श्री पुरानिक लाल चेलक जी

संस्कृति और साहित्य के साधक : पुरानिक लाल चेलक जी
विलक्षण व्यक्तित्व का समाज में कमी नही पर कुछ ऐसे विलक्षण व्यक्तित्व हैं जिन्हे सतनामी समाज के पन्नों से हटा दिया जाये तो  समाजिकता, संस्कृति, साहित्य, सदाचार , बंधुत्व, संघर्ष, सतनाम प्रचार इत्यादि के प्रेरणा स्त्रोतों व प्रेरक अंशों की कमी का भरपाई समाज नही कर सकता ! सतनामी समाज में उच्च कोटी के साहित्य का अभाव सदैव ही दृष्टव्य होता रहा है ! और इन अभावों को भरने के लिए संस्कृति    व साहित्य अनेक साधकों ने यथासम्भव प्रयास किए हैं ! इसी कड़ी में सांस्कृतिक, साहित्य ,नृत्य व गायन के अभाव रूपी गहरी खाई को समतल मैदान में निर्मित करने हेतु अपने प्रयासों के मृदा को गीत,नृत्य व साहित्य के रूप में उड़ेलते रहे और उस खाई के उर्वरा भूमि में निर्मित करने हेतु आज भी प्रयत्नरत हैं ऐसे विलक्षण प्रतिभा के धनी आदरणीय पुरानिक लाल चेलक जी का नाम सतनामी समाज में बड़े ही सम्मान के साथ लिया जाता है !
                     आपका जन्म 3 जुलाई 1943 को ग्राम आलबरस तहसील व जिला दुर्ग में हुआ ! आपके पिता का नाम श्री शिवचरण चेलक एवं माता का नाम श्रीमती मलेछिन बाई था ! आपके गांव से शिवनाथ नदी बहती है, और उस नदी के उतार चढ़ाव ने आपके मनोमस्तिष्क में ऐसा प्रभाव डाला की आपने अपने जीवन को नदी की उस सार(सत) धारा के रूप में ढ़ालने के मार्ग में अग्रसर हो गये ! नदी के लहरों के बहाव की प्रकृति से आपका आत्मीयता इतना बढ़ा की उन बहावों से आपकी मित्रता हो गई और आप एक कुशल तैराक हो गये ! आपकी प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा स्थानीय शालाओं में सम्पन्न हुई ! आपने राष्ट्रीय विद्यालय दुर्ग से मेट्रिक तक शिक्षा प्राप्त किया ! तत्पश्चात आप भिलाई स्टील प्लांट में कर्मचारी हो गये ! कुछ वर्षों बाद आप वहां वरिष्ठ तकनीशियन के पद पर भी कार्यरत रहे ! आपकी विशेष अभिरूचि खेलकूद,चित्रकारी,नाटक,नृत्य, गान,गीत लेखन, गायन इत्यादि है !
                        सन् 1970 के आस-पास आपने पंथी नृत्य को अपना लिया ! आपने अपने ग्रामवासी सतनामी समाज की एक अच्छी पंथी टोली बनाकर गांव-गांव घुमना प्रारंभ कर दिया ! पंथी गीतों के गायन के अवसर पर आप प्रगतिशील विचारों को महत्व देते हैं ! लोगों में रूढ़ीवादी विचारधारा कम हो, लोग पढ़ लिख कर  अच्छे जीवन यापन करें, गुरू घासीदास जी एवं संतो के मार्ग का अनुशरण करें इस लिए ग्रामीण लोगों को ज्ञानवर्धक बातें बतलाते रहे! धीरे-धीरे आपकी प्रसिध्दी में व्यापकता आती गई और आप बेजोड़ पंथी नर्तक के रूप में विख्यात हैं ! 
                   आपको अपनी टोली के साथ गणतंत्र दिवस के अवसरों में रैलियों में आमंत्रित किये जाने लगे ! गिरौदपुरी धाम, रायपुर, मल्हार, लोककला महोत्सव भिलाई, बैलाडीला, सम्बलपुर, नागपुर, कामठी, आदिवासी लोककला मंच भोपाल और पंचमढ़ी में आपके टोली का पंथी नृत्य हुआ अनेक स्थानों में आपको एक उत्कृष्ठ गायक के रूप में सम्मिलित किसा गया ! आपने अब तक आकाशवाणी रायपुर, दूरदर्शन रायपुर में लगभग 100 गीत रिकॉर्ड करवाये प्रसारण हेतु ! आपकी सुमधुर ध्वनी वाली पंथी गीतें छत्तीसगढ के गांव-गांव में प्रसारित होने लगी ! लोगों ने बड़े ही उत्साह के साथ सुना - मैं तोला बंदवं गुरु के पद शरण चरण में , मोला लेई लेना हो ले-लेना ! इसी प्रकार आप अपने अनेक भावपूर्ण पंथी गीत गायन करते रहते हैं !
     आप अपने गायन हेतु स्वयं गीत लिखा करते हैं ! उन गीतों को दूसरे पंथी टोली के सदस्यगण भी गाते थे इस लिए आपने " एक था सतनामी " गुरू घासीदास की अमर कृति नामक अपने पंथी गीतों का संग्रह चार भागों में प्रकाशन करवाया !इसके अतिरिक्त आपने अपने गीतों को स्थायित्व प्रदान करने के लिए अनेक कैसेट व्यवसायिक स्तर पर जनसाधारण को उपलब्ध करावाये ! आपके लेखन एवं मार्गदर्शन पर " गुरु घासीदास जी जीवन चरित्र गाथा ज्ञान स्त्रोत के रूप में उपलब्ध है ! जिसमें समाज की विख्यात पण्डवानी गायिका श्रीमती उषा बारले ने अपना स्वर दिया ! इसी तरह आपके पंथी नृत्य के लोग इतने कायल थे कि विश्वप्रशिध्द पंथी सम्राट देवदास बंजारे जी ने पंथी नृत्य का आपसे प्रशिक्षण लिये तदोपरांत वे 82 देशों में पंथी को वैश्विक जगत में प्रदर्शन व सतनाम प्रचार के पथ पर चले ! चार भागों में प्रकाशित आपके पुस्तक का एक भाग ममतामयी मिनीमाता जी की जीवन पर आधारित है ! आपको अब तक 44  स्थानों में सम्मानित किया जा चूका है ! आपके सम्मान में आपको समर्पित 110 प्रशंसा पत्र आपके पास संरक्षित है !
            आपकी संघर्ष की कहानी अत्यंत प्रेरक है वर्तमान में आपका उम्र लगभग 74 वर्ष गतीमान है ! सतनाम प्रचार, नशामुक्ति, नारीजागरण, पर्यावरण, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, अध्यात्म, बेरोजगारी, अंधविश्वास, छुआछूत इत्यादि विषयों पर प्रेरक जागृति साहित्य व गीतों का  रचना किया ! आज भी आप समाज के समाजिक संघर्षों,सभा सम्मेलनों में एक युवा की भांती सक्रिय रूप से भाग लेते हैं और समय समय पर समाज को अपने विर भावों से ऊर्जा का परिचय कराते हैं वास्तव में आप किसी सम्मान के मोहताज नही आप के यश कि किर्ति सभी तरफ व्याप्त है ! परंतु दुख की बात यह है कि आपके इतने संघर्षों के बाद भी छत्तीसगढ़ शासन की ओर से " गुरु घासीदास चेतना पुरूस्कार के लिए आपका नाम चयन नही किया जा रहा है इसे शासन का चूक कहें या सम्मान के लिए बनी चयन समिति की अज्ञानता  !
     आपके नृत्य, गीत, साहित्य सदैव समाज में प्रसारित रहेंगें आपके विलक्षण प्रतिभा सतनामी समाज रूपी हंस के लिए मोती है जिसे नृत्य,गीत व साहित्य के भूंखे साधक समाज रूपी हंस सदैव चूगता रहेगा !
साहेब-सतनाम
असकरन दास जोगी
ग्राम-डोंड़की(

बिल्हा)

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