दहेज और सतनामी समाज

!! दहेज और सतनामी समाज !!

वर्तमान समय चक्र ऐसा विषैला हो चुका है की इसके कारगर उपाय भी निश्क्रिय शाबित होते नजर आते हैं ! प्रत्येक समाज की नीव को कुछ उनके ही परम्परायें हिला रही है , दहेज की प्रथा आज के प्रत्येक समाज के लिए एक विष का कार्य कर रही है , जिससे निजाद पाना अत्यंत आवश्यक है ! आज स्थिति ऐसी है कि अमीर के घर हो विवाह तो करोड़ों का दहेज , मध्यम वर्ग के घर हो विवाह तो लाखों का दहेज तथा सबसे चिन्तनीय विषय किसी गरीब के घर भी अगर विवाह होता है तो लाख रूपये व अन्य समानों की दहेज देने की प्रथा का प्रचलन होना वास्तव में दहेज प्रथा सर्व समाज के लिए एक अभिषाप है !

दहेज क्या है ? :-
दहेज वास्तव में कोई बुराई नही था , अपने प्रारंभिक चरण में यह बहूंत ही शुभ व प्रेम तथा स्नेह का प्रतिक माना जाता था ! जब कोई माता-पिता अपने पुत्रि का विवाह करते तो उनके उज्जवल भविष्य की कामनाओं के साथ उन्हें कुछ घरेलु उपयोगी वस्तुएं व गहनें स्नेह भेंट किया करते थे ! अपनी संतानों की खुशियों के लिए भेंट दिया जाना एक परम्परा के रूप में स्थापित हुआ व यह परम्परा आज वर्तमान दौर में " दहेज एक अभिषाप " के रूप में स्थापित हो चूका है !

दहेज अभिषाप कैसे ? :-
दहेज स्नेह भेंट के प्रतीक से अभिषाप में परिवर्तित कैसे हुई यह विषय बहूंत विचारणीय हैं जिसके कुछ बिंदूं आप सभी के समक्ष रखने का प्रयास कर रहा हूं !
१ दहेज स्नेह भेंट से परिवर्तित होकर परम्पराओं के रूप में विकसित होना !
२ दहेज पहले स्नेह भेंट के रूप में दिया जाता था , बाद में वर पक्ष से निश्चित राशि व वस्तुओं के रूप में मांग किया जाना !
३ दहेज के नाम से घर,जमीन व अन्य सम्पत्ति बेंचना एवं गिरवी रखना !
४ दहेज न देने पर बारात का वापस हो जाना !
५ दहेज न होने पर कई युवतीयों का विवाह न हो पाना !
६ दहेज देने के लिए वधु के पिता को कर्ज लेना !
व अन्य मुख्य कारण रहे !

दहेज और सतनामी समाज :-

आप सभी के समक्ष सतनामी समाज में दहेज के स्वरूप को रखना चाहता हूं ज्यादा अनुभवी तो नही परंतु कुछ आंखों देखा तथा कुछ बुजुर्गों से सुनी हुई बातों के आधार पर अपने तथ्यों को प्रस्तुत करने जा रहा हूं जो कि कदापि अव्यवहारिक नहीं हैं यह तो पूर्णत: प्रायोगिक व व्यवहारिक हैं इस प्रकार से

१ भूतकालीन परिदृश्य :-

पहले जब विवाह की बात होती थी कन्या पक्ष व वर पक्ष रिस्ता तय करने के लिए आमने-सामने होते तो अन्य दहेज देने वाले समाज का उदाहरण देकर वधु पक्ष वाले कहते थे छत्तीसगढ़ी वाक्य " दहेज-वहेज घलो देहे ल लागही का सगा ? " तब वर पक्ष से जवाब आता छत्तीसगढ़ी वाक्य " हमला काहीं नई चाही ग सगा , एक लोटा पानी अऊ सोला आना कनिया के आसरा लेके तुंहर डेहरी म आय हवन " सोंचिए यह वाणी कितना अमुल्य था तथा इन्हीं बातों में हमारे पूर्वजों ने समाज को समृध्द कर स्थापित किए ! कुछ बुजुर्गों से चर्चा करने पर पता चलता है गुरू घासीदास जी व गुरू बालकदास जी के समय में समाज में विवाह विधान में वे दो तरह के उत्तम परम्परा का शुभारंभ किए थे पहला यह कि वरमाला के साथ जैतखाम में सात फेरे लेकर, नारियल तोड़कर विवाह करना तथा यह विधि समाज में आज भी प्रचलित है , व दूसरा यह है कि वधु पक्ष जो कि गरीब हों तो वर पक्ष कि ओर से आर्थिक सहयोग प्रदान किया जाना , विवाह सम्पन्न कराने के लिए ! ( लेखक : इसी सम्बंध में मुझे आज भी याद है आज से करीब ११-१२ वर्ष पहले जब हमारे बड़े पापा जी ने अपने छोटे पुत्र का विवाह किया तो उन्होंने अपने पुत्र की पसंद से वधु चयन किये तथा वधु पक्ष की माली हालत उस वक्त खराब थी तो बड़े पापा जी ने अपने समधी जी को विवाह सम्पन्न करने के लिए आर्थिक सहयोग प्रदान किए , ऐसी परम्पराएं समाज की अस्मिताओं की रक्षक होती हैं ! ) कुछ बुजुर्ग कहते हैं व कहते थे  छत्तीसगढ़ी में " दहेज हमला हे परहेज " ऐसे उच्च कोटी के वाक्य व विचार सतनामी समाज को समृध्दशाली बनाने के पोषक रहे ! अगर दहेज की बात देने की करें तो माता-पिता अपने पुत्रि को स्नेह भेंट के रूप में " पचहर दाईज " देते थे व देते हैं ! जिसमें पीतल का हऊंला, गंज, बाल्टी तथा फुल कांछ का थारी और लोटा  जिन्हें धान से भर दिया जाता है इन्हें " पचहर दाईज " इस लिए कहा जाता है क्योंकि यह पांच प्रकार के घरेलु उपयोगी वस्तुएं होती हैं ,  सतनामी समाज में प्रचलित दहेज परम्परागत यही हैं !

२ वर्तमान परिदृश्य :-

वास्तव में दहेज लेने व देने की परम्परा सतनामी समाज का नही है ! कहते हैं न की कुछ कार्य ऐसे होते हैं जो अपना रौब दिखाने के लिए किया जाता है ! वर्तमान समय में " दहेज नामक अमरबेल एक खरपतवार " सतनामी समाज रूपी वृक्ष में लग चुका है ! आज समाज की दिशा शिक्षा व शहरी चमक धमक के कारण आधुनिकता की ओर बढ़ रही है ! जहां पर कुछ अमीर व कुछ गरीब लोगों को दहेज लेने देने की लत लग गई है ! समाज में ऐसे घातक खरपतवार को उगाने व उसे बढ़ाने का कार्य चल रहा है !

दहेज के अभिषाप व खर्चिली शादी से उबरने के उपाय सतनामी समाज द्वारा :-
१ घर पर ही कम खर्च में विवाह सम्पन्न करना !
२ जैतखाम में फेरा लेकर वरमाला में शादी सम्पन्न करना इस प्रकार का विवाह धार्मिक स्थलों में सम्पन्न होती है जैसे गिरौदपुरी धाम , लालपुर धाम , अमरटापु धाम , बोड़सरा धाम इत्यादि ! 
३ युवक-युवती परिचय सम्मेलन कर आदर्श विवाह का आयोजन करना , इस दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं :-
१ सतनामी समाज उत्थान एवं जागृति समिति व प्रगतिशील छत्तीसगढ़ सतनामी समाज संयुक्त रूप से आदर्श विवाह का आयोजन करते हुए लगभग १५ वर्ष हो गये !
२ लालपुर धाम आदर्श विवाह १० वर्ष हो गये ! 
३ गुरू वंदना केन्द्र भिलाई द्वारा आदर्श विवाह का आयोजन हो रहा है !
४ सतनाम युवा समिति बघमार ( लोरमी ) द्वारा ५ वर्ष हो गये आयोजन करते हुए !
५ तथा छत्तीसगढ़ शासन द्वारा सामुहिक आदर्श विवाह कराये जाते हैं जिसमें समाज के लोग भाग लेकर लाभ उठा रहे हैं ! 
६ कई लोग कानूनी रूप से कोर्ट में विवाह कर रहे हैं !

लेकिन चिंतनीय यह है की इन उपायों को अपनाने गरीब तबका के सतनामी लोग कदम बढ़ाये हैं पर वहीं जो साधन सम्पन्न सतनामी हैं वे इन उपायों पर अमल करने के लिए कतराते हैं !

समाज को दहेज मुक्त करने के लिए इन उपायों को सभी लोगों को सहर्ष अपनाना होगा तथा बढ़ावा देकर समाज में जागृति लानी होगी तभी हम दहेज जैसे अभिषाप से लड़ पायेंगे आज हमारे समाज की आर्थिक स्थिति बहूंत कमजोर है समाज के लोग जितना खर्च विवाह , छठ्ठी , मृत्युभोज, जन्म दिन की पार्टी इत्यादि में करते हैं इनसे बचते हुए इन्ही फिजूल के खर्चों का सग्रहण व संरक्षण कर इस धन का सदुपयोग हमें शिक्षा व व्यपार में करना होगा जिससे हमारे आर्थिक स्तर मजबूत होंगे !

साहेब-सतनाम

असकरन दास जोगी
  कार्यकारी सम्पादक
सतयुग संसार-पाक्षिक
मो.नं. 9770591174

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