*मन के छोर*

मन के छोर

मनखे के जिनगी बड़ भागमानी होथे, जिनगी ल जिये बर मन के आसरा म कारज करे ल पड़थे ! हमर सरीर म मसतिस्क हे मसतिस्क के किरया ल मन कहे जाथे, मन म जेन भाव आथे जेला बिचार कइथें अऊ इही बिचार ह मनखे ल भला-बुरा बनाथे ! मन ही हे जेन ह सब ल उदेस्य देथे, मन के बखान कतको लेखक,कबि,बिचारक,गायक मन करे हें ! मन ल कोनो परछईंहाँ कहिन, कोनो पुरवई ले बहूंते तेज कहिन, त कोनो चिरईं के नाव दीन, मन ल पानी,समुंद कहिन,मन ल खुसबू घला कहिन, मन ल कथरी, फरिया बनाके साधन के सोड़ा म कतको धोके भक्ति के निरमल पानी मं बनेच फरियाईन फेर मन के छोर ल सबो नइ पा सकिन ! मन के छोर ल ओ ह पाइस जेन समरथ हे मन के छोर ल पाना कोनो अलवा-जलवा बात नोहय ! मन तो मन आय एक बात अऊ जब हम मनखे कइथन त मन के संग म खे जुड़े हावय साधारन भाव म गुनबे त मन ह सबे ल खेवत हे फेर थोकिन बिसेस भाव म गुन के देखबे त पता चलथे की अइसे कोनो हमर भितर हे जेला मन ल खेवे के कारज मिले हे ! मन ल जेहर खेथे तेकरे पाय के ये चोला ल मनखे कहे जाथे , मन के खेवइया ल हर कोइ चिनहे के परयास करतीन ! ओ खेवइया ह चिनहार हो जाय जेकर बर बहूंते महिनत करे ल पड़थे , खेवइया ल चिनहे बर पहिली तो मन के छोर ल जाने ल परथे कतको मन के छोर ल जाने बर जिनगी गवाँ डारिन अऊ जेन मन के छोर ल पा घलीस ओहर खेवइया घलो ल चिन डारिस, जेन खेवइया ल चिन डारिस तेन संत, गुरू, सतगुरू, महातमा कहाथें ओ कोनो साधारन मनखे नइ रइजै अइसन मन दुनिया म कतको प्रेरना छोड़ गइन जेनमन ल आज हमन भगवान महावीर जैन, महात्मा गौतम बुध्द , सतगुरू रैदास, सतगुरू कबीर दास, गुरू नानक, सतगुरू घासीदास के रूप म चिन्हथन !

               मन के छोर ल सब पा जातिन तब तो धरती सतलोक बन जातिच, दुनिया म छाये अंधियारी म पुन्नी के चंदा बरोबर वो खेवइया ह अंजोर करतीच अउ ये दुनिया ल तिरिया अपमान, जीव हइता, जुध्द, जात-पात, छुआछूत, धरम के झगरा, अमीर-गरीब, भ्रसटाचार, चोरी-डकैती,देस-परदेस अइसन बुराई मन ल पलपलावन नइ देतिच , सबके भीतर ओ खेवइया एक बरोबर हे न छोटे न बड़े सबके मन म सत्य, अहिंसा, छमा,दया, परेम, करुना, परहित जइसन मनखे धरम( मानव धर्म )  के भाव ल जगातिच !  आज के वर्तमान जुग म घलो कतको मन, मन के छोर ल पाय बर भिंड़े हें फेर मन के ओर छोर के पता नइ चल पावय ! मन के छोर ल पाय के बिधि ल धियान लगाइ कइथैं , जब धियान लगाबे त मन ह घोड़ा बरोबर दऊंड़े लागथे घोड़ा ल बस म करे के परयास करइ बने बात हे फेर एकर बर बड़ जतन करे ल परथे थोरको सम्भले नइ पाय त घोड़ा ह रझाक ले पटक देथे तइसने मन ह मनखे ल बिच म पटक देथे ! जब धियान लगाय बर बइठबे त मन ह कभू नदिया देखाही, कभू पहाड़ देखाही त कभू छिन म बड़े बड़े रूखराई देखाही ! कतको बिते बात ल चेत म लाही, कभू काम बुता के उलझन म उलझा देही अउ त अउ भोग-बिलास के भंवारी म लेग के मुरझेट देही मन के गती ह पुरवइ ले जादा होथे येकर ठउके मरम ल जब धियान म बइठबे त जानबे, साढ़े तीन हांथ के काया खोली म माढ़े रइही अउ मन दुरूग,भेलाई, रइपुर, बेलासपुर,मुंगेली,सारंगढ़, कोरबा,रइगढ़,बस्तर, महांसमुंद कहां नइ कहां घुम फिर आथे ! आँखी मुंदे मुंदे धियान के किरया ल अइसे करना चाही के थक हार के मन के छोर ल मनखे पा जाय ! मन के छोर ल पाना हे त मन म जतका बिचार आवय जइसन भी आवय आवन दे आवत आवत सब खाली होवन दे ! दोनो आँखी ले मुंदे मुंदे माथा के बिच भाग ल देखत राह , देखते देखत म चारो कोती अंधियार दिखही फेर धुमलहा दिखही अऊ देख हलका उज्जर दिखही दोनो आँखी के केन्द्र बिन्दु माथा के बीच म करिया भँवर दिखही जेन गोल गोल घुमत रइही फेर वो भँवर अपन रंग करिया, भुरवा, लाल, पिंयर,टेहर्रा, धौंरा कतको तरहा के दिखही एक बेरा अइसन आही के मन के छोर आघु म रइही अउ आँखी म रगबग ले अंजोरे अंजोर छा जाही ! इही इसथिति ल मन के छोर अउ खेवइया के महल के सिंग दरवाजा कइथैं !

                  खेवइया ल चिनहेबर हे त धियान के उदिम ल करत रइ एक घरी अइसन आही के जम्में कुंडली जागही अउ खेवइया(पुरस) घट के देव सउंहे दिखही, अभास होही ! मन ल अधियात्म म अगास तत्व कहे गे हवय आज बैग्यानिक मन अगास ल नापे के कतका जुगत करत हें फेर अगास ह कहां सुरू होथे कहां खतम दूसर आखर म अगास के ओर छोर के गम नइ पात हें ! जेन मेरा बिग्यान हा खतम होथे ओही मेेरा ले अधियात्म ह सुरू होथे ये बात ल कतको गुनिक मन काहत आवत हें ! मन के छोर के मारग बहूंत कठीन हे मन के छोर ल पाय बर ओर म पांव जमाके खड़े होय ल परही ! मन ल साधे बर कोनो देखावा के जरूरत नइहे , छोर ल पाना हे त दस के धियान झन कर करना ही हे त अनंत सुन्य ल देख जेकर कोनो अकार नइहे ! मन लुकलुकहा होथे, मुलुल मुलुल करत रइथे मन के छोर ल पाय बर जोग लगाके जोगी बने ल परथे अउ जोगी सबे नइ बन जायं जोगी तव बिरले मनखे बनथे ,  बिरले ल ही मन के छोर मिलथे !

नाम : असकरन दास जोगी
पता : ग्राम-डोंड़की (बेल्हा) जिला-बेलासपुर ( छ.ग. )
मो.नं. : 8120477077

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