सतनामी कही देबे

🌏सतनामी कही देबे🌏
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हमला गर्व हे की हम ह सतनामी कुल म जनम ले हवन , हमर पुरखा मन के लड़े लड़ाई ह आज हमन ल मुड़ी ऊठाके अऊ छाती तान के रेंगे के रसता देखाथे ! शिक्षा, सनमान, धन , धरम , बराबरी , रोजगार , जमीन सब म हमर हक हे ! जेकर बर हमर पुरखा मन अपन सब कुछ लुटाईन अऊ हमन ल सतनामी कहाय के गौरव दीन ! चंदा ह अंजोर करथे , मन म सांति भरथे , सुरूज ह दुनिया ल अंधियारी ले निकालथे अऊ मन म नवा जोस , उमंग भरथे ! ओईसने हमर पुरखा मन चंदा सुरूज आयं जिंकर बल म आज सतनामी मन के ठाठ-बाठ हे अऊ सतनाम के डंका बजत हे ! जब-जब पुरखा मन के सुरता आथे सतनाम अऊ सतनामियत के नवा रद्दा खुलथे , जेमा रेंगई हमर बस म हे के नही हमला तय करे ल परही ! फेर एक बात हे हमर पुरखा मन के चलाये संस्कृति ह आज हमर मन के पहिचान बना दिस !
                  आज मैं उही संस्कृति मके एकाकठन ल सब झन ल परोसना चाहत हवं , हमर सभ्यता अऊ संस्कृति दुनिया म सबले निराला हे ! दाई-ददा, बड़े भाई , बड़े बहिनी, बबा, ककादाई, नाना, नानी, कका , बड़ा, फुफा-फुफी अऊ गुरू जेकर भी पावं परबे हंस के कईथैं " सतनाम ग , साहेब सतनाम ग , जय सतनाम ग , आनंद राह बेटा ( बेटी) आनंद राह भाई (बहिनी) , जब ककरो पावं परबे त सतनाम ल ले के हिरदे ले आसिरबाद देथे ! अईसनहा आसिरबाद ह हमला , पढ़े लिखे, संस्कारी, गुणवान, रोजी रोजगार, बैपार, परिवारिक रिस्ता जम्मों क्षेत्र म अपन बढ़िया कारज करे के प्रेरना देथे ! अईसन संस्कृति कहूं नई हे , जिहां पावं परबे त सतनाम कहिके आसिरबाद देही ये संस्कृति हमर सतनामी के आय अऊ अईसन संस्कृति म हमला गर्व हे !
                       जब घर म कोनो पहुना आथे त घर के बहू ह झट ले मुड़ी ल ढ़ांकथे जईसे सुरूज ह बादर म छिन म लुका के छिन म फेर दिख जाथे ! बहू ह घर म आये पहुना बर एक लोटा पानी लाके देथे मुंह, हांथ, पावं धोये बर ! बहू जब पहुना के पावं परथे त पहुना ह कईथे सतनाम , आनंद रई बेटी, दुधो नहाव फुलव फरव , दुरिहा ले आये सगा ह एक लोटा पानी पाके थिराथे ! एक ठन बात तव मैं भुलावत रहेवं जब हमन ककरो पावं परथन त संग म सतनाम कईथन , ले बता अईसनहा बढ़िया संस्कृति ककरो हो सकत हे ? बिल्कुल नही, अईसनहा संस्कृति बस हमर सतनामी के हे जेन हमर आज पहिचान हे ! (पांव परई ल सतनामी करई घलो कईथैं )
                   जब पहुना हांथ पावं धो के थिराथे घर के मन सब पहुना तीर जुरियाथें त ओ पहुना अपन सगा मन ल कईथे तुमन ल " सतनामी कहीस हे ग (ओ) "  कोन ह ओ पहुना के गोसईन अऊ घर के मन संदेसा भेजे रथे जब कोनो पहुना हमर घर म आके कईथे की " तुमन ल सतनामी कहीस हे " त एकर मतलब होथे ओ पहुना के घर ल ऐ संदेस आये रथे की " हमन हली-भली हन " " कुसल-मंगल हन " तुहू मन हली भली, कुसल मंगल रईहव , सुभ संदेसा पाके घर वाले मन उच्छल मंगन हो जाथें ! अऊ का कथें जानथव ओ पहुना ले घर वाले मन " ले ग ले पहुंचय ओहू मन ल सतनामी " " उंकर एेंड़ी,तरवा खजवावय " मतलब हली भली राहयं , ओ मन ल हमर सुरता आवय ! भाई बहिनी हो गुनव कतका बढ़िया हमर सोर संदेसा ले देय के संस्कृति हे ! " सतनामी कहिस हे ग (ओ) " अईसन संस्कृति सभ्यता पाके हमन धन्य होगे हन ! पहुना चार पहर रात गुजार के बिहनिया घर जाय बर निकलथे त पहुना ल जोरन म (मौसम के हिसाब म) सोंहांरी,ठेठरी, खुरमी,अईरसा,मुठिया, मालपुआ,सुखड़ी बोईर,तिंवरा के होरा देथन ! अऊ जावत जावत ओला चिल्लाके कथन दीदी ल, मामी ल, काकी ल, फुफी ल, ( जेन रिस्ता रईही ओकर नाव लेके ) ओला " सतनामी कही देबे " त ओ पहुना ह कहिथे हव ठीक हे जावत हवं सतनाम , घर जावत साठ कईहवं " सतनामी कहीस हे कईके ! पहुना अपन घर म जाथे त ओईसनहेच कईथे " तुमन ल सतनामी कहीस हे तुंहर फलाना सगा ह "  त ओ घर के मन घलो कईथैं " पहुंचै सतनामी " उंकर ऐड़ी तरवा खजवाय ! ए हमर सोर संदेसा ले अऊ दे के सभ्यता संस्कृति आय !
             पांव परबे त " सतनाम " , जेकर पांव परबे तेन कथे " सतनाम " , मतलब सतनाम- बने बने राह, अम्मर राह मतलब- दुनिया म नाम कमा , अईसन हमर दुर्लभ सभ्यता संस्कृति हे जेला सहेज के रखे के जरूरत हे आज ये सभ्यता अऊ संस्कृति ह हमर गांव के सतनामी मन के परान पखेरू आय इंकर बिना गांव के सतनामी समाज बिन परान के ठाठ आय फेर जतके सतनामी मन पढ़त लिखत हें , नौकरी चाकरी करत हे , गांव ले शहर म जाके बसत हें सब अपन सभ्यता अऊ संस्कृति ल नंदावत हें ! शहर के 95% सतनामी मन ए संस्कृति ल भुलागे हवंय , लागथे पांव परे के बेरा सतनाम कहिना , पहुना ल जाय के बेरा सतनामी कहि देबे ग कहिना ! आजकल तव सतनामी शब्द ल जातिगत लेके बुरा मानथें , भाई बहिनी हो सतनामी कोनो जाति नोहय सतनामी तव सतनाम के सभ्यता संस्कृति आय जीवन शैली आय जेन रिति-निति ल हमर पुरखा मन चलाईन सतनामी ह तो आज जाति के रूप धारन करे हे आधुनिक अऊ स्वतंत्र भारत म ! सतनामी ह तो पहिली सभ्यता संस्कृति रहिस फेर हमर बर तव अभी घलो सभ्यता संस्कृति अऊ जीवनशैली आय !
          अईसन सभ्यता संस्कृति ल हमर कोन चलाईन, कोन चालू करिस कोनो नई जानयं , सतनाम ग (ओ), " सतनामी कहि देबे " " सतनामी पहुंचै " !
ए लेख ल पढ़ईया सबला बिनती हे की अपन सभ्यता संस्कृति के रक्षा करव ! जतका झन ए मोर लेख ल पढ़त हव तिंकर मैं गोड़ छू के पावं परत हवं सतनाम , सब झन ल अऊ मोर कोती ले सब अपन-अपन घर मं " सतनामी कहि देहवं " !
सतनाम , साहेब सतनाम , जय सतनाम

समर्पित :- अपन ए लेख ल मैं हमर सतनामी समाज के जम्मों पुरखा मन ल समर्पित करत हवं, जेन मन जाति बर नही मानवता बर लड़ीन , हमला सतनामियत(मानवता) के राह दिखाईन ओ मन ल मोर सत् सत् सतनाम ! 
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✍🏻असकरन दास जोगी
     

Comments

  1. बहूत सुन्दर भाई

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    1. बहुँत बहुँत धन्यवाद

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    2. बहुँत बहुँत धन्यवाद

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