सतगुरु घासीदास सात सिध्दाँत

*सतगुरु घासीदास सात सिध्दाँत*
* सतनाम ही सार है जो कि प्रत्येक प्राणी व घट-घट में समाया हुआ है, अत: सतनाम को ही मानो !
* सत ही मानव का आभूषण है ! अत: सत को मन,वचन,कर्म,व्यवहार और आचरण में उतारकर सतज्ञानी,सतपंथी,सतकर्मी,सतगुणी और सतधर्मी बनो !
* मानव-मानव एक समान अर्थात् धरती पर सभी मानव बराबर और सम्मान के अधिकारी हैं !
* मुर्तिपूजा,अंधविश्वास,रुढ़िवाद,बाह्य-आडम्बर,छुआछूत,ऊँच-निच,जातिगत भेदभाव,बलिप्रथा,मांसभक्षण,नशापान, व्यभिचार,चोरी,जुआ आदि अनैतिक और पाप कर्मों का त्याग करें हक और न्याय का अधिकार सभी को है !
* काम,क्रोध,मोह,लोभ,अहंकार,घृणा जैसे षडविकारों को त्याग कर सत्य,अहिंसा,क्षमा,दया,करुणा,प्रेम,परहित जैसे मानवीय सतधर्म सतगुणों को अपनाकर सत के मार्ग पर चलो !
* स्री और पुरुष समान हैं , नारी को सम्मान दो, पर नारी को माता मानो !
* सभी प्राणियों पर पर दया करो ! गाय,भैंस को हल में मत जोंतो तथा दोपहर में हल मत चलाओ, अपने मेहनत और ईमान की कमाई खाओ !

संदर्भ:-

 सतनाम कैलेण्डर 

*साहेब-सतनाम*

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