प्रणय निवेदन 1

*प्रणय निवेदन 1*

तनिक सुनो
ठहरो तो
देखो मेरी ओर
जिज्ञासा है मुझे
करूँ मैं तुमसे संवाद
ओ मोहिनी....
व्यक्त करना चाहता हूँ
मन की बात....!

प्रतिक्षण
मन में उथलपुथल है
रक्त वाहनियों में
ये कैसी चपलता
ओ रूपवति...
ह्रदय की धड़कन
मेरे नियंत्रण से बाहर है...!!

धैर्य धरा की
मुझमें नहीं
आतुर हूँ
ह्रदय की बात
व्यक्त करने के लिए
सहजता से तुम मुझे
अनुमति तो दो....!!!

है नैनों की
यही अभिलाषा
निहारता रहूँ
युगों-युगों तक
कंचन कंवल कामिनी
सा यह रूप
रहो साथ मेरे जैसे
छाँव और धूप...!!!!

ज्ञात हो
वह मिलन का दिन
नैंनों की नैंनों से
कभी आगे कभी पीछे
फिरते हैं आज-तलक
ओ गुणवति..
पथ भी तो निहारते हैं....!!!!!

सम्बंध हो
दो आत्माओं का
जन्म से जन्मान्तर का
है मेरा यह प्रणय निवेदन
सुनकर करो
ह्रदय से अनुमोदन
साक्षी है...
इस प्रकृति का कण-कण...!!!!!!

ओ नेहवति
विचलित न हो
शीलवति सदाचारिणी
प्रज्ञा की तुम खान
प्रणय निवेदन स्विकार करो
मुझको अपना मान...!!!!!!!

*रचनाकार:असकरन दास जोगी*
मो.नं. 9340031332
www.antaskegoth.blogspot.com

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