सासाबेगी

*सासाबेगी*

का सोंचबे
अउ का हो जाथे
फेर गोठ
फटाक ले
निकल जाथे
मुह के तो
धरखंद नइहे....!

कतको हरक ले
कतको बरज ले
मानही तब न
मन ह कभू
कोनो ल
धीरतावन दे हे ?
ए तो लुकलुकहा हे
एकर सांकड़ा ल तो
कतको जोगी मन
कस नइ पाईन
मन घोड़ा बात कहत
दउँड़ जाथे....!!

दोब ले
दोबाही कहाँ
आँखी सबो
भेद ल खोल देथे
बइरी आँखी
अपन तो अपन
बइरी बर घलो
टोस्टा के काम करथे....!!!

कतको मनखे होथैं
सासाबेगी एकोठन
बात ल नइ बोलैं
फेर कतको झन तो
मार घोड़ा चढ़े रइथैं
ठाँय ठेंगा उठ रेंगा करथैं
बनै ते टूटै
बिना बोले
ऊँकर पेट पीराथे
अइसन लागथे....!!!!

हमर सियान मन कहे हें
हम सबला मानना चाही
पहिली सुनन फेर गुनन
तहाँ परखन तभे मानन
ओकर बादे
अपन बिचार ल देवन
कोनो हाल म
सासाबेगी अपन बिचार
नइ देना चाही.....!!!!!

*लिखईया:असकरन दास जोगी*
मो.नं. 9340031332
www.antaskegoth.blogspot.com

Comments

Popular posts from this blog

दिव्य दर्शन : गिरौदपुरी धाम(छत्तीसगढ़)

पंथी विश्व का सबसे तेज नृत्य( एक विराट दर्शन )

खंजर