परेतीन के नाती

@ नाटक- परेतीन के नाती @

बईसाख के भागती अऊ जेठ के लगती खड़े मंझनिया के जुहर पिपर के डारा ह डोलत रहय ..पुरवई ह सर सर सर सर चलत रहय..पुरवई पाय के पिपर के पिकरी ह टप टप करके भुंईयां म टपकत रहिस, अऊ ओ टपकट पिकरी ल लेमठुआ टुरा ह बिनत रहिस. लेमठुआ आज बड़ खुस हे अऊ बहेराकस भूत अपने अपन गोठियावत हे , आज तव मै अब्बड़अकन पिकरी बिन डारेवं दाई ह आज मोला नई खिसयावय ,...(का हे न ओ बेरा म बड़ दुकाल परय तेकर पाय के मनखे मन पिकरी,डुमर अऊ काहीं काहीं फल फलहरी ल खाके जिनगी बितावंय)....!
फेर कईथे न दूबर ले दू असाड़ अऊ सकऊ के डऊकी ल सब भऊजी कईथैं तईसे देखते देखत म कोदू,पुर्रू,चुचरू,भकाडू अऊ अनघटू ह गाय गरूआ कस बरदी बरोबर दोरदीर-दोरदीर आईन टेही पारत अऊ लेमठुआ के टुकनी मके जम्मे पिकरी ल लात मार के गिरा दीन अऊ रोनो जीभ निकालय कोनो आँखी मिचकावय अऊ कोनो ठेंगा देखावय अऊ कहे लागीन कस कस के परेतीन के नाती...२ परेतीन के नाती..२ एक झन ह तव लेमठुआ के चुंदी ल हटकार के कहे लागीच परेतीन के नाती...परेतीन के नाती..अतका म लेमठुआ बऊछागे अऊ ऊंखर बिच म धराझुमटी होय लागिस . लेमठुआ बपुरा अकेल्ला अऊ उमन चार पांच झन लेमठुआ कहां सकय तहां लेमठुआ ल कोदू ,पुर्रू, चुचरू,भकाडू अऊ अनघटू ह ठठाय लागीन...अऊ काहत राहयं परेतीन के नाती परेतीन के नाती..लेमठुआ ह रोय लागीस . ओती हगरू मंडल ह आवत राहय देख परथे लेमठुआ ल चार पांच झन मिल के मारत हवय.. हगरू मंडल ह दुरिहे ल तमिया के चिल्लाथे नान तो रे बुजेरी मन ल ठठान दे अतका झन मिलके एकझन ल मारत हवंय.. हगरू मंडल के आरो ल सुनके कोदू,पुर्रू,चुचरू,भकाडू अऊ अनघटू मन उठपराईन भाग रे भाग रे हगरू मंडल आवत हे कहत भाग गयं....लेमठुआ उही मेरा रोवत बईठे रहिस हगरू मंडल लेमठुआ ल आके उठाथे अऊ पिपर के जरी म बईठारथे अऊ ओकर पिकरी ल टुकनी म उठाथे तहां पुछथे काबर ठेनी होवत रहेव लेमठुआ ये सारे टुरा मन तोला काबर मारत रहिन..?
लेमठुआ:-देख न बबा आज बनेच अकन पिकरी बिने रहेवं ये सारे मन दोरदीर दोरदीर गरूआ बरोबर आईन हे अऊ मोर पिकरी ल लात मार के भुईंया म गिरा दीन हे . तहां मोर सो चेटघईंयां लगात रहीन परेतीन के नाती परेतीन के नाती कईके...नई सकाईच त महूं ह लड़े ल धर ले हवं......
हगरू मंडल:- बेटा लेमठुआ ये सारे टुरा मन तो अईसनेच हवंय इंकर सो झन उलझे कर तयं..
लेमठुआ:- बबा मैं एकठन बात पुछवं बताबे..दाई अऊ ददा लंग पुछ पुछ के हक खागे हवं..बताबे नई करयं कईथैं बाढ़बे त जान डारबे....
हगरू मंडल:-का बात ये लेमठुआ ले पुछ..बतात हवं भई..
लेमठुआ:- बताबे त पुछहवं..
हगरू मंडल:- अरे लेमठुआ पुछबे तब तो बताहूं..
लेमठुआ:- ले ठीक हे त ..ये सब टुरा मन मोला परेतीन के नाती परेतीन के नाती कईके काबर चिड़काथैं...?
हगरू मंडल:- हंस पड़थे ह ह ह..
लेमठुआ:- ये दे तहूं हसत हच..बता न बबा सिरतोन म...
हगरू मंडल:- सच म बताववं बेटा लेमठुआ..
लेमठुआ:- हव बता न बबा..?
हगरू मंडल:- बेटा लेमठुआ येकर बर तोला मैं तोर बबा के किसा सुनात हवं. ...
लेमठुआ:- चऊंक के मोर बबा के किसा... ओ काबर..?
हगरू मंडल:-तभे तो जान पाबे के तोला परेतीन के नाती परेतीन के नाती कईके काबर चिड़काथैं...ह ह ह..
लेमठुआ:-ठीक हे त बता...!
हगरू मंडल:- ले त सुन तोर बबा के किसा ... तोर बबा ह पांच हांथ के जवान ..बल म तो ओकर लंग हमर गांव के कोनो जहुंरिया मन नई सकत रहिन..दुहरी देह के गोल गोल गाल के तलवार कस मेछा..गोरिया नरिया बड़ फबय  तोर बबा ल , ओ बेरा म हमर मन के बिहाव नई होय रहिस...
लेमठुआ:- हसत पुछथे सिरतोन म बबा...?
हगरू मंडल:-हव सिरतोन म लेमठुआ...
लेमठुआ:- तहां आघु का होईस..?
हगरू मंडल:- ले सुन टोकबे झन तैं चेनहथस बहूंत..
लेमठुआ:-ले ठीक हे नई चेनहवं सुना डर...
हगरू मंडल:- तोर बबा गांव म सबले सुघ्घर टुरा रहिस गांव के जम्मे टुरी मन तोर बबा के ददरिया ल सुन के एक घांव मोकाय थोकाय बरोबर हो जवंय फेर तोर बबा ह गांव के कोनो टुरी ल भुंसा तव भुसा कोड़हा घलो नई डारय ह ह ह ह..
( हगरू मंडल उही दिन के सुरता म बुड़ जाथे...)
लेमठुआ:- ओदे अपन ह कहां गुने ल धर लीच अईसनहे म मैं तोला हगरू मंडल कई देहवं..(डोला के कहिस)..
हगरू मंडल:- हत रे बुजेरी...अरे चेत ल बिचेत होगे रहिस ले सुन......
तोर बबा ह अईसनहे खड़े मंझनिया के जुहर परसा रवार म बांख निकाले बर परसा जरी खने बर गईस चोंगी ल पुकती म दबा के धरीच...सादा के छय हांथ के धोवा धोती पहीरे रहिच..एकठन पटकु मुड़ी म बांधे.. हांथ म टंगिया अऊ कुदरी ल धरे रहय.. अऊ पानी पिये बर पोघई म पानी धरे रहय.. जाते जात -जाते जात..बिच खार के परसा रवार म पहूंच गे . बिच खार उही ल उड़हरिया खार घलो कईथैं . जेन मन उड़हरिया भागयं तेन मन ऊही कोती ले लुकाके भागयं  . महूं ह मोर डोकरी ल उड़हरिया खार के रसता ल भगाके लाने रहेवं... त तोर बबा दुकालु ह बिच उड़हरिया खार परसा रवार म पहूंचे के बाद एकठन बड़ जन जुन्ना परसा तरी बईठीच . अऊ थोरकुन पानी ल पिच पोघई मके झांझ पाय के पियास लगत रहीस त...तहां चोंगी ल दगा के दु घावं सुर सुर चोंगी ल पिच ..तहां परसा के जरी खने लागीस कुदरी म... थोरहे बेरा म दुकालू ह बने अकन परसा के जरी ल कोड़ डरीस..अब थोकिन उही जुन्ना परसा तरी धिरताय लागिस..मन म गुनिच अतेक घाम हे घर जाहवं तेकर ले एही जगा म छईहां म बईठ के जरी ल कुच काच के बांख निकाल लेतेवं..... बने बात ये कईके दुकालू ह परसा के जरी ल कुच काच के बांख सुर्रे ल धर लीच फेर चोंगी के चुलुक लागिस त बिड़ी ल दगाके सुर सुर पिये लागिस .. अब बांख ल सुर्रय अऊ पाछू कुती मढ़ावत जाय देखथे लहुट के त बांख ह नई राहय ..फेर सुर्रय फेर रखय अऊ लहुट के देखय त बांख ह छप हो जय दुकालू जंग्गाके कईथे कोन सारे मन मोर बांख ल चोराथे रे आघु म तो आवव... दू तीन घावं दुकालू तमिया तमिया के चिल्लाईच अतका म देखते देखत म बड़ गर्रा-धुका चले लागिस जुन्ना परसा के पाना डारा ह बादर टिहके कस अऊ मांदर ठोंके कस बाजे लागिस दुकालू के आँखी कान झम ले मुंदागे...आँखी उघार के देखथे त जगर बगर करत फुट मुटयारी टुरी लाल के लुगरा पहिरे सोला सिंगार साजे आघु म खड़े रहिस..दुकालू ल अक्का आवय न बक्का मुआ देबे बरोबर चुप अऊ ओला निटोरे लागिस... फेर ले दे के दुकालू ह सम्हलिस ..अऊ ओकर लंग पुछे लागिस बिच खार म तैं काकर बेटी बहू इंहां का करत हस ओ....
ओ टुरी ह हसत हसत ह ह ह ह...
तोला एमेर कोन बईठे ल कहिच तैं काकर लंग पुछ के बईठे हच..?
दुकालू कईथे बिच खार म काकर लंग पुछबे वो मन करिस त बईठ गेवं अऊ तैं कोन होथस मोला पुछईया...?
अतका म ओ टुरी बऊछागे अऊ कईथे मैं ये जुन्ना परसा के परेतीन आवं..अऊ तैं मोर बसेरा मेर आके बईठे हस अब मैं तोला नई बचाववं .ह ह ह ह...
दुकालू राहय तेन सुकपुकागे जईसे बिगड़े के घरिया म बुध्दी ह नास हो जाथे काम नई करय तईसे..... परेतीन अपन बात म अड़ गे अब कहे लागिच मैं तोला खाहवं नई बचावं...दुकालू कईथे अईसनहा काबर करथस वो मोला छोड़ दे मोला छोड़ दे ..
परेतीन नई मानय तोला खाहवंच कईके रट लगा लेथे.....
दुकालू कईथे ठीक हे तैं मोला खा लेबे फेर मोरो एकठन सरत हे ...परेतीन कईथे का बता..?
दुकालू कईथे तोर लुगरा के अचरा ल मोला धरा दे तहां तैं मोला खाले मैं नई रोकवं...परेतिन राहय का गुनिच का मथिच..कईथे चल ठीक हे ले धर कईके धरा दिच लुगरा के अचरा ल..तहां परेतीन दुकालू ल खाय बर करथे...दुकालू राहय बड़ चतुर कमलु बईगा बबा सो मंत्तर सिखे रहिस तेन मंत्तर ल पढ़ के परेतीन के लुगरा ल एक झटका म खिंच के निकाल दिच..अऊ धरा रपटी टंगिया म कुदरी के बेंठ बांस के राहय तेला काट के जम्मे लुगरा ल बांस के खोड़रा म डार दिस..परेतीन नई जानपाईच के दुकालू बड़ चतुरा हे परेतीन के जम्मे जादू लाल लुगरा म रईथे अब बिन लुगरा के परेतिन के जादू कहां काम करय दुकालू सो हारगे..अऊ दूकालू ल बचन दिस के तैं जईसे कईबे मैं ओसनहेच करहवं कईके...दुकालू राहय तेन अपन छय हांथ के धोवा धोती ल परेतीन ल पहीरा दिच अऊ अपन ह गमछा ल पहीर लिच परेतीन के लुगरा ल बांस के खोड़रा म धरे धरे अऊ परेतीन अऊ बांख ल संग म लाईच..गांव म दुकालू आईच त दुकालू के संग म जवान टुरी ल देख के सब दंग रहिगे ...कतको टूरी मन तो दुकालू ल ताना मारे ल धर लीन..हमला का होगे रहिस येला ला लिस येकर ले हमन का कमती हन..... जब घर के अंगना म पहूंचीच त परेतीन मुह ल उघारीच त गांव भर के देखनी उड़गे सब बोक बाय देखे लागिन...बड़ सुघ्घर रहिस परेतीन ह ....उड़हरिया खार के गोठ ल सब ल बताईच  दुकालू ह तहां गांव भर म सोर उड़गे दुकालू ह परेतीन गोसईन लाय हे कईके...ह ह ह ह..
दुकालू ह तहां परेतीन संग बर बिहाव करिस.. हर सनिच्चर बजार के दुकालू ह परेतीन बर चना,मुर्रा , चुरी चाकी लानतिस अऊ बड़ खुस रहैं तहां....
अऊ देखबे लेमठुआ तुंहर कोठी के गोड़ा तरी चना,मुर्रा,चुरी काची अऊ लुगरा के सुतरी राहत होही...लेमठुआ कईथे हव बबा देखे हवं..हगरू मंडल कईथे फेर दुकालू अऊ परेतीन अईसने अईसने कुछ दिन म उच्छल मंगल रहिन , रहिते रहत म कुछ दिन म लेमठुआ तोर ददा टुरा ह जनमिस परेतीन पेट ल त तोर ददा ल तो आज ल गांव के मन परेतीन पिला कईथैं लेंठुआ..ह ह ह ..कुछ दिन म तोर ददा ह बिहाव करे के लाईक होईस त बर बिहाव बर टुरी खोजिन अऊ तोर दाई ल खोज के तोर ददा संग मंगनी जचनी करेन अब बिहाव होय के बाद बरात ह दुल्हीन ल धर के आईच त परघऊनी म सब नाचथैं त तोर परेतीन डोकरी दाई ह नई नाचत रहिस त सब पहुना कईथैं काबर नई नाचत हस ओ परेतीन बेटा के बिहाव करत हस अऊ नई नाचबे तैं हं त नई फबय भई कईथैं...परेतीन कईथे मैं नाचबे नई करवं त सब दुकालू लंग जाथैं काबर नई नाचत हे भई परेतीन ह चल मना रिसागे हे लागथे तैं मनाबे त मानही....दुकालू सोंच म पड़ जाथे परेतीन सो जाके मनाय बर करथे नई मानय..पुछथे काबर नई नाचत हस ...त ले दे के बक ल फोड़थे अऊ कईथे..सुरता कर मोर लाल के लुगरा ल बांस के खोड़रा म लुकाय हस ओही ल देबे तभे मैं नाचहूं असन नई नाचवं...दुकालू कईथे तोला नवा लुगरा दे देथवं बेटा के बिहाव करत हन काबर नई नाचबे ....अतका म मुह ल फुलाके परेतीन ह अऊ रिसा जाथे माईलोगिन पहुना मन कईथे दे दे न बपुरी के लुगरा ल काहे लुकाके रखे हस  निच्चट बपुरी ल डरूहा के रखे हस चल दे लुगरा ल कईथैं...दुकालू ह बड़ समझाथे माईलोगिन पहुना मन ल वो लुगरा ल कहूं मैं येला देवत हवं त येला फेर दूबारा मैं नई पावंव....माईलोगिन के जात वो पहुना मन नई मानिन बड़ जिधयाय ल धर लीन...तहां ताव ताव म दुकालू ह गुस्साके बांस के खोड़रा ले लुगरा ल निकाल के लान के दे देथे.....परेतीन ह लुगरा ल पाके बड़ खुश होथे अऊ लुगरा ल पहिर के परघईनी कलस ल बोह के बड़ नाचथे नचई म बिधुन होगे रईथे....तहां का पता का होईस अपने अपन गर्रा धुका चले ल धरलीस अऊ परेतीन छप होगे ...जतका मनखे ततका सब दंग परेतीन कहां गै परेतीन कहां गै कईके...दुकालू मुड़ी ल धरलीच .....सब दुकालू सो पुछथैं ये का होगे जी कईके ..त दुकालू भभके भभके असन रोनहूं रोनहूं होय कईथे तुमन ल तो बरजे हवं ये लुगरा ल झन देवावव ये लुगरा ल देवं तहां मोर परेतीन ल मैं नई पावंव कईके मोर लाख बरजे म तुमन नई माने हव त दे ल परगे अब वो गय " अपन डेरा " म ओला कहां पहूं अब मैं.. तहां बिहाव ह होगे ऊही दिन ले दुकालू ह कोठी तरी चना,मुर्रा, चुरी चाकी,अऊ लुगरा के सुत परेतीन के सुरता म रखय जेला तोर ददा घलो ह अब रखथे लेमठुआ.. बस अतके किसा ये तोर बबा दुकालू अऊ तोर परेतीन डोकरी दाई के.. तेकरे सेतीर तोला चिड़हाथैं परेतीन के नाती परेतीन के नाती कईके...ओती लेमठुआ के दाई ह आरो लगावत हे कहां हस रे बेटा लेमठुआ तीन बज गे रे पेज पानी आ पीले अभी ल तैं पिकरी बिनत हस कईके...दाई के आरो ल सुन के लेमठुआ ह हगरू मंडल ल कईथे मैं जात हवं बबा दाई बलावत हे कईथे हगरू मंडल कईथे जा बेटा...लेमठुआ अपन दाई ल आरो लगाथे आत हवं दाई ओ कईके हसत कुदत घर चल देथे .... खटिया म सोय-सोय लेमठुआ हर कुसूर-मुसूर करत गिंगयाय ल धर लिस अतका म ओकर दाई ह मुड़ म पानी रिकोके जगा देथे ! भिन्सरहा के चार बजे रईथे लेमठुआ कईथे अं सपना देखत रहेवं का ..? ओकर दाई कईथे रोज तोर इही हाल रईथे काहीं न काहीं सपना देखथस मुंधेरहा रात ले जगा देथस गिंगियाके लेमठुआ धत्त सारे ल सच म सपना देखत रहेवं ! अपन दाई ल कईथे दाई मोर डोकरी दाई परेतिन थोरे रहिस वो ओकर दाई कहे लागिस , मुड़गिरा चुप चाप सो जा थोथना ल मारहूं त धियान आही का जागे के बाद घलो सपना म गिंजरत हस तोला पता हे न " परेतिन-सरेतिन " काहीं नई होवय ये सब मन के भरम होथे ! लेमठुआ ह अपन दाई के अतका गोठ ल सुन के अईंठत गोईंठत फेर सो जाथे ! 
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लेखक-असकरन दास जोगी
ग्राम-डोंड़की ( बिल्हा )
मो.नं. : 9770591174

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