डाक्टर बिलवा महराज के बेटा पीच दारू

*डाक्टर बिलवा महराज के बेटा पीच दारू*

आज गाँव म स्वच्छता अभियान बर रैली निकले हे,मेडम-गुरु जी मन आगू-पाछू रेंगत हेें ! स्कूल के जतका लइका हें सब लाईन लगाय ओरी-ओर रेंगत हवैं अउ नारा लगात हें ! *स्वच्छता लाना हे.. गाँव बचाना हे* , *बोलव दीदी बोलव भईया हर-हर...शौंचालय बनवाबो घर-घर* नारा ल चिल्लावत रैली ह जावत हे ! भक्कल अपन दुकान म बइठे-बइठे देखत हे संग म वोकर  गोसइन चुनिया घलो हे भक्कल चुनिया ल कइथे ए गाँव के कुछ नइ हो सकै, चुनिया कइथे सहीं काहत हवच ! भक्कल खुर्सी ले उठथे दुकान के कोंट्टा म परे *कचरा पेटी-टीपा* ल उठाथे अउ हमला का करे ल हे *जेकर शासन तेकर भाषन* कहत टीपा के कचरा ल दुकान के आगू के डीपरा म फेंक देथे ! ओही मेरा गाँव के संड़हवा अउ गाय मन बइठे रइथे भक्कल ल कचरा फेंकत देख के गरुआ मन आके कुछु खाय के फेंके होही कइके छुछनथें कुछु नइ मिलै त कागज-पाथर अउ झिल्ली ल चगुलाय ल धर लेथें!  भक्कल हर्रे कहत दुकान डाहर आके अपन गोसइन चुनिया ल कइथे सुन तो आज बिलासपुर जाहँव दुकान ल सम्भालबे ! चुनिया कइथे ठीक हवै जी! अब भक्कल ओ मेर ल चल देथे, *थोकन बाद नहा-खोर के भक्कल दुकान म ओलिहाथे अउ आगरबत्ती ल जलाथे दुकान के दरवाजा के तीर कोंट्टा म एक झन  बड़े नाक वाले मनखे दाँत ल निपोरे हे अइसन फोटो भिथिया म चिपके हे* ! भक्कल बड़ा भाव-भजन से ओकर आरती देखावत हे,  चुनिया कइथे ये काय जीयत-जागत मनखे के फोटो ल निच्चट आगरबत्ती जलाके पूजा करथच ग ? *भक्कल कइथे हत रे लेड़ही मोर नाव हे भक्कल...  फेर तोर थोरको नइहे अक्कल* चुनिया खखुआ के कइथे टेड़गा-टेड़गा झन गोठियाय कर जी सोज-बाय बात ल कहे कर ! *भक्कल कइथे अच्छा ले त सुन बात अइसे हे ए हर आय दारू वाले बाबा जब तक एकर हे शासन तब तक हमर जइसन के चलही राशन* त काबर एकर पूजा नइ करबो ! चुनिया कइथे अच्छा ले ठीक हे त,  भक्कल ले अब दुकान ल सम्भालबे मैं *ब्लैक म दारु लेहे के बात करे हवं लेहे बर जाना हे* ! 

चुनिया भक्कल ल कइथे सुन तो जी तैं हर तो जावत हच फेर कोनो उधारी माँगही त कइसे करहँव ! 

भक्कल दिमाग ल चाँट झन, पहिचान के मनखे रइही त दे देबे नइ रइही त झन देबे! चुनिया ले ठीक हे बने बात कहे कहूँ कोनो अनचिनहार ल उधारी दे देतेवं बाद म पूछते त खिसयाते तेकर सेती पूछे हँव !  भक्कल ले बने करे कइके भात-उत खाके बिलासपुर निकल जाथे!

बारा बज गे हे दुकान म चुनिया बइठे हे पंखा चालू, डेक चलत हे पंखा के ठंढ़ा हवा संग डेक म गाना चलत हे *पुरवा छुही तन तोर.. रोम-रोम घुरघुरा जाही ! अइसन आहूँ सुरता तोला...ऐंड़ी तरवा तोर तुरतुरा जाही !!* चुनिया भक्कल ल सुरता करत हाँसत लजावत बइठे हे ! एतीबर चार झन टूरा दुकान के दुवार म आके खड़ा होइन ! चारो झन खुसुर-फुसुर एक-दूसर ल कइथें दुकानदारीन भारी रोमांटिक गाना सुनत हे देख के भाई हो कइके हाँसे ल धर लेथैं! अतका म चुनिया खड़ा होके कइथे दाँत ल निपोरव झन का लेना हे बतावव ! चारो टूरा चुनिया के गोठ ल सुन के सोजबाय खड़ा होके कइथैं दारू लेना हे मिल जही का ?  चुनिया हव मिल जाही ! चारो टूरा म से एकझन कथे हमर सो पइसा नइहे उधारी म दे देते भौजी बाद म आके पइसा दे देहूँ! चुनिया बात तो ठीक हे फेर मैं तुमन ल चिनहत नइहवं देवँव कइसे?  *एकझन टूरा कइथे तहूँ हद करथच भौजी मोला नइ चिनहच मैं ओ डाक्टर बिलवा महराज के बेटा ताँव ओही जेन डाक्टर हे गाँव-गाँव घूम के सुजी-पानी देथे !* चुनिया अच्छा डाक्टर बिलवा महराज के बेटा आच ग ओहो मैं नइ चिनहे रहेवं ग! *डाक्टर कका ह आथे ग हमरो घर लरे-परे म मलहा-पीतहा म बड़ काम आथे*, ले ठीक हे दारू मिल जही, कैठन लेहव बतावव ! *टूरा मन कइथे चार ठन पउवा दे देते संग म चखना बर मुंगदार, मिच्चर,गोंदली,पीये बर चार ठन डिस्पोजल अउ चार ठन पानी पाउच* चुनिया निकाल के सब समान दे देथे !

चारो झन दुकान के पिछोत कोंट्टा म जाके पीथै-खाथैं अब झुमरत-झामरत जाय बर रेंगथैं!  *चुनिया डाक्टर बिलवा महराज के बेटा ल कइथे गुड्डू पइसा ल कब देहे बर आबे!* टूरा कइथे काल आके खचीत दे देहँव तैं हर चिंत्ता झन कर, चुनिया कइथे ले ठीक हे काली आके दे देबे धीरे-बाँधे घर जाहव गुड्डू  ! हव काहत चारो झन चले जाथैं ,दुकान म अउ दूसर ग्राहक आय ल धर लेथैं चुनिया समान देहे ल धर लेथे !

*देखते देखत अब बेरा खसलिस अउ सांझ होगे* भक्कल के आय के बेरा होगे रहिस! चुनिया दुकान के दुवारी म खड़े भक्कल के रस्ता जोहत हे, ओती बर *भक्कल समान-सटका लादे मोटर-साईकल म दबाय गाड़ी आवत हे!* चुनिया दूरिहे ल देख के खुश होगे, भक्कल दुकान मेर पहुंच के समान-सटका ल उतारे बर कहिस दोनो मिलके समान ल उतारत हें! 

*दुकान ले लगे चबुतरा म गांव के टूरा मन तास खेलत हें* दुनो झन ल समान उतारत देख तास खेलइया मन काहत हे, ए चुनिया भौजी देख के समान ल उतारबे गिरा झन देबे नुकसान हो जाही अउ हाँसथें! *चुनिया हाँसत कइथे  मैं देख के उतारत हँव जी तुमन तो देख के घलो घर के बोझा ल उठा नइ सकव एमेर आके तास खेलत हव देखव घर के बोझा ल दूसर थोरे उठावत हे!* भक्कल खलखला के हाँस डारथे, तास खेलइया मन के बोलती बंद हो जाथे! *भक्कल कइथे का चुनिया बोली ले तीर चलाथच तभे तो मोर हिरदे ल भाथच*,चुनिया तहूँ ह चल हट कइके समान ल धर के दुकान  म घुसर जथे!  भक्कल घलो समान अउ मोटर-साईकल ल घर म नहकाथे !

*रात होगे भक्कल अउ चुनिया भात खावत टीबी देखत हें टीबी म सुपर-टेन खबर आवत हे चुनिया अउ भक्कल के कौंरा मुँह म नइ जावत हे मुँह ल फारे आँखी निटोराय टीबीच म नजर गड़े हवै :-*

*1.हॉस्पीटल म गैस के कमी ले लइका मन के गै जान !*

*2.आदिवासी जमीन अधिग्रहण करही सरकार !*

*3.दस नक्शली मार गिराईच पुलिस !*

*4.रायपुर के मंझोत म नाबालिक संग गैंग रेप !*

*5.छत्तीसगढ़ म पढ़ाय जाही ओड़िया भाषा !*

*6.सरकार बेंचिच दारू राजकोष छलके ल धरलिच !*

*7.बेरोजगारी बड़ बाय युवा झपावत हें अब बेंचहीं भजिया !*

*8.प्रदेश म बाढ़गे शिक्षित मन के प्रतिशत ,शिक्षक मन के नइ होवत हे संविलियन !*

*9.किसान आगे अंकाल के चपेट म !*

*10.प्रदेश म योग्य व्यक्ति के कमी दूसर प्रदेश ल लाय जाही कर्मचारी !*

चुनिया कइथे तहूँ ह ग काय कचर -पचर न्यूज ल देखथच चल *तारक मेहता के उल्टा चश्मा* म लगा, भक्कल कइथे भात ल तो खा चुनिया दिमाग ल झन खा ! चुनिया कइथे भातेच ल खावत हँव दिमाग ल तो तैं खावत हच दे रिमोट लगा नाटक म, भक्कल ले भइ लगा ले एले रिमोट, चुनिया न्यूज चैनल बदल के नाटक म लगा देथे ! 

दूनो भात खा डरथें टीबी देखत-देखत धो मांज के चुनिया अब खटिया म आथे अब बेरा रइथे दुकान के हिसाब पूछे के !

भक्कल कइथे चल चुनिया आज कतेक झन ल बेंचे कतेक के समान बेंचाईस बता? चुनिया आज जतका समान बेंचाईस ततका के हिसाब देइस, अउ उधारी कोन-कोन लीन तेकर हिसाब देइस ! चुनिया बोलथे एकझन अउ उधारी लिस हवै, भक्कल कहिस कोने?  चुनिया कहिस डाक्टर बिलवा महराज के  बेटा ह चार ठन पउवा संग म अउ आने समान मिलाके चार सौ अस्सी रुपिया के समान बिसाईच हे संग म ओकर तीन झन संगी रहिस !

भक्कल कइथे चुनिया डाक्टर बिलवा महराज के बेटा ल चिन्हे हच ओ,  चुनिया हव ग चिन्हे हँव काल आके पइसा दे देहूँ कहिस हे  ! भक्कल ले ठीक हे त भइ चल सो जा आराम कर अइसन कहत दूनों सो जाथैं!

बिहनहा होगे चुनिया अउ भक्कल  उठथैं चुनिया घर के रोज के काम बुता ल करे ल धर लेथे अउ भक्कल दुकान म बइठे! आज बात कहत बेरा खसल गे संझा जुहर भक्कल चुनिया ल बलाके कइथे चुनिया डाक्टर बिलवा महराज के बेटा तो नइ आइस वो... चुनिया ले न आज नइ आइस त काल आ जाही कहां जाही नइ आही त डाक्टर सो ले लेबो, भक्कल ले बने कहत हवच! 

अब अइसे-तइसे ओकर रस्ता देखत चार-पाँच दिन बितगे! 

*भक्कल चुनिया ल फेर कइथे मैं तोला बरजे रहेवं अनचिनहार ल उधार झन देबे कइके तैं नइ माने, उधारी ले के जुहर मनखे गरुवा बरोबर मुड़ी नवा के मांग के ले जाथैं अउ पइसा दे के बात आथे त भगवान बन जाथैं कहाँ गायब होथैं पता नइ चलै* ! चुनिया ले न जी दे देही बिलवा महराज के बेटा ताय, *भक्कल का दे देही चार-पाँच दिन होगे दे बर नइ आय हे अउ ए  झोला-छाप डाक्टर घलो ह गवँई बुले नइ आय हे* ! चुनिया ले त आज तैं वोकर गाँव जा पइसा माँग के ले आबे,भक्कल अब अइसने तो करे ल परही जा तो पंछा ल लान जाहवं!  चुनिया पंछा ल लान के देथे भक्कल डाक्टर बिलवा महराज के गाँव जाय बर मोटर-सायकल म निकल जाथे! 

भक्कल गाँव म पहुँचथे रस्ता म लुटवा ल भेंट डरथे लुटवा ल कइथे लुटवा भाई  बिलवा महराज डाक्टर के घर कोन मेर हे, वो ह बताथे अभी महराज ह घर म नइ होही चउँक म जा पंचइत चलत हे तेन मेरा होही ! भक्कल अच्छा का के पंचइत चलत हे ग? *लुटवा अरे का बताबे ग ए गाँव म अंध्धेर होगे हे परिया भुँईया ल छेंके हें बेजा कब्जा अउ बाँटे बर दू झन  के बीच म झगरा चलत हे तेकर नियाव करे बर पंचइत जुरे हे!*

अच्छा ले ठीक हे! लुटवा ह पूछथे तैं काबर आय हवच ग बिलवा महराज सो? भक्कल ले छोड़ न ग,लुटवा मोर करा पूछ लिए अउ तैं नइ बतावत हच गजब हस! भक्कल का बतावं ग मैं ह *चार पांच दिन पहिली बिलासपुर गे रहेवं अउ मोर गोसइन ह बिलवा महराज के बेटा ल उधारी म दारू दे दिस अउ वो ह पइसा दे बर आयेच नइहे!* लुटवा का बात करथच भक्कल बिलवा महराज के बेटा मन दारू नइ पियैं ग, भक्कल अरे भाई पीसे ग वोकरे सेतिर आय हँव ! लुटवा ले ठीक हे जा, भक्कल ओकर घर म ही जाथँव अगोरहँव पंचइत मेर का जाहँव ग अइसे कइके चल देथे!  लुटवा मेर ल होवत बात ह पुरा गाँव अउ पंचइत तक पहुंच गे *डाक्टर बिलवा महराज के बेटा पीच दारू* कोनो भरोसेच नइ करत राहैं! कोन कहिस त पड़ोस के गाँव ले दारू बेंचइया भक्कल आय हे वोही ह बताइस हे अउ डाक्टर के घर म गइस हे! 

*अतका गोठ ल सुनके डाक्टर बिलवा महराज पंचइत के बेजा कब्जा वाले नियाव ल छोड़ के अपन घर कती गइस, ओकर संग म पंचइत के जम्मे मनखे गइन!*

भक्कल गली के चौंरा म बइठे राहै बिलवा महराज के गोसइन सो गोठियात राहै ! एती बिलवा महराज पहुंच घलिस, भक्कल कइथे जोहार महराज बिलवा महराज जय जोहार ग फेर मोला अउ मोर लइका ल पूरा गाँव म निमस करवाथच तैं! *भक्कल का बताँव महराज चार-पाँच दिन ले ऊपर होगे तोर बेटा उधारी म दारु पीके आय हे अउ पइसा दे बर गे नइहे*! बिलवा महराज मोर बेटा मन दारू पीबे नइ करैं तैं कइसे काहत हवच मोर समझ ले बाहिर हे, बिलवा महराज संग पूरा गाँव वाले मन कहे ल धर लेथे महराज सहीं काहत हे कइके! 

भक्कल कइथे अपन बेटा ल बलाके पूछ ले ग ! बिलवा महराज कइथे का नाव बताये हे, भक्कल नाव तो नइ जानव ग फेर डाक्टर बिलवा महराज के बेटा आँव कहे हे!  बिलवा महराज गुस्सा जाथे, गाँव भर के मन चकित हो जाथें ! बिलवा महराज अपन गोसईन ल कइथे बलातो वो टूरा मन ल, महराजिन घर के भीतर जाके डलवा , ठेंगू आतो रे तुंहर ददा बलावत हे!  दूनो झन निकलथैं का होगे दाई?, महराजिन का होगे दाई कइथव अाज कल दारू पिये ल धर ले हव चलव गली म बुलावत हे तुंहर ददा ह कइके चेथियावत गली डाहर निकालत हे! *अतका म डलवा अउ ठेंगू सुकुडदूम, सकपकागैं ,सोंचत हें हमन तो अइसन कुछु करे नइहन होवत का हे?*  महराजिन, डलवा ,ठेंगू बाहिर आगे का होगे बाबू कइथैं?  बिलवा महराज का होगे कइथव कइसे भक्कल के दुकान ल दारू पीके आय हव! 

*डलवा, ठेंगू सकपकाय!* दाई किरिया बाबू हमन नइ पीये हन! भक्कल काबर लबारी मारथव ग बता देवव न! *डलवा, ठेंगू हमन पीबेच नइ करन त काबर लबारी मारबो,* बिलवा महराज डलवा अउ ठेंगू ल थपरियाय बर करथे त  *डलवा अउ ठेंगू गाल ल छपकत कइथे झन मार बाबू गुटखा भले खाथन दारू नइ पीयन ग!* महराज के माथा चढ़गे गुटखा घलो खाथव चटा-चट देथे,  गाँव के मन हाँस डारथैं !डलवा, ठेंगू कइथे दाई किरिया ग बाबू हमन दारू नई पीये हन ! 

बिलवा महराज कइथे अब बता भक्कल एमन तो पीयेच नइहन काहत हें ! *गाँव के भींड़ म खुसुर-फुसुर चलत हे सरपंच साहब तको खड़े हे पाछु ल एकझन ह सरपंच ल धीरलगहा काहत हे साहब मोर पेंशन ह पाँच महिना होगे नइ मिले हे देवा देते ,सरपंच चुपव न ग बाद म बात करबो ! फेर एकझन पाछु ले धीरलगहा काहत हे कान मेर सरपंच साहब आवास ल पास करे बर दस हजार ले हवच ग एकात किस्त तो पास करवा दे, सरपंच चूप तो रइ यार इहां बिलवा महराज के बेटा मन दारू पीये हें कइके आरोप लगे हे ये समस्या ल तोर समस्या बड़े हे का तोर काम हो जही भगवान, ले बाद म अकेल्ला म बात करबो!* पेंशन अउ आवास के समस्या वाले मन चूप हो जाथें! 

एती भक्कल कइथे महराज तोरेच बेटा पीके आय हे ग मोर पइसा देवा नहीते दे ! *बिलवा महराज मोर लइका मन तो दारू नइ पीये हन काहत हे तैं अइसे कर अपन गोसइन ल लान वो ह काला दारू दे हे चिनही अउ असली फुराजमोंगी ल करही!* महराज के बात ल सुन के सरपंच अउ सब गाँव वाले मन तको कहे ल धर लेथैं हव भक्कल भाई तैं अपन गोसईन ल लानबे तभे अब फुराजमोंगी हो पाही ! भक्कल सब ल निवेदन करथे इहीच मेरे रइहव मैं जाहँव अउ आहँव कइके अपन मोटर-सायकल ल धरथे अउ जाथे, सब कइथैं इही मेर रहिबो! 

भक्कल के आवत ले एती भींड़ म बात चलत हे लइका मन तो गुटखा भले खाथन दारू नइ पीयन काहत हे ये भक्कल जबरन बदनाम करत हे अइसन गोठ चलत!  सरपंच खड़े-खड़े बिलवा महराज ल धीर धरावत हे ले न आवन दे फुराजमोंगी हो जही कहत हे!  *भींड़ ले एक झन मनखे धीरे-धीरे कगरियावत सरपंच डाहर जावत हे सरपंच के तीर म आके कइथे सरपंच साहब मोर डौकी-लइका सबके नाव राशन कार्ड म हे ग का बात ए ते मोर नाव नइ जुड़े हे जोड़वा देते मालिक !* सरपंच तुमन यार हद कर देव सच म इहां बेजा कब्जा के जमीन के नियाव होय नइहे अभी ए दे बिलवा महराज के बेटा मन ऊपर दारू पीये के आरोप लग गे, अउ तुमन नान-नान बात ल अभी करथव बाद म करहव न ले घर म आहव फेर *ओहू चूप हो जाथे!*

देखते देखत एती भक्कल अपन गोसईन चुनिया ल धर के आगे !

गाड़ी ले उतरथें *भक्कल, बिलवा महराज, सरपंच अउ सब कइथें ले चीन चुनिया काला दारू दे रहे उधारी म!  डलवा अउ ठेंगू ल आगु म बलाथे, चुनिया देखथे अउ कइथे एमन ल तो दारू नइ देहँव !*  बिलवा महराज, महराजिन, सरपंच, गाँव वाले सब  खुश हो जाथें!  भक्कल कउवा जाथे, चुनिया ल कइथे एमन ल नइ देहच त काला देहच?  सब पूछथैं काला देहच?  चुनिया कइथे मैं तो दारू बिलवा महराज के बेटेच ल देहँव अउ ले के जुहर ओही ह कहिस हे मैं डाक्टर बिलवा महराज के बेटा आँव कइके ! ए ह नोहै , महराज के अउ बेटा होही तेला बलावव !

सब हसथें अउ कइथें चुनिया महराज के दूझन बेटा हे तीसर नइहे! *महराज कइथे भक्कल ले भाई फुराजमोंगी होगे दूध पानी सफा सफा* ले अब तैं जा! भक्कल महराज फेर चुनिया काला दारू देइस समझ नइ आवत हे,  भक्कल गुस्सा जाथे गुस्सा म सबके बीच म चुनिया ल काला उधारी देहच कइके भीठ म बद-बद मार देथे!  सब छोड़ाथैं अउ ले जावव कइथैं!  भक्कल गाड़ी ल चालू करथे चल बइठ तोला घर म अउ बताहूँ कइथे, चुनिया रोवत मोटर-सायकल म बइठत रइथे ! *अचानक चुनिया के नजर एकझन ऊपर परथे आगू डाहर ले एकझन मनखे आवत हे सायकल म बोरी लादे हे गाना गावत आवत हे ! चुनिया भक्कल ल कइथे देख तो जी देख तो दोही हर आय बिलवा महराज के बेटा आँव कइके दारू पीच हे , जा पकड़व वोला* !  भक्कल गाड़ी बंद करके खड़ा करके दउँड़थे पकड़े बर, गाँव के मन सब देखथें कइथे अरे ए तो लेढ़वा हरे!  भक्कल लेढ़वा ल सायकल सुध्धा  बिलवा महराज के दुवारी म लाथे, भक्कल कइथे कइसे बिलवा महराज के बेटा आँव कइके दारु पीये हच पइसा कइसे नइ देहच?  लेढ़वा चूप हे!  *चुनिया तैं तो मिलगेच तोर कारन हम मार गारी खावत हन, महराज बपुरा के घर म आके इहां पंचइत जोरत हन चल पइसा दे !* बिलवा महराज कइथे कइसे बे लेढ़वा तैं मोरे बेटा आच बे मोर नाव ले के दारू पीथच अउ मोर बेटा मन ल अउ मोला बदनाम करथच! *अतका म लेढ़वा सकपकाय हुंकत हे न भूंकत हे मुड़ी ल गड़ियाय चूप खड़े हे!*  चार पाँच झन मिलके लेढ़वा ल दमादम मार देथें,  *एक दूझन मन काहत हें महराजिन एग्रीमेंट कराले बाढ़े-पोढ़े नवा बेटा पागे हवस सेवा करही!*  महराजिन कइथे अइसना बेटा नइ चाही! बिलवा महराज एक बात बता बे लेढ़वा मोरेच नाव लेके भक्कल के दुकान म दारू काबर पीये ,सरपंच के घलो नाव ले सकत रहे साले बदनाम करे बर महीच ह मिले रहेवं तोला ? सरपंच का महराज मोला बदनाम करे काबर सोंचत हस ग?  बिलवा महराज लेढ़वा ल मारे ल करथे बता न बे काबर पीये! *लेढ़वा आँखी कान ल छपके हे हाथ गोड़ काँपत हे थथरथईया करत बोलत हे का हे न महराज सुजी दे बर पंदरही म आपमन ल बलाय रहेंव , सुजी तो देके आ गयेव पइसा घलो मिलगे आपला फेर हरक के देखे बर नइ गयेव सोर घलो भेजे रहेवं आके देख लेबे कइके ! जेन दिन सुजी लगायेव वोकर दूसर दिन ले चार दिन चार -पाँच पइत भाँठा जाय ल परगे, हालत खस्त होगे रहिस मोर अउ ए सरपंच ह सबके घर शौंचालय बनवा दे हे मोर घर म नइ बनाये, कइथँव त कइथे फलाना-ढ़काना लिस्ट म तोर नाव नइहे हम कम पढ़े लिखे आदमी लिस्ट का जानबो सरपंच ल जानथन, माथा तो मोर सरपंच बर घलो चढ़े रहिस फेर महराज तैं मोला गलत सुजी लगाय रहे लागथे तेकर सेती मोला जादा भूकते ल परिच अउ वोकरे कारन तोर नाव बदला लेहे बर ले देवं!* अतका गोठ ल सुनके सब खलखला के हाँसथैं ! बिलवा महराज अरे लेढ़वा मैं ससुरार गे रहेवं त नइ आ सकेवं, गाँव वाले एक दूझन कइथे का डाक्टर साहब अइसने करथच कइ पइत हमरो संग अइसने होय हे बात तोर ऊपर आथे त ससुरार गे रहेवं कइ देथच !  बिलवा महराज के बोलती बंद हो जाथे ले भइ अब अइसन नइ होवै कइके कगरियाथे! सरपंच कइथे कइसे बे लेढ़वा भक्कल के पइसा देबे धुन नही बता?  *लेढ़वा डरे डर म देहँव सरपंच साहब,* सरपंच सायकल अउ समान ल छोड़ के जा एकर पइसा ल लेके आ! लेढ़वा अउ मोर घर म शौंचालय बनवाबे धुन नही सरपंच साहब?  सरपंच ले न बे जा पहिली पइसा ला के दे ,ले बनवा देबो कइके आश्वासन देथे! लेढ़वा अपन घर दउँड़त जाके पइसा ले के आके भक्कल अउ चुनिया ल पइसा देथे! *अब भक्कल अउ चुनिया डाक्टर बिलवा महराज सो क्षमा माँगथे, महराज कइथे लेवव जावव!*  ए बात के फुराजमोंगी होगे भक्कल चुनिया हाँसत बाईक म बइठ के घर चल दिन!  लेढ़वा ल सब गारी देवत अउ वोकर करनी म हँसत घर जात हें सरपंच अँइठत रेंग दीच, बेजा कब्जा के जमीन बर नियाव अटक गे , महराज-महराजिन अपन बेटा ल धरके घर म घुसर गें! भींड़ के संग म अवास पास करे बर दस हजार दे हे तेन, जेला पेंशन नइ मिले हे तेन अउ जेकर नाव राशन कार्ड म नइ जुड़े हे तेनो मुड़ी ल नवाय-नवाय घर डाहर जावत हें ,लेढ़वा ल शौंचालय बने के आश्वासन मिलगे अपन सायकल अउ बोरी ल धरे मुड़ी नवाय-नवाय घर कती जावत हे अउ सरपंच ल मन म गारी देवत कहत हे नेता मन लबरा होथे सारे ह का बनवाही ग शौंचालय मोही ल बनवाय ल परही!

*लेखक : असकरन दास जोगी*
ग्राम : डोंड़की, पोस्ट+तह:बिल्हा,जिला:बिलासपुर(छ.ग.)
मो.नं. : 9340031332
www.antaskegoth.blogspot.com
दिनाँक : 15/02/2018

Comments

  1. बहुत सुन्दर आदरणीय जी!

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