्म छत्तीसगढ़ सतनामी समाज के एक सामान्य कृषक परिवार में हुआ | आप उसी कृषिभूमि की मिट्टी जैसीं आज भी जन मन में सौंधी-सौंधी महक रही हैं |

सुरुज बाई स्कूली शिक्षा प्राप्त नहीं की थी लेकिन अपने परिवार से मिले व्यवहारिक शिक्षा और कला में दक्ष थीं |

आपकी जन्मस्थल 6वीं शताब्दी में निर्मित देवरानी जेठानी मंदिर ताला गाँव से लगा हुआ ग्राम पौंसरी तहसील बिल्हा जिला बिलासपुर है |

सुरुज बाई बचपन से कुशाग्र बुध्दि की थी, अपने भाई से भी कहीं ज्यादा नटखट एवं चंचल स्वभाव की थीं | यही चंचलता उन्हें सात साल के उम्र से ही भरथरी गायन में महारत करती जा रही थी | आपने भरथरी गायन बचपन से ही नाना रामसाय जी से सीखा, साथ ही साथ ढ़ोला मारू,चंदैनी,आल्हा उदल गायन भी सीख लिया |

जैसे ही आपने युवावस्था की दहलीज़ पर कदम रखा | आपकी शादी ग्राम कछार बिलासपुर में लखन लाल खाण्डे जी से कर दिया गया | लेकिन इस विवाह ने एक अद्भुत संयोग को साधा और एक कलाकार को कलाकार जीवन साथी मिला दिया जिससे सुरुज बाई फूले नही समाँ रही थी | एक कलाकार की कला का सच्चा सम्मान कलाकार साथी ही कर सकता है तथा कला के क्षेत्र में आगे बढ़ने में सहयोग भी....||


श्री लखन लाल खाण्डे भी लोक गीत एवं पंथी नृत्य में पारंगत थे | सुरुज बाई ने लखन लाल खाण्डे जी को भरथरी,ढ़ोला मारू,चंदैनी,आल्हा उदल सीखाकर अपने गायन विधा को प्रचारित करने का काम किया |

सुरुज बाई और लखन लाल खाण्डे दोनों भरथरी गायन के रियाज़ में लगे रहते | कुछ ही दिनों में पार्टी गठित कर अपने आस पास के गुड़ी-चौपालों में भरथरी गायन पूरी साज के साथ प्रस्तुत करने लगे |

आपकी प्रसिद्धि फैलने लगी और प्रथम मंचीय प्रस्तुतिकरण का अवसर रतनपुर मेले में मिला | सुरुज बाई अपने अद्भुत गायन से दूर-दूर से आये हुए दर्शकों का दिल जीत लिया | वह भरथरी गायन की अपनी शैली की एक मात्र साम्राज्ञी बन गई |

उस कार्यक्रम से आपकी पहचान मध्यप्रदेश आदिवासी लोककला परिषद् से हुई | आपके हुनर की परख करते हुए पूरे मध्यप्रदेश के साथ दिल्ली,मुम्बई,अहमदाबाद,राजस्थान,नागालैण्ड,कोलकाता,मद्रास,पाण्डीचेरी,इलाहाबाद एवं जोधपुर में कार्यक्रम देने का अवसर मिला | आदिवासी लोककला परिषद् के समर्थ सहयोग से ही आपको रूस में भारतीय लोक कला का डंका बजाने का अवसर मिला और आपके द्वारा वहाँ भारतीय संस्कृति की अमिट छाप छोड़ी गई |


*भरथरी क्या है ?*


उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य के बड़े भाई राजा भर्तृहरि के जीवन पर आधारित एक गाथा है | यह गाथा भारत देश के सभी राज्यों में दंतकथा के रूप में फैला हुआ है जिसे लोग लोकगीत के माध्यम से गायन एवं नाटक के रूप में प्रस्तुत करते हैं |

छत्तीसगढ़ में सुरुज बाई खाण्डे छत्तीसगढ़ी भाषा में करुण रस के माध्यम से प्रस्तुत करती हैं |


*सुरुज बाई खाण्डे के भरथरी प्रस्तुतिकरण की शैली :-*


भरथरी गीत को सारण या एकतारा के साथ योगियों द्वारा भ्रमण करते हुए गाया जाता था | 

इन योगियों के माध्यम से यह विधा लोकजीवन में आ पहुँची और उसी लोकजीवन में जन्मी सुरुज बाई को यह गाथा अपने नाना जी से मिला | सुरुज बाई भरथरी की प्रस्तुति वेदमती शैली (बैठकर गायन करना)  और कापालिक शैली (खड़े होकर गायन करना)  पूरे धाक के साथ अद्भुत एवं रोचक दोनों शैलियों में प्रस्तुत करती थीं |


*एक बानगी देखिए :-*


घोड़ा रोवय घोड़सार मा,घोड़सार मा वो,हाथी रोवय हाथीसार मा 

मोर रानी ये वो,महलों मा रोवय 

मोर रानी ये या,महलों मा रोवय 

मोर राजा रोवय दरबार मा,दरबार मा,दरबार मा,भाई ये दे जी.....||


साथ ही आपके भरथरी गीत की प्रस्तुति में अतिविशिष्टता थी | आपने गुरु घासीदास जी के सतनाम उपदेशों का समावेश इसी शैली में गायन किया था जिससे लोग अभिभूत हो उठते थे |


*भरथरी प्रस्तुतिकरण के वाद्य यंत्र :-*


भरथरी प्रस्तुत करने में सुरुज बाई के सहयोगी साथी निम्नलिखित वाद्य यंत्र उपयोग करते थे :-

हारमोनियम,तबला,बेंजो,बाँसुरी,मजीरा और खँजरी |


*वेशभूषा एवं आभूषण :-*


प्रस्तुतिकरण के लिए विशेष रूप से तैयार होते थे | प्रमुख रूप से वेशभूषा पर ध्यान दिया जाता था | 

सुरुज बाई छत्तीसगढ़ में प्रसिद्ध इलियास साड़ी ही पहनती थी वे इसके साथ आभूषण उपयोग करती थीं जिसमें पुतरी,बहुंटा,नागमोरी,चुरी,करधन,बिछिया,तोड़ा,पैरी,रूपिया,ऐंठी,सूर्रा,ककनी,नथनी,झूमका,बाली प्रमुख हैं जो छत्तीसगढ़ के और भारतीय संस्कृति की अलग पहचान बनाती है |


*सुरुज बाई के सहयोगी कलाकार :-*


1.लखन लाल खाण्डे - मजीरा,घुँघरू,नृत्य करना और मुख्य रागी का काम करते थे |

2.शिवनंदन खरे एवं माखन साहू - हारमोनियम वादक 

3.हरप्रसाद रात्रे एवं रामहरि साहू -तबला वादक 

4.राजू रात्रे,जवाहर बघेल और उमेश सिहोते - बाँसुरी वादक


*सुरुज बाई को पगली कहते थे लोग*


जैसा कि हम जानते हैं कि प्रत्येक महान कार्य करने वालों के साथ ऐसा होता ही है | लोग बड़े-बड़े वैज्ञानिक,लेखक और गायकों को पागल कहते हैं | यह सब उनके शुरूआती संघर्षों का दिन था,ऐसे ही संघर्ष के दिनों को सुरुज बाई ने भी देखा है |

सुरुज बाई और उनके पति लखन लाल खाण्डे जी जीवन यापन के लिए मजदूरी का कार्य बिलासपुर मालधक्का में करते थे | आप नमक,गेहूँ,आलू,प्याज की बोरियाँ और तेल का टीन उठाते और ठेला भी चलाते थे | थकहार कर जब शाम को घर पहुँचते तब खाना पकाते पति के साथ भरथरी और अन्य लोक गीतों का अभ्यास करती थीं | अपने अभ्यास में आलाप भरतीं तो लोग इसे सुनकर परेशान होकर उन्हें पगली कहा करते थे | 

पगली कहने वालों को बिल्कुल पता नही था कि यही पगली एक दिन छत्तीसगढ़ के साथ-साथ पूरे विश्व में करुण रस की रानी,मेलोडी क्वीन सुरुज बाई खाण्डे के नाम से प्रसिध्द होगी |


*सम्मान :-*


छत्तीसगढ़ से लेकर कई राज्यों में आपके प्रस्तुतिकरण पर अनेक सम्मान मिला | इसके साथ ही जब आप सोवियत संघ रूस सन् 1987-88 में  भारत के लोकगीत भरथरी के प्रतिनिधित्व गायन किये तब वहाँ भी आपका सम्मान हुआ | 


मुख्य सम्मान : -


2001 में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा देवी अहिल्या बाई सम्मान से सम्मानित |

2006 में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा स्व. देवदास बंजारे स्मृति से सम्मानित |

2006 राम चन्द्र देशमुख बहुमत सम्मान |

SECL कला सम्मान पुरस्कार 1995 |

टिस्को जमशेदपुर एवं जिला पत्रकार संघ द्वारा सम्मानित | राष्ट्रीय उद्योग व्यापार मेला 2010 सम्मान |

भास्कर वुमन ऑफ द ईयर अवार्ड 2010 से सम्मानित |

बिसाहू दास महंत एवं कला साधना सम्मान-2010 |

चक्रधर समारोह रायगढ़ से सम्मानित |


*प्रसिद्ध लोगों से मिलना*


आपने विख्यात रंगकर्मी,नाटककार हबीब तनवीर एवं बंशी कौल,भाऊ खिरवरकर के साथ काम किया तथा इसके साथ आपको रंगकर्मी उषा गांगुली, रंगकर्मी अशोक वाजपेयी,कमलाकर सोनटेके,ए.के.हंगल,अमिताभ बच्चन,धर्मेन्द्र,हेमा मालिनी,गोविन्दा और जुही चाँवला जैसे कलाकारों से सम्बंध था |

 

*#नौकरी :-* 


सुरुज बाई खाण्डे जी की प्रसिध्दि बढ़ने के बाद उनके लोककला क्षेत्र में योगदान को देखकर उन्हें लोक कलाकार के तौर पर बिलासपुर एस.ई.सी.एल. में कला संयोजक पद पर नौकरी मिली थी | लेकिन कुछ वर्ष पहले मोटर सायकल से दुर्घटना होने की वजह से नौकरी नहीं कर पायी,इसलिए 9 साल पहले ही 2009 में सेवानिवृत्ति लेकर 2000 रुपये की पेंशन पर जीवन यापन कर रहे थे और इसके अलावा आपके पास आय का कोई साधन नहीं था |


*भरथरी प्रशिक्षण केन्द्र खोलने का  सपना :-*


लोक कलाकारों का मान सम्मान और आर्थिक रूप से दयनीयस्थिति को देखते हुए आप बहुत व्यथित रहती थीं | लेकिन भरथरी गीत से आपको आत्मीय प्रेम था | वर्तमान में कलाकारों की स्थिति को देखकर आपके मन में चिंता बनी रहती कि भरथरी जैसी विधा विलुप्त होने से कैसे बचे ? इस समस्या से निपटने के लिये आप चाहती थीं कि सरकार के सहयोग से इसके लिये प्रशिक्षण केन्द्र का निर्माण हो किन्तु आपका यह सपना सपना ही रह गया कुछ नहीं हो पाया |

अपनी चिंता को ध्यान में रखते हुए भरथरी गाथा की लोककला विधा के इस महान विरासत को अपने जीवनकाल में ही अपने प्रियजनों को सौंपने का काम किया जिनमें मुख्य रूप से बिलासपुर में ही लखन लाल खाण्डे जी,श्रीमती सोहारा बाई खाण्डे जी,भिलाई में कुमारी वंदना जी और भोपाल भारत भवन में आये हुए लोक कलाकार मित्र भाई द्वारिका जी थे |


*मृत्यु*


18 दिसम्बर 2017 के दिन गुरु घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय बिलासपुर में सुरुज बाई खाण्डे जी को गुरु घासीदास जी की जयंती के उपलक्ष्य में आमंत्रित किया गया था | केन्द्रीय विश्वविद्यालय में अंतिम बार इस मंच में बिना साज के ही सुरुज बाई ने भरथरी को एकल रूप से प्रस्तुत किया और लोगों का मन मोह लिया | पूरा सभागार तालियों से गूंज उठा | तब यहाँ बैठे लोग तथा देश में किसी को यह अंदेशा नहीं था कि सुरुज बाई खाण्डे 10 मार्च 2018 को हम सबको छोड़कर हमेशा के लिये अस्त हो जायेंगी | 

पूर्व में हुई सड़क दुर्घटना की वजह से सुरुज बाई कमजोर होती चली जा रहीं थी और अचानक हृदयाघात होने से उनका आकस्मिक निधन हो गया वे साकार से निराकार होकर आज भी सबके बीच हैं |


*डॉ.अमिता* :-

डॉ.अमिता गुरु घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं आपकी मुलाकात अप्रैल 2017 में सुरुज बाई खाण्डे जी से उनके निवास में हुआ | आप उनकी कला से अभिभूत तो थी हीं किन्तु सुरुज बाई से मिलने के बाद उनकी मालिहालत देखकर आश्चर्य और बहुत दुखी हुईं और आप उन्हें पद्मश्री जैसे सम्मान मिलने के पक्षधर हैं आप सुरुज बाई के मृत्यु उपरांत अपने लेख में लिखती हैं |


"भारतीय समाज में पुरस्कारों का राजनीतिकरण और जातिवादी मानसिकता को देखते हुए अगर हम यह कहें कि एक महान प्रतिभा को उसका प्रतिदान दिए बिना ही अलविदा कह दिया गया और इस तरह हम एक गौरवपूर्ण काम करने से वंचित रह गए तो अतिशयोक्ति नही होगी "


*क्यों मिले पद्मश्री ?*

 

अपने अध्ययन,अवलोकन और जनभावनाओं के आधार पर कुछ प्रमुख कारण पता किये हैं जिसके आधार पर हम कह सकते हैं कि सुरुज बाई खाण्डे को पद्मश्री मिलना ही चाहिए 


*आपका योगदान :-*


1.भरथरी लोकगीत एवं इस विधा को जन्म देने वाली आप प्रथम महिला हैं |

2.आपके द्वारा ही भरथरी को वेदमती (बैठकर गायन करना) एवं कपालिक(खड़े होकर गायन करना) दोनो शैलियों में स्थापित किया गया | आप छत्तीसगढ़ी लोकगीत में प्रथम महिला हैं जिन्होंने कपालिक शैली में गायन प्रारम्भ किये |

3.सन् 1988 सोवियत संघ रूस में हुए भारत महोत्सव में भारतीय एवं छत्तीसगढ़ के लोकगीत,कला,संस्कृति,भाषा एवं धर्म का प्रस्तुतिकरण कर उत्कृष्ट कार्य किया |

4.सम्राट विक्रमादित्य जिनके नाम पर भारतीय दैनंदिनी गणना(कैलेण्डर) "विक्रम संवत" चलता है,उनके बड़े भाई उज्जैन के राजा भर्तृहरि की जीवनगाथा का प्रचार किये |

5.आपने सुरमोहनी लोक कला मंच का निर्माण कर भरथरी के प्रचार के साथ-साथ ढ़ोला मारू,आल्हा उदल,चंदैनी एवं सतनाम पंथी जैसे लोक गीतों को भी आगे बढ़ाया |

6.भरथरी लोकगीत को संरक्षित रखने के उद्देश्य से आपने बिलासपुर में श्री लखन लाल खाण्डे,श्रीमती सोहारा बाई खाण्डे एवं भिलाई से लोक कलाकार कुमारी वंदना तथा भोपाल में लोक कलाकार द्वारिका प्रसाद जी को प्रशिक्षण दिया |

7.भरथरी लोकगीत को जन-जन के लिये कर्णप्रिय बनाकर उनकी आत्मा में बसा दिया और इस कार्य में आपने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया |


#असकरन_दास_जोगी

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