मया के अघौना

मया के अघौना 
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आज मोला अईसे लागत हे , जईसे मैं अपन दाई-ददा बर लदना होगे हवं ! उमन मोला गुड़ म परे माँछी बरोबर निकाल के फेंक देबोन कईके सोंचत हवयं ! दुसर के दाई-ददा मन अपन लोग-लईका ल कतका मया करत होहीं ? अऊ मोर दाई-ददा मन मोला थोरकुन घलो मया नई करयं का ? मैं ऊंकर बर अतका बड़ भारी अघौना होगे हवं जेला तुरते मिटवाय बर अलग करे बर गुनत हें ! मैं इही गोठ ल संसो करत, रेंगत-रेंगत जावत रहेवं ! मोर आँखी डबडबागे रहिस, अईसे लागत रहिस जईसे मोर आँखी म अंधियारी छागे राहय ! चारो मुड़ा कुलुप अंधियार होगे, मोर सुध-बुध ह हजागे रहिस अऊ रेंगत-रेंगत एकठन पखरा म हपट घलो गयेवं ! येती माथ भर गोसईन के बोझा ऊहू म पांव गरू हावय अऊ रात-दिन के किलिल-कालल दाई-ददा अऊ गोसईन के झगरा अईसे लागय जईसे ये मया के अघौना हर नई सहावय ! कोनो मेर जाके महुरा खाके परान तियाग देतेवं ! फेर दाई-ददा ले अलग होके , मैं हर नई जिये सकवं ! आंसू म डबडब ले भरे आँखी रोनहू-रोनहू मुंह ह होय राहय ! ततके जुहर पाछू कुति ले आरो आईच , अरे बेटा सत्यागर येती आतो रे ! तहां आरो ल सुन के डबडबाये आँखी के आंसू ल पोछत पाछू कोती लहूट के देखेवं ! त दूरिहा चौरा म कम्मल ल ओड़हे फुलबासन कका दाई ह मोला आरो लगावत रहिस ! अईसे लागिस जईसे ओ हर मोर पिरा ल दुरिहे ल पहिचान डारिस ! मैं हर फुलबासन ककादाई मेर गयेवं, ओहर मोला पुछिच अतका का संसो करथच रे ? तोर उपर अभी ले काय चिंत्ता हमागे हे ? बने कमाते खाते अभ गली म अंटियावत रेंगते तेन ह ! त मैं हर अपन सब दुख ल फुलबासन ककादाई ल बतायेवं ! कईथे न अपन दुख ल कोनो ल बताबे त आधा बोझा हरू हो जाथे ! तहां ओहर कईथे , अभी कतको तोला बखानत होही तोर दाई-ददा ह रे ! फेर अपन दाई-ददा अऊ अपन मया ह अपनेच होथे ! अभी तैं कतको ठेनी कर ले , बाद म एकेच हो जाहव ! तैं अपन गोसईन ल कतको मया कर ओकर जेन गोठ ह परवार ल संघार के राखही तेनेच ल मान अऊ दूसर चारी-चुगली गोठ ल कभू झन मान ! दाई-ददा मन तोर , तोला कतका मया करथैं तैं नई जानच ! थोरकुन म गारी देहीं त थोरेच कुन म मया पलपला जाही !
थोरेच कुन के गुस्सा अऊ चिढ़ ह का नई का करवा देथे ! जिनगी ल येती ले ओती (छितिर-बितिर) कर देथे ! डारा-पाना सकेल-सकेल के एक ठन कुरिया बनाथैं जेमा मया-पिरा के बसेरा रईथे ! ओकरे ले घर दुवार ह बनथे , एक जगा कहूं दुठन थारी-लोटा ह रईगे त ठीनीन-ठानन तो होबे करही ! अईसन कईके फुलबासन ककादाई ह अपन दुख ल सुनाय लागीच....
मया के अघौना ह छाती म नई सहावय, अतका उम्मर घलो म आंसू ह लहू बरोबर बोहाय लागथे ! बेटा अतका बड़ उम्मर होगे, हमन अपन चुंद्दी ल घाम म नई पकोय हन ! दुनिया के रंग ल हमन पहिचानथन, अभी तो तैं हर लईका हवच ! जवान बेटा के मरे मुख ल देखे हवन, उही दिना छाती हर फाट गीच अऊ हम हर सबो ल कईथन के अपन-अपन घर म झगरा-ठेनी मत होय करव ! मोर एक ठन मया के कुरिया रहिस, आज तो मैं हर अकेल्ला चौंरा म बईठे हवं ! मोरो एक झन बेटा रहिस , ओकर नाव नंदू, ऊंच-पूर , दुहरी देहं के मोर तड़ंग जवान बेटा ! कोनोच बुता ल नई करन देत रहेन , एक ठन साध के बेटा ये कईके सबे तीरा हसी - मजाक करत राहय ! फेर कतेक दिन ले ओला रपोटो-रपोटो करके खवातेन ! उहू ल तो अपन जिनगी म कुछू काम-बुता सिखे बर रहिस ! हमर घर डोकरा हर ओला कुछुच नई काहत रहिस, फेर का करतेवं छाती म पथरा लदक के मया ल मारके मही ह खिसयावंवं ! होवत बिहनिया खटिया ल उठ के रांध गढ़ के मुह धोके चार काठा के बनी करे बर निकल जावत रहेन हम डोकरी-डोकरा ! ओ जवान संझा के बेरा मुंधियार के खायेच के बेरा म ठुक ले पहुंचतिच, काहीं अढ़वा ल नई करय त मोर जीव खिसयागे त एक दिन कहेवं ! मुंह ल टेंढ़-टेंढ़ के चोंच के बुड़त ले खा लेथस अऊ गली डाहर रेंग देथस ! दिन ह बुड़ जाथे त दाई ददा अऊ घर के चेत ह आथे ? नहीता दिन भर छलानी मारत फिरत रईथस ! अतका घलो हमर जीव ल झन कर्लवाय कर रे ? हमन मर जाबो न त तोला हाय जीव लागही ! आज तैं हर एक ठन आड़ीक-काड़ी नई करच खेत जाय ल कईबे त नई जावच ! तोर बिहाव ल होवन दे , कहूं ओ दिना रपोटो-रपोटो करके कमाबे न त थोथना ल नई देहवं ? कतेक दिन ल कमा-कमा के तोरेच भोभस म भरत रईबोन ? आँखी कान ह मुंधियार होथे तहां ले दिखय नही ! हाथ गोड़ ल भुंज-भुंज के तोला कतेक बछर ल खवात रईबोन ? बर-बिहाव ल कर लेतेच त दू-चार अढ़वा के थेघा हो जातिच ! नवा बहू आतिच घर ह सुन्ना हावय अंधियार तेन ह अंजोर हो जातिच ! अईसन काहत साठ हमर सास ह कईथे बेटा नंदू बहू हर  सच तो काहत हावय रे , मोरो जियत  म पिंयर भात खवा देते त महूं ह मंग्गन होके परलोक सिधार लेतेवं ,मरे म कहूं बर-बिहाव ल करबे त काय जानहूं रे ? अभी ताय बिहाव नई करवं कईथच राहजा रे गोसईन ल आवन दे रात दिन गोसईन के अचरा म छंदाय रईबे ! अभी गली म छलानी मारत फिरत रईथच, गोसईन के आय के बाद जतका फुटुर-फुटुर मारथच सबो ह सटक जाही ! मर जाहूं त सुरता करबे मोर डोकरी दाई ह सहीं काहय कईके ! अतका गोठ ल टुरा ह सुन के किटकिट-किटकिट करत रहिस, अब ओकर ददा ह कईथे सहीच तो काहत हावय बेटा बिहाव ल कर लेते त हमूं मन चिंत्ता ल टार के गंगा नहा लेतेन ! अब तीनो झन के गोठ ल सुन के नंदू हर जईसे-तईसे बिहाव करे बर मानगे ! 
दू-चार गांव ल घुमेन सगा भितर सगा मिलगे नंदू ल टुरी ह भागे ! जगा-जगा के सगा सईनी ल खोज-खोज के नेवता देन , बाजा-गाजा के संग म बर-बिहाव ल करेन ! सगा-सईनी के भिंड़ खैमों-खैमों करत राहय , गांव म देखनऊट बिहाव होईस चारो मुड़ा सोर उड़िच बिहाव के ! बिहाव होगे घर म  बहू आगे , सगा-सईनी झरगे बहू ल घर के भार-भरोसा सऊंप देन हमरो एक ठन बोझा हरू होगे ! अब घर के काम बुता ओकरे होगे , ओकर भरोसा म घर ल छोड़ के निकल जावन रांध-गढ़ देतिच अऊ दिन भर घर म देहं ल डारे सोय रईतिच ! बेटा हावय तेनो एकोठन कहना नई मानय , काम बुता म हाथ नई बटावत रहिस ! टुरा के बिहाव हर कतका दिन बितगे फेर नवा नेवाधा बहू के रंधना-गढ़ना ल छोड़ काहीं सुख ल नई भोगेन , दिन-रात हटर-हटर करके अपनेच जांगर ल टोरन ! घड़ी के कांटा हर सुरूज नरायन ल छू डारतीच त सोके उठतीन, असनांदत-असनांदत अईसन बेरा ल बोरतीन जईसे आठ पुरूत के मईल छबाय राहय ! फेर इसनो, पाऊडर ल अईसन लगातिच के चंदा बरोबर बरे ल धर लेतिच तईसे ! छानी म चढ़ के होरा भुंजय बेटा सत्यागर, घर के दुआरी म खड़ा होके बोईर झुड़ा कस परेतिन चुंद्दी-मुंड़ी ल छरियाके चोबिस घंट्टा पाटी पारत रईतिच ! कभू दुआरी म त कभू खिड़की म जाके मुटूर-मुटूर करत रईतिच, गली-खोर के टुरा मन बहूं के मटर-मटर करई म ओला निटोर-निटोर के देखयं ! कभू आभा मारतीन त कभू ददरिया गातीन तभो ले बहू ल थोरको नई लागतीच ! काहीं कुछू कई देते त मुंह ल घुघवा कस फुला लेवय, बहू ल बरजते त बेटा ह कईतिच मोर गोसईन ल झगड़ा-ठेनी करत रईथौ कईके बखान डारय ! नंदू ल कईते त एकोठन गोठ ल नई पतियातिच उल्टा हमीं मन ल चिल्लातिच , अईसन होवत होवत कतको दिन ह बितगे ! 
दिन बिते नई पावय मईके अवई अऊ जवई बहुरिया ल बुता तियारते तेनो ह नई हो पावय उपर म कईतिच मोर फलाना ह पिरावत हे , मोर ढ़काना दईसे लागत हे अईसने कई कई के खटिया म लाद दे घोंड्डे राहय ! चल तो अंगना ह रनन-भनन परे हे त एक मुठा बाहरी ल बहार देथवं घलो नई काहय अऊ मईके महूंचे ल कऊखने बलबाय आ जातीच , मईके म छिहिन-छिहिन कमातिच-धमातिच , गोटकाहरिन बड़ चमकूलिया ! आज जतका झन के येकर संघराती बिहाव होय रहिस तेतका झन के लोग-लईका होगे रहिस ! येला रात-दिन सीसी-बोदल खवा-पिया के घलो कोनो फायदा नही ! काय करबे बेटा सत्यागर मया के अघौना ल आज सुरता करबे त छाती ह फाट जाथे अऊ संतोस करे के सिवाय काहीं नई कर सकच ! टुरा ह निमगा बहुरिया के रस म होगे रहिस ओकर कहे एकोठन अढ़वा ह खाली नई जातिच , दाई-ददा कईतिच तेन होवय चाही झन होवय ! 
टुरा के ददा ह बहू ल बरजिच अऊ घर दुआर ल सुघर चलावव , हमर मरे के बाद हमन लेके नई जावन सब तुंहरे आय अईसन समझाईस अतका ल चुपचाप सुन लिस बहू ह ! जब संझा नंदू हर घर आईस त तोर ददा ह हमला खिसयात रहिस कईके लिगरी लगा दिस ! टुरा काहीं नई कहिस फेर बहू ह अलग खाबो कईके रटन धर लिस ! अलग खाय के गोठ ह डोकरा के कान म पहूंच गे , टुरा ल बलाके बरजिच त टुरा कईथे मोर गोसईन ल खिसयावत रईथव गाली-गल्ला देवत रईथव काबर अकेल्ला नई खावंव बतावव भला ! अतका गोठ ल सुनके डोकरा ताव म आगे टुरा ल चार-चटक मारिस अऊ कहिस काम बुता करच नही अऊ अलग खाय के बात करथस जा अलग खाले बेटा चार दिन म नुन-तेल के भाव हर पता चल जाही ! अतका म टुरा हर तमतमाय घर भितर घुसर गे ! ओतके जुहर रात ले एक हपता अलग खाई अऊ कुरूर-कारर करत अपन गोसईन संग ससुरार चल दिन ! तहां हमन अतका बड़ घर म डोकरी-डोकरा अऊ हमर सास तीन झन राहन इही बीच म हमर सास ह बितगे ! माटी-काठी म आईस , जग-पानी म रहिस इंहें रहे ल कहेन त जुन्ना गोठ ल कईके तमतमाय फेर ससुरार चल दिस ! अब अंधरा के लाठी ह टुटगे त काकर लंग गोहरावय तईसे होगे , उही दिना ये छाती म मया के अघौना हर कुंदकुंदाय लागीच ! काय करबे सत्यागर बेटा ददा-दाई अन मया ल नई मार सकन, कई घला ओला लाय बर गयेन फेर नई आईच बतलगहा ह ! तहां ले निराठ थक-हार के आना जाना ल छोड़ देन , कलपत रहिगेन बेटा ! बेटा-बहू मन हमर एकोठन गोठ ल नई सुनिन , बछर घलो ह नई बितिच, एक दिन बिहनहे कोठा के गोबर ल निकाल के अंगना म बईठे रहेवं ओकर ददा ह मचोली ल अचवानत रहिस त ओकर ससुरार ल एक झन संदेसिया आईच ! पानी-उनी देन , खटिया म बठारेन , भात खाले कहेन , फेर नई खाईस , आँखी कान लाल-लाल लागय कुछू कहेच बर आय हे फेर कहे नई सकत हे ! डोकरा कईथे का बात होगे बाबू बता न ग , काय संदेस लेके आय हस सुनाबे तब तो जानबो ग ! अतका कहाई म लटपट म ओ संदेसिया के बक हर फुटिस रोनहू रोनहू होके , होकर हाव भाव ल देख के हमरो जीव ह धुकुर-पुकुर करत रहिस मन म बात हर आगे रहिस काहीं तो अनहोनी होय जरूर हे ! संदेसिया कईथे तुंहर मन के बेटा नंदू हर बितगे , अतका सुनके हमर डोकरी डोकरा के कान नाक बोजागे , चारो मुंड़ा अंधियारी छागे लटपट म आँखी डाहर ले आंसू आईच दोनो के रोवा गाही म पारा बसती जुरियागे ! सब पुछैं का होगे , का होगे , संदेसिया हर सबला बताईस ! अब छाती म पथरा लदक के डोकरी डोकरा दुनो झन ओ संदेसिया के संघरा गयेन, करम के लेखा ल कोन टारे सकही बेटा ? गरीब ल दु असाढ़ ! ऊहां पहूंच के पुछेन-गऊछेन त बताईन सांप चाब दे हे , लहू के आंसू रोवत-रोवत जवान बेटा के माटी-काठी करेन ! मोर बेटा ल मैं हर भले खिसयावंव मोर बेटा हर मोर बर सरवन कस रहिच , ओकर संसो म डोकरा हर खाय पिये ल तियाग दिस कुछ दिन म मोर डोकरा घलो ह ये बिरान दुनिया म मोला अकेल्ला छोड़के चल दिस ! 
अतका कहीके फुलबासन ककादाई के आँखी हर डबडबागे अऊ आंसू ह भुईंयां म टप-टप गिरे लागीस ! देखते-देखत म चिहुर पार के एक-एक बिते बात ल पढ़-पढ़ के रोय लागिस, मोला अईसे लागिच जईसे गोड़ तरी ले भुईंया बोजागे ! मैं ओला चुप कारय लागेवं त धीरे-धीरे चुप होईस, फुलबासन ककादाई ह मोला कईथे, दाई-ददा ह कतको बखानय-खिसयावय बुरा झन माने कर ! तोला मया करथे तेकरे सेतिर तो कईथे,बरजथे ! अलग खाय के बिचार तव मन म कभू झन लानबे, तोर दाई-ददा घलो ह अलग खाय बर कईही तभो झन खाबे ! बेटा सत्यागर एक ठन गोठ गांठ बांध के धर ले सत के रस्ता म चलबे त जिनगी उछल्ल मंग्गन बितही थोरको डिगे त दुख के बड़ोरा कब आही गम नई लागय ! थोर बहूंत बात म गुस्से-गुस्सा म दाई-ददा ले अलग होके खाय ल धर लेबे , कुछ दिन म ससुरार भाग जाबे नई पटही त ! फेर ओकर बाद तोर दाई-ददा ह का करही ? काकर भरोसा म जिहीं ?  मया के अघौना ल छाती म लगाके खुन के आंसू दू टिपका रोज रोहीं ! 
फुलबासन ककादाई के अतका गोठ ल सुन के ओला बचन देवं के मैं ह  न तो ससुरार भागवं रहे बर न तो अलग खावं ! दाई-ददा ले अलग होके मोर जिनगी के कोनो मेर थिरबाहं नई रईही ! दाई-ददा के चरन म सरग बिराजे हे ओकरे सेवा म चोला तरही ! अब मैं परन करेवं के मोर गोसईन अऊ मोर दाई-ददा के बीच म होय बात चीत के हल निकाल दुनो-तिनो झन ल समझा बुझाके अपन अंगना म मया के बसेरा बनाहूं मया के अघौना नई होवन दवं !

फेर आज काल नवा जमाना हे एक घर नही सबो घर के उही हाल हे , आज तैं मोर ल हांसत हस त काल तोर ल मैं हासत हवं ! नवा जमाना के नवा नेवाधा बहू मन ल अऊ ऊंकर मन के बात ल सास-ससुर ल समझे ल परही , फेर बहू मन के घलो धरम बनथे के अपन नवा परवार के मान-मरजाद, नियम-धियम ल सहेज के मया पिरा ल बांट के चलयं !

मैं आज अपन घर म अपन गोसईन अऊ दाई-ददा के बिच म सुलह कराके मया के बंधना बांध के जिनगी ल मंग्गन जियत हवं अब ऊंकर बारी हे जिंकर घर म सास-बहू, बाप-बेटा के झगरा ठेनी हे ! सब झगरा ल टार के मया पिरा ल बांट के जिनगी जियव संग्गी हो हमर छत्तीसगढ़ के संघरा परवार परमपरा ल बचावव अऊ घर ल घर म अलग-थलग झन बांटव !

जय छत्तीसगढ़
लेखक : असकरन दास जोगी
ग्राम : डोंड़की ( बिल्हा )

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